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अंग्रेजों के जमाने का पारंपरिक घराट आज भी कर रहा काम, कभी इसके इर्द गिर्द घूमता था पहाड़ का जीवन

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में आज भी अंग्रेजों के जमाने का घराट काम कर रहा है. हेस्को संस्था की मदद से मई 2019 में घराट को दोबारा शुरू किया गया.

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Published : Feb 4, 2020, 7:24 PM IST

Updated : Feb 4, 2020, 10:47 PM IST

देहरादून:आधुनिकता की इस दौर में जहां हर जगह बिजली से चलने वाले चक्कियों में गेंहू, मंडुवा और मक्के को लोग पिसवा रहे हैं. वहीं राजधानी देहरादून के माल देवता क्षेत्र में आज भी अंग्रेजों के जमाने का घराट संचालित है. जो कि उत्तराखंड की संस्कृति की एक पारंपरिक पहचान हैं.

उत्तराखंड की संस्कृति से पारंपरिक घराट का काफी गहरा नाता रहा है, लेकिन आज आधुनिकता के इस दौर में लोग घराटों को भूलकर बिजली से चलने वाली चक्कियों का इस्तेमाल कर रहे हैं.

गौर हो कि राजधानी के मालदेवता इलाके में मौजूद लगभग सौ साल पुरानी घराट का इन दिनों देहरादून के एक किसान द्वारा संचालन किया जा रहा है. किसान जय सिंह पंवार बताते हैं कि पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाली हेस्को संस्था की मदद से उन्होंने मई 2019 में इस घराट को दोबारा शुरू किया है. वहीं इसके लिए वह किराए के तौर पर सिंचाई विभाग को प्रति वर्ष 10 हज़ार रुपए देते हैं.

पारंपरिक घराट

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आपकी जानकारी के लिए बता दें कि घराट एक जल संचालित पनचक्की है. माल देवता इलाके में बहने वाली कालका नहर के पानी से इसका संचालन किया जा रहा है. इस घराट में किसान जय सिंह पवार गेहूं के आटे के साथ ही मक्के का आटा और मंडुवे का आटा तैयार कर रहे हैं.

बिजली की चक्की में पीसे जाने वाले आटे के मुकाबले घराट में पीसा जाने वाला आटा फाइबर युक्त होता है. जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है. यही कारण है कि देहरादून के साथ ही आसपास के इलाके के कई लोग गेहूं , मंडवा और मक्के का आटा तैयार कराने के लिए यहां आते हैं.

ईटीवी भारत से खास बातचीत में किसान जय सिंह पवार ने कहा कि राज्य सरकार को भी घराट के रखरखाव के लिए बेहतर कदम उठाने की जरूरत है. यदि आज सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया तो आने वाले समय में प्रदेश के पारंपरिक धरोहर पूरी तरह से विलुप्त हो जाएगी.

Last Updated : Feb 4, 2020, 10:47 PM IST

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