देहरादून: उत्तराखंड में धर्मांतरण का मुद्दा (Conversion issue in Uttarakhand) लगातार गरमाता जा रहा है. पहले कुमाऊं और अब गढ़वाल में लगातार धर्मांतरण के मामले सामने आ रहे हैं. बीते दिनों उत्तरकाशी के पुरोला में हुए धर्मांतरण (Conversion in Purola) से जुड़े बवाल के बाद धामी सरकार भी इस बात को समझ रही है कि इन छिटपुट घटनाओं से राज्य की छवि धूमिल हो रही है. इतना ही नहीं तेजी से धर्मांतरण कानून (conversion law) की तरफ आगे बढ़ रही सरकार के सामने विपक्ष को संभालना भी एक बड़ी चुनौती है.
उत्तराखंड में धर्मांतरण का मामला: हाल फिलहाल में उत्तरकाशी जिले के पुरोला में एक गांव में कथित रूप से धर्मांतरण की खबर सामने आई. जब पुरोला में रह रही एक महिला को एक मिशनरी से जुड़े लोग यह कहकर प्रलोभन दे रहे थे कि उनके घर में होने वाली शादी का पूरा खर्च हम लोग उठाएंगे. जिसके बाद लगातार कुछ लोग नेपाली मूल की महिला के संपर्क में आकर उसे प्रलोभन देने की पेशकश कर रहे थे. जैसे ही यह खबर गांव के कुछ लोगों को लगी, वैसे ही इस मामले ने तूल पकड़ लिया.
धर्मांतरण एक्ट में मामला दर्ज: बताया जा रहा है कि धर्मांतरण करने वाले लोग गांव में ही एक कार्यक्रम भी आयोजित कर रहे थे, लेकिन ईसाई मिशनरी के विरोध में लोगों ने प्रदर्शन करना शुरू कर दिया. ग्रामीणों का आरोप था कि लगातार ये लोग इस गांव में आकर लोगों का धर्म परिवर्तन करने की पेशकश कर रहे थे. जिसके बाद खूब बवाल हुआ और पुलिस ने धर्मांतरण एक्ट के तहत पादरी सहित चार लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था.
कुमाऊं में धर्मांतरण का पहला मामला: ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में यह पहला मामला हो. इससे पहले कुमाऊं में भी इसी तरह का मामला सामने आया था. जिसमें शाकिब ने एक हिन्दू लड़की को पहले अपना नाम शिवा बताया और बाद में लड़की को प्रेमजाल में फंसा कर उसका दुष्कर्म किया. इतना ही नहीं लड़की के धर्म परिवतर्न नहीं करने पर उसकी पिटाई भी की थी. मामले में पुलिस ने धर्मांतरण कानून के तहत पहला मामला दर्ज (First case registered under conversion law) किया था. इसी तरह के मामले हरिद्वार के ग्रामीण क्षेत्रों से भी सामने आ चुके हैं.
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धर्मांतरण को लेकर कांग्रेस का हमला: उत्तराखंड में धर्म परिवर्तन (religion change in uttarakhand) के मामले पर सरकार भी विपक्ष के निशाने पर है. कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा दसौनी का आरोप है कि सरकार तुष्टिकरण की राजनीति करने में कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ती है. कानून अगर बना है तो इसका सख्ती से पालन होना चाहिए. उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल और खासकर पहाड़ी इलाकों में जिस तरह से यह वारदात हो रही है सरकार उन्हें रोकने में नाकाम है.