विकासनगर: जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में बूढ़ी दीपावली बड़े हर्षोल्लास के साथ मनायी जा रही है. यहां पर जनजाति परंपरा के अनुसार लोग ईको फ्रेंडली दीपावली मनाते हैं. जौनसार बावर क्षेत्र में 200 से अधिक गांवों में बूढ़ी दीपावली हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है. अमावस्या की रात को आवसा रात कहते हैं. गांव के लोगों ने एक साथ अलाव जलाकर आवसा रात का जश्न मनाया.
जौनसार बावर में बूढ़ी दीपावली की धूम. ये भी पढ़ें:कॉर्बेट में बाघों के रास्ते में पैदा की अड़चन, अब जिप्सी चालक पर होगी कार्रवाई
ग्रामीणों ने ब्रह्म मुहूर्त में ढोल दमोह की थाप पर भीमल की पतली लकड़ी से बने होला जला कर बूढ़ी दीपावली मनाई. इस दौरान लोगों ने पारंपरिक गीत गाए.
जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में मनाई जाने वाली बूढ़ी दिवाली, जिसे स्थानीय भाषा में देव दियाई भी कहा जाता है. जौनसार बावर जनजाति द्वारा ईको फ्रेंडली दिवाली मनाई जाती है. यह दीपावली बम-पटाखे और आतिशबाजियों के शोर-शराबे से दूर है. यहां पर्यावरण का भी विशेष ख्याल रखा जाता है.
क्यों मनाते हैं एक माह बाद दिवाली
जौनसार बावर क्षेत्र में दिवाली का पर्व एक माह बाद मनाने के कई तर्क हैं. मान्यता है कि लंका विजय के बाद प्रभु श्री राम के वनवास से अयोध्या लौटने की सूचना यहां एक माह बाद पहुंची थी. उसी दिन लोगों ने दीप जलाकर दिवाली का जश्न मनाया था. वहीं, कुछ बुजुर्गों की मानें तो, जब जौनसार व जौनपुर क्षेत्र सिरमौर राजा के अधीन था, तो उस समय राजा की पुत्री दिवाली के दिन मर गई थी. इसके चलते पूरे राज्य में एक माह का शोक मनाया गया था. उसके ठीक एक माह बाद लोगों ने उसी दिन दिवाली मनाई.