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Discrimination Aganist Dalits: भगवान के द्वार नए भारत में भी दुत्कार! देवभूमि के मंदिरों में दलितों संग भेदभाव क्यों? - उत्तराखंड लेटेस्ट न्यूज

मंदिर में अंदर जान पर उत्तराखंड में पहली बार कोई दलित युवक उच्च जातियों के लोगों का शिकार नहीं बना है, बल्कि इससे पहले भी इस तरह के मामलों की वजह से उत्तराखंड को कई बार शर्मसार होना पड़ा है. साल 2016 में तो बीजेपी के तत्कालीन राज्यसभा सांसद तरुण विजय की जान तक पर बन आई थी. एक समय था जब उत्तराखंड के चारधाम (गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ) में भी दलितों का प्रवेश वर्जित था.

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Published : Jan 24, 2023, 7:30 PM IST

Updated : Jan 28, 2023, 3:34 PM IST

देवभूमि के मंदिरों में दलितों संग भेदभाव क्यों?

देहरादून: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में बीते दिनों दलित युवक के साथ सिर्फ इसीलिए मारपीट की गई, क्योंकि वो उसने मंदिर ने प्रवेश किया था. इस घटना के एक बार फिर देवभूमि उत्तराखंड को शर्मसार किया है. इस घटना के बाद एक बार फिर से सवाल खड़े होने लगे हैं कि जिसे देवभूमि के कण-कण भगवान बसते हैं, वहां कोई कैसे किसी भक्त को सिर्फ जाति की वजह से भगवान से मिलने से रोक सकता है.

उत्तरकाशी जिले के जिस इलाके में ये घटना घटित हुई है, वहां पहले ही इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं. साल 2016 में बीजेपी के बड़े नेता और तत्कालीन राज्यसभा सांसद तरुण विजय को भी लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा था. उस समय तो लोगों ने तरुण विजय की गाड़ी में आग लगाने की भी कोशिश की थी. इतना ही नहीं, तरुण विजय के साथ गए अन्य लोगों को भी ग्रामीणों ने बुरी तरह पीटा था. तरुण विजय की किसी तरह मुश्किल से जान बच पाई थी. हालांकि इस ताजे मामले में एक बार फिर उत्तराखंड में दलितों के मंदिरों में प्रवेश वर्जित के मुद्दे पर बहस छेड़ दी है.
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ताजा मामला क्या है?:9 जनवरी को उत्तरकाशी के मोरी ब्लॉक इलाके में हंगामा तब खड़ा हुआ, जब 22 साल का दलित युवक मंदिर में भगवान के दर्शन करने लिए चला गया, जो उच्च जाति के कुछ लोगों को नगवार गुजरा और इसी बात से नाराज उच्च जाति के लोगों ने 22 साल के युवक को बांधकर गर्म लकड़ी से बुरी तरह पीटा. हालांकि ये मामला पुलिस के पास 10 जनवरी को पहुंचा. वहीं युवक को गंभीर हालत में देहरादून के जिला अस्पताल में भर्ती करवाया जाता है.

इस मामले में पुलिस ने पीड़ित युवक की शिकायत पर तीन दिन बाद पांच लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया. यह मामला इतना तूल पकड़ता है कि अनुसूचित जनजाति आयोग भारत सरकार को भी इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा और इस मामले की पड़ताल के लिए एक टीम उत्तरकाशी भेजी. ये टीम अपनी रिपोर्ट जल्द ही मंत्रालय को सौंपेगा.

केस में नया मोड़: युवक को कितनी बुरी तरह पीटा गया इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले 12 दिनों से उसका इलाज दून हॉस्पिटल में चल रहा है. कई घाव तो इतने गहरे हैं कि जो अभी तक भरे भी नहीं हैं. लेकिन इस मामले में उस वक्त नया मोड़ आया जब कोर्ट के आदेशों पर मंदिर से जुड़े एक सदस्य ने पीड़ित के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज करवा दिया. पीड़ित युवक के खिलाफ धार्मिक विश्वासों का अपमान करने के लिए मुकदमा दर्ज किया है, जिसमें कई धाराएं लगाई गई हैं. हालांकि अब इस मसले पर दोनों में से कोई भी पक्ष बोलने का तैयार नहीं है.
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उत्तराखंड में ऐसे पहली बार नहीं हुआ, जब दलितों को मंदिरों ने प्रवेश करने से रोका गया हो. उत्तराखंड में ही साल 2016 में जब तत्कालीन राज्यसभा सांसद तरुण विजय चकराता के महासू देवता दर्शन करने के बाद दलितों के धार्मिक आयोजन में शामिल होने के लिए पहुंचे तो चकराता के लोग इतने नाराज हो गए कि लगभग 200 से 300 लोगों की भीड़ ने उन पर हमला बोल दिया और उनके साथ साथ कई लोग लहूलुहान हो गए थे. इस घटना के बाद मामले की सीबीसीआईडी जांच हुई, लेकिन तब भी इस मामले पर न तो बीजेपी ने कुछ बोलना जरूरी समझा और न ही कांग्रेस ने कुछ कहना चहा. क्योंकि दोनों ही पार्टियां जानती थी कि ये मामला क्षेत्र की धार्मिक भावनाओं से जुड़ा है.

यहां भी था प्रवेश निषेध: जौनसार बावर के अलावा कुमाऊं में ही इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं. कुमाऊं में भी कई मंदिरों में दलितों का प्रवेश निषेध था, हालांकि बाद में लोगों की आपत्ति के बाद इस पर रोक हटा दी गई है. बागेश्वर जिले के बागनाथ मंदिर में भी पहले किसी दलित को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं थी. इसके अलावा वो लोग मंदिर के किसी अनुष्ठान में भी हिस्सा नहीं ले सकते थे, लेकिन साल 2016 में ही इस मंदिर में कुछ एक बदलाव किए गए. बताया जाता है कि अब इस मंदिर में दलितों के प्रवेश पर किसी तरह की कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन समय-समय पर इस बात की भी खबरें आती हैं कि बागनाथ मंदिर के अंदर दलितों को प्रवेश से अभी भी रोका जाता है. हां इतना जरूर है कि मंदिर परिसर में दलित पुजारी पूजा-पाठ जरूर करते हैं.
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अल्मोड़ा-हरिद्वार में भी है प्रतिबंध: इसी तरह से अल्मोड़ा के जागेश्वर मंदिर में भी दलितों का प्रवेश वर्जित बताया जाता है. बताया जाता है कि यहा भी दलित समाज के लोग दूर से ही भगवान की आराधना और पूजा पाठ कर सकते हैं. किसी भी दलित को मंदिर के पास आने की इजाजत नहीं है. इतना ही नहीं हरिद्वार में हरकी पैड़ी पर आज भी ब्रह्मकुंड में दलितों की अस्थियों के विसर्जन पर पूरी तरह से रोक है. बाकायदा दलितों के तीर्थ पुरोहित और पंडा समाज अलग से नाइ सोता घाट पर दलितों की अस्थि विसर्जित करवाते हैं.

मंदिरों में दलितों के प्रवेश पर वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा का कहना है कि उत्तराखंड के ऐसे इलाके जो आज भी राजस्व क्षेत्र में आते हैं, वहां पर इस तरह की घटनाएं देखने को मिलती रहती है. हाल ही कि घटना को याद करते हुए राजीव नयन बहुगुणा कहते हैं कि बीते दिनों उन्होंने भी यह खबर पढ़ी थी कि उत्तरकाशी के क्षेत्र में दलित को मंदिर में जाने के बाद बुरी तरह से ना केवल पीटा गया. बल्कि उसके अंग पर जलती हुई लकड़ियों से कई गहरे घाव भी बनाए गए.
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अपने पिता के आंदोलन को याद करते हुए राजीव नयन बहुगुणा कहते हैं कि मुझे याद है जब भी मैं अपने पिताजी से बात करता था तो उन्होंने मुझे बताया था कि पहले बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे मंदिरों में भी दलितों के प्रवेश पर पूरी तरह से प्रतिबंध था. लेकिन साल 1996 मे दलितों के लिए एक पूरा बड़ा आंदोलन शुरू हुआ. जिसके बाद ना केवल चारधाम मंदिरों में बल्कि उत्तराखंड के कई मंदिरों को भी दलितों के लिए हमेशा के लिए खोल दिया गया है.

इतना जरूर है कि टिहरी और घनसाली के एक मंदिर में इसका लंबे समय तक विरोध होता रहा, लेकिन वह इस पूरी घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहते हैं कि यह संविधान के खिलाफ है और जो लोग किसी भी व्यक्ति को मंदिर में जाने से रोक रहे हैं, वह संविधान का मखौल उड़ाने का काम कर रहे हैं. यह एक तरह का अपराध है जो उत्तराखंड जैसी देवभूमि में नहीं होना चाहिए.

दलित आंदोलन करेंगे: उत्तराखंड के चकराता में दलित नेता दौलत कुंवर कहते है कि ये उत्तराखंड में लगातार हो रहा है कभी चकराता तो कभी कुमाऊं गढ़वाल में. हाल ही में जोशीमठ में भी यही सब देखने के लिए मिला है, वो कहते है कि उत्तराखंड जैसी देवभूमि में भी अगर जातिवादी सोच इतनी हावी हो रही है तो इस पर सोचना और विचार करना चाहिए. वो इस बारे में लगातार पुलिस को बता रहे हैं और इसके बाद भी अगर बात नहीं सुनी गई तो इस बार दिल्ली में वो सैकड़ों लोगों के साथ आंदोलन करेंगे.

Last Updated : Jan 28, 2023, 3:34 PM IST

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