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नगर निगम में भ्रष्टाचार का खुलासा, चहेती संस्था के नाम कर दी बेशकीमती संपत्ति - municipal tax department

ऋषिकेश नगर निगम के कर विभाग ने नियमों को ताक में रखकर नामांतरण प्रक्रिया पूरी की. वास्तविक दस्तावेजों को नजरअंदाज कर चहेती संस्था के नाम की प्रॉपर्टी.

ऋषिकेश नगर निगम.

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Published : May 17, 2019, 12:33 PM IST

ऋषिकेश: नगर निगम में भ्रष्टाचार का अनूठा मामला सामने आया है. संपत्ति संख्या 56/78 आदर्श नगर के नामांतरण प्रक्रिया में वास्तविक दस्तावेजों को नजरअंदाज कर चहेती संस्था के नाम किया गया है. नामांतरण प्रक्रिया में कर विभाग के अफसर सवालों के घेरे में हैं. मामले की पुष्टि विभागीय स्तर पर हुए आपसी पत्राचार से हुई. हाल ही में नगर आयुक्त को भेजे गए रिपोर्ट में भी साफ हुआ है कि नामांतरण प्रक्रिया में वास्तविक तथ्यों को नजरअंदाज कर बेशकीमती संपत्ति एक संस्था के नाम दर्ज की गई है.

ऋषिकेश नगर निगम के कर विभाग में भ्रष्टाचार.

घटनाक्रम के मुताबिक, ये संपत्ति कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड की थी. 19 जनवरी 1979 को गंगागिरी स्मारक ट्रस्ट को बेची गई. इसी के आधार पर तत्कालीन नगर पालिका के अभिलेखों में आदर्श नगर स्थित यह संपत्ति गंगागिरी स्मारक ट्रस्ट के नाम दर्ज कर दी गई. बाद में हाउसिंग सोसायटी की ओर से स्वामी गंगागिरी ट्रस्ट के खिलाफ फास्ट ट्रैक अपर जिला सत्र न्यायालय में मुकदमा दायर किया गया. कोर्ट ने ट्रस्ट की संपत्ति की रजिस्ट्री को अमात्य (खारिज) घोषित कर दिया.

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ऐसे दिया गया भ्रष्टाचार को अंजाम

इसी क्रम में कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए उक्त संपत्ति को कोऑपरेटिव सोसायटी के नाम दर्ज करने के लिए पालिका में पेश किया गया. चौंकाने वाली बात यह है कि पालिका प्रशासन ने 10 सितंबर 2007 से अबतक इस आवेदन पर ध्यान ही नहीं दिया. दिलचस्प पहलू ये है कि हाउसिंग सोसायटी के जिस आवेदन पर कई साल तक पालिका प्रशासन ने गौर ही नहीं किया उसे नगर निगम के अफसरों ने रातों-रात गंगागिरी ट्रस्ट के नाम कर दिया.

इस कारनामे की शुरुआत 11 जनवरी 2019 को शुरू हुई. दरअसल, कर विभाग ने बाबू को रत्नेश नाथ के आदर्श नगर स्थित उक्त संपत्ति का भवन कर निर्धारण करने का आदेश दिया. गंगागिरी स्मारक ट्रस्ट के रत्नेश ने भी संपत्ति दर्ज करने के लिए शपथ पत्र भी जमा किया, जिसके बाद 21 जनवरी को कर अधीक्षक ने अपनी रिपोर्ट दी और 4 फरवरी 2019 को निगम ने संपत्ति गंगागिरी ट्रस्ट के नाम दर्ज कर दी.

हैरानी की बात ये है कि संपत्ति से जुड़ी फाइल को कर विभाग के बाबू से भी अलग रखा गया. जब नामांतरण प्रक्रिया पूरी हो गई तब संबंधित बाबू के पास फाइल भेजी गई. इसी दौरान आख्या ने नगर निगम के अफसरों की सारी कलई खोल दी. रिपोर्ट में स्पष्ट हो गया कि संपत्ति गंगागिरी स्मारक ट्रस्ट की है ही नहीं. नामांतरण करते समय विभाग के अफसरों ने कोर्ट के आदेश का और आपत्तियों को नजरअंदाज किया.

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मामले को लेकर मेयर अनीता ममगाईं ने जांच समिति बनाई थी. बीते गुरुवार को जब जांच समिति की रिपोर्ट के बारे में मेयर से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि जल्द इस मामले को लेकर बैठक होगी. जांच समिति रिपोर्ट आ गई है, जो भी दोषी पाया जाएगा उसके खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की जाएगी. वहीं, तथाकथित जांच समिति को लेकर पार्षद अजीत सिंह गोल्डी ने बताया कि कोई जांच गठित नहीं की गई है. समिति गठित करने से वो पहले ही मना कर चुके हैं.

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