देहरादून:पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में यूं तो कई ऐसे नामी स्कूल और कॉलेज हैं जहां देश-विदेश से पढ़ने के लिए छात्र पहुंचते हैं. बावजूद इसके एनएसएस (नेशनल स्टेटिकल सर्वे) की रिपोर्ट के में प्रदेश की साक्षरता दर अभी महज 87.6% है. ऐसे में प्रदेश के 11 लाख से ज्यादा निरक्षर लोगों को साक्षर बनाने के लिए उत्तराखंड राज्य का चयन केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय की ओर से चलाए जा रहे हैं पढ़ना लिखना अभियान के लिए किया गया है.
उत्तराखंड में 'पढ़ना-लिखना' अभियान चलाएगी केंद्र सरकार. बता दें कि पढ़ना-लिखना अभियान के तहत प्रदेश के विभिन्न जनपदों में वॉलेंटियर्स नियुक्त किए जाएंगे. इसमें शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के साथ ही कई छात्र भी जोड़े जाएंगे. इन सभी वॉलिंटियर्स को 4 महीनों में 120 घंटे पढ़ाने का लक्ष्य दिया जाएगा. जिसमें ये वॉलिंटियर्स प्रदेश के विभिन्न जनपदों में मौजूद 15 वर्ष की आयु से ऊपर के निरक्षर लोगों को अखबार पढ़ाना, हस्ताक्षर करना और बैंक फॉर्म इत्यादि भरना सिखाएंगे.
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ईटीवी भारत से बात करते हुए माध्यमिक शिक्षा के अपर निदेशक मुकुल सती ने बताया कि फिलहाल कोरोना के कारण प्रदेश में इस अभियान को शुरू नहीं किया जा सका है. ये कब तक शुरू हो पाएगा ये भी अभी तक निर्धारित नहीं है. उन्होंने बताया कि इस अभियान को जल्द से जल्द शुरू करने के पूरे प्रयास किए जा रहे हैं.
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बता दें कि साल 2011 की जनगणना के आधार पर प्रदेश में सबसे अधिक निरक्षर लोग हरिद्वार में चिन्हित किए गए हैं.
उत्तराखंड में 'पढ़ना-लिखना' अभियान चलाएगी केंद्र सरकार 2011 की जनगणना के आधार पर निरक्षर लोगों वाले जिले
वहीं, केंद्र सरकार के पढ़ना-लिखना अभियान को लेकर वरिष्ठ स्तंभकार सुशील कुमार सिंह कहते हैं कि यह एक बेहतरीन अभियान है. मगर, इसके लिए जो 4 महीने की समय सीमा निर्धारित की गई है वह कहीं न कहीं एक व्यक्ति को निरक्षर से साक्षर बनाने के लिए नाकाफी सी लगती है. इस स्थिति में कहीं ऐसा न हो कि जल्दबाजी में लोगों को सिर्फ कागजों में ही साक्षर दिखाया जाये. उन्होंने कहा सरकार को चाहिए कि वे इसकी समय सीमा को बढ़ा कर सही तरीके से इस पर काम करे.