विकासनगरःजनजातीय क्षेत्रजौनसार बावर में पांरपरिक त्योहार काफी धूमधाम से मनाए जाते हैं. जिसे आज भी लोग संजोए हुए हैं. ऐसा ही एक त्योहार बूढ़ी दिवाली (budhi diwali) है जो दीपावली के ठीक एक महीने के बाद मनाई जाती है. इस बार भी पूरे पांच दिनों तक जौनसार बावर में बूढ़ी दिवाली की धूम रही. जिसका समापन हिरण और हाथी नृत्य के साथ हो गया है. वहीं, हर गांव के पंचायती आंगन में तांदी, झैंता, हारूल नृत्य देखने को मिला. जहां ग्रामीण पारंपरिक वेशभूषा में थिरकते नजर आए.
बता दें कि जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में बूढ़ी दिवाली (budhi diwali celebrated in jaunsar bawar) मुख्य दीपावली के ठीक एक महीने के बाद मनाई जाती है. पहाड़ में बूढ़ी दीवाली मनाने के पीछे लोगों के अपने अलग-अलग तर्क हैं. जनजाति क्षेत्र के बड़े-बुजुर्गों की मानें तो पहाड़ के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में भगवान श्रीराम के अयोध्या आगमन की सूचना देर से मिलने के कारण लोग एक माह बाद बूढ़ी दीवाली मनाते हैं. जबकि, अधिकांश लोगों का मत है कि जौनसार-बावर कृषि प्रधान क्षेत्र होने की वजह से यहां लोग खेतीबाड़ी के कामकाज में बहुत ज्यादा व्यस्त रहते हैं. जिस कारण वह इसके ठीक एक माह बाद बूढ़ी दीवाली का जश्न परपंरागत तरीके से मनाते हैं.
ग्रामीणों की मानें तोअत्यधिक कृषि कार्य होने के चलते कई गांव मुख्य दीपावली का जश्न नहीं मना पाते थे. ऐसे में ग्रामीणों को समय पर अपनी फसलों को काटना होता था. साथ ही सर्दियों से पहले सभी काम निपटाना होता था. ग्रामीण जब खेती बाड़ी से संबंधित सभी काम पूरा कर लेते थे, तब जौनसार बावर में लोग दीपावली मनाते थे. ऐसे में ग्रामीण दीपावली के ठीक एक महीने के बाद पांच दिवसीय बूढ़ी दिवाली का जश्न मनाते हैं.
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