विकासनगर: जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में दीवाली के एक महीने बाद मनाई जाने वाली 'बूढ़ी दीपावली' शुक्रवार को समाप्त हो गई. ऐसे में ग्रामीणों ने अपने ईष्ट देव महासू देवता के नाम पर किसी गांव में हाथी नृत्य तो किसी गांव में हिरण नृत्य का आयोजन किया. जिसमें सामूहिक रूप से पंचायती आंगन में महिला और पुरुषों ने इस हारूल नृत्य का आंनद लिया.
इस मौके पर जौनसार बावर के ग्रामीणों ने महासू देवता की स्तुतिकर कोरवा गांव में हिरण नृत्य का आयोजन किया गया था. जिसमें गांव खत के मुखिया सुरेश तोमर विराजमान हुए. राजस्थानी गांव निवासी रविता तोमर ने बताया कि बूढ़ी दीपावली हर साल निरंतर भवन में हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है. इस मौके पर स्थानीय व्यंजनों को पुरस्कार आवभगत किया जाता है. जिससे लोगों में आपसी भाईचारा और प्रेम बना रहता है. तोमर ने बताया कि ये हमारी पारंपरिक जनजाति दीपावली है, जिसे सभी हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं.
पढ़ें- पांचवें धाम में ऐतिहासिक सेम नागराजा मेले का समापन, देव डोली के दर्शन को उमड़े लोग
ग्रामीणों का कहना है कि बूढ़ी दीपावली मनाने की क्षेत्रवासियों की अलग ही परंपरा है. क्योंकि देश में मनाई जाने वाली दीपावली के समय क्षेत्र में काम ज्यादा होता है. जबकि, एक माह बाद मनाई जाने वाली बूढ़ी दिवाली तक सारा काम निपट जाता है. साथ ही यह पर्व क्षेत्र के ईष्ट देव महासू देवता के नाम से भी मनाया जाता है.
कोरवा गांव के निवासी राजेश तोमर ने बताया कि आदिवासी जनजाति क्षेत्र में दीपावली का यह त्योहार बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. माना जाता है कि जनजाति क्षेत्र में कई सौ साल पहले भारी क्षेत्र से एक राजा का आगमन हुआ था. जिसे जनजातीय राजा ने धनुष से तीर छोड़कर बेहोश कर दिया गया था. उसके बाद स्थानीय लोगों महासू देवता की स्तुति की और राजा को होश आ गया.
पढ़ें- देवभूमि के 'मिनी स्विट्जरलैंड' में हिमपात से मौसम हुआ सर्द, देखें दिलकश नजारे
वहीं, राजा के होश में आने के बाद दोनों राजाओं में समझौता हुआ. इसके बाद से ही जनजाति राजा की जीत की खुशी में महासू देवता के नाम से प्रत्येक वर्ष दीपावली में हिरण नृत्य किया जाता है. जिसमें महासू देवता की स्तुति की जाती है. कुछ स्थानों पर हाथी नृत्य भी किया जाता है.