देहरादून:प्रदेश की सल्ट विधानसभा सीट से विधायक सुरेंद्र सिंह जीना के निधन के बाद हुए उपचुनाव में सुरेंद्र सिंह जीना के बड़े भाई महेश जीना ने जीत दर्ज की थी. इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने विधानसभा में महेश जीना को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई. हालांकि, उत्तराखंड गठन के बाद से यह पांचवां ऐसा मामला है, जब किसी विधायक के निधन के बाद उपचुनाव कराया गया हो. ऐसे में भाजपा के वर्तमान शासन काल के दौरान की बात करें तो किसी विधायक के निधन के बाद यह तीसरा मामला है.
साढ़े तीन साल के कार्यकाल में तीन बार हो चुके हैं उपचुनाव
साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में 57 सीटों को जीतकर भाजपा सत्ता पर काबिज हुई थी. लेकिन भाजपा सरकार के कार्यकाल को करीब एक साल का ही समय बीता था कि थराली से विधायक मगनलाल शाह का निधन हो गया. इस सीट पर साल 2018 में चुनाव कराया गया. इसके बाद भाजपा सरकार के करीब 2 साल का समय ही हुआ था कि वित्त मंत्री प्रकाश पंत का निधन हो गया. इसके चलते साल 2019 में पिथौरागढ़ विधानसभा सीट पर उपचुनाव कराया गया. इसी तरह राज्य सरकार को करीब साढ़े तीन साल का ही समय हुआ था कि सल्ट विधानसभा सीट से विधायक सुरेंद्र सिंह जीना का निधन हो गया. जिस पर साल 2021 में उपचुनाव संपन्न हुआ.
विधायक के निधन के बाद पांचवीं बार हुआ उपचुनाव
उत्तराखंड राज्य में किसी विधायक के निधन के बाद विधानसभा के लिए पांचवी बार उपचुनाव हुआ. राज्य में सबसे पहले साल 2004 में द्वाराहाट के विधायक विपिन त्रिपाठी के निधन के बाद खाली हुई द्वाराहाट विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए थे. दूसरी बार साल 2014 में भगवानपुर के विधायक सुरेंद्र राकेश के निधन के बाद सीट खाली हुई. भगवानपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए थे. तीसरी बार साल 2018 में थराली के विधायक मगनलाल शाह के निधन के बाद खाली हुई थराली विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए थे. वहीं, साल 2019 में वित्त मंत्री प्रकाश पंत के निधन के बाद खाली हुई पिथौरागढ़ सीट पर उपचुनाव हुआ था. इसी साल 2021 में सल्ट से विधायक सुरेंद्र सिंह जीना के निधन के बाद उपचुनाव हुआ. जिसे जीतकर महेश जीना ने आज पद और गोपनीयता की शपथ ली है.
प्रदेश में कब-कब हुए विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव
- साल 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से विधायक योगम्बर सिंह ने तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के लिए अपनी सीट को छोड़ दी थी. इसके चलते साल 2002 में रामनगर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था.
- 2004 में द्वाराहाट के विधायक विपिन त्रिपाठी के निधन के बाद खाली हुई द्वाराहाट विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए थे.
- साल 2002 में निर्दलीय चुनाव जीते सुरेंद्र सिंह नेगी ने साल 2005 में कोटद्वार विधानसभा सीट को छोड़ा और कांग्रेस में शामिल हो गए थे. फिर कोटद्वार विधानसभा सीट पर साल 2005 में उपचुनाव हुआ, जिसमें दोबारा से सुरेंद्र सिंह नेगी जीतकर विधायक बने थे.
- साल 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में धुमाकोट विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक लेफ़्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) टीपीएस रावत ने चुनाव जीता था. लेकिन इन्होंने भाजपा सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद खंडूरी के लिए अपनी सीट को छोड़ दी थी. जिसके बाद साल 2007 में धुमाकोट विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था.
- साल 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में कपकोट विधानसभा सीट से भगत सिंह कोश्यारी विधायक चुने गए थे. लेकिन साल 2008 में भगत सिंह कोश्यारी को राज्यसभा सांसद बना दिया गया. जिसके चलते कपकोट विधानसभा सीट पर साल 2009 में उपचुनाव कराया गया.
- साल 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में विकास नगर विधानसभा सीट पर भाजपा से मुन्ना सिंह चौहान विधायक चुने गए थे, लेकिन भाजपा संगठन और उनके अहम के बीच हुए टकराव के बाद उन्होंने अप्रैल 2009 में विधायकी से इस्तीफा देने के साथ ही भाजपा का दामन भी छोड़ दिया. जिसके चलते इस साल 2009 में विकास नगर विधानसभा सीट पर उपचुनाव कराया गया.