विकासनगर: जौनसार बावर के जनजाति क्षेत्र में त्योहार मनाने की अगल ही पंरपरा है. यहां त्योहार मनाने का अंदाज और जगहों के जुदा है. जौनसार बावर में दीपावली के करीब एक महीने बाद बूढ़ी दीपावली मनाई जाती है. जिसे भीरूडी पर्व भी कहा जाता है. मंगलवार को जौनसार बावर के करीब 200 गांवों में बड़ी धूमधाम से भीरूडी पर्व का त्योहार मनाया गया.
जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर में हर तीज-त्योहार मनाने का अंदाज हटकर है. भगवान श्रीराम के अयोध्या आगमन की खुशी में देशवासी हर साल हर्षोल्लास से प्रकाश पर्व दीपावली का जश्न धूमधाम से मनाते हैं, लेकिन देहरादून जनपद के सुदूरवर्ती जौनसार-बावर और पछवादून के बिन्हार क्षेत्र में ठीक इसके उलट एक माह बाद पहाड़ी बूढ़ी दीवाली परपंरागत तरीके से मनाई जाती है. पिछले महीने 14 नवंबर को देशभर में दीपावली का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया गया था, लेकिन जौनसार बाबर के करीब 200 गांवों दीपावली के करीब एक महीन बाद 14 दिसंबर को बूढ़ी दीपावली मनाई गई. यहां की दीवाली पूरे देश को प्रदूषणरहित दीवाली मनाने का संदेश भी देती है.
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वहीं इस मौके पर देव को चिवडा व अखरोट का भोग लगाकर गांव के पंचायती आंगन में गांव के प्रत्येक परिवार द्वारा अखरोट एकत्रित किए गए. गांव के बाजगी द्वारा गेहूं एवं जौ से उगाई गई हरियाली जिसे देव पर्व भीरूडी पर सभी गांव के महिलाओं व पुरूषों को दी जाती है. सभी ग्रामीण देवता की सोने की हरियाली को कान पर रखते है. जिसे बहुत ही शुभ माना जाता है. इस दौरान सभी ग्रामीण हर्ष और उल्लास के साथ पंचायती आंगन में दिवाली के गीत व हारूल नृत्य कर इस उत्सव की परंपरा को निभाते हैं.