देहरादून: उत्तराखंड में 10 दिनों से लगातार हो रही बारिश से जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है. लगातार हो रही बारिश से कहीं भूस्खलन तो कहीं नदी-नाले उफान पर हैं. जिसके कारण अब तक गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक कई जानें जा चुकी हैं. उत्तराखंड में बरसात के मौसम में हालात बद से बदतर हो गए हैं. बारिश में सड़कें बंद होने की वजह से मुख्यालय से जुड़े गांवों का संपर्क कट जाता है, तो कई बार सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सड़कें भी बंद हो जाती हैं.
जिस वजह से सेना के मूवमेंट पर भी असर पड़ता है. इसके साथ ही उत्तराखंड आने वाले पर्यटक भी इससे काफी परेशान होते हैं. इन सभी समस्याओं से निदान दिलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड को ऑलवेदर रोड योजना के रूप में एक बड़ी सौगात दी थी, जो एक ही बारिश में धराशायी हो गई है.
क्यों उठ रहे सवाल: दरअसल, बुधवार को ऋषिकेश-बदरीनाथ ऑलवेदर रोड हाईवे पर पुरसाड़ी के पास सड़क किनारे बने आरसीसी दीवार का एक बड़ा हिस्सा ढह गया, जिससे पूरा हाईवे बाधित हो गया. इस घटना के बाद एक बार फिर ऑलवेदर रोड की गुणवत्ता सवाल खड़े हो रहे हैं. जिस रोड को सरकार सामरिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण बता रही है, क्योंकि ये रास्ता सीधा चीन बॉर्डर तक जाता है, वो रोड बारिश की मार भी नहीं झेल पा रही है.
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क्या है ऑल वेदर रोड: उत्तराखंड में ऑल वेदर रोड की घोषणा साल 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देहरादून स्थित परेड ग्राउंड में एक भव्य कार्यक्रम में की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की मौजूदगी में इस योजना का शुभारंभ हुआ. तब लक्ष्य रखा गया कि उत्तराखंड में साल 2022 तक ऑलवेदर रोड का काम पूरा हो जाएगा. हालांकि इस बीच में कोरोना की वजह से काम को भी रोकना भी पड़ा. लिहाजा अब इसका काम को पूरा करने की डेडलाइन बढ़ा दी गई है.
उत्तराखंड में ऑलवेदर रोड के तहत 889 किलोमीटर लंबी सड़क को डबल लेन किया जा रहा है. इस योजना का खर्च लगभग 12 हजार करोड़ रुपए का बताया जा रहा है. सड़क परिवहन एवं राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्रालय ने 53 हिस्सों में इस काम को बांटा है. अभी तक लगभग 90% काम इस परियोजना में हो चुका है.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि उत्तराखंड में ऑलवेदर रोड के बनने की वजह से चार धाम यात्रा और दूसरे धार्मिक और पर्यटक स्थलों पर यात्रियों को पहुंचने में बेहद कम समय लग रहा है. ऑलवेदर रोड के निर्माण की वजह से सेना बॉर्डर तक पहले के समय के अनुसार बेहद जल्दी पहुंच जाती है. चारधाम यात्रा के मंदिरों में पहुंचने में जो समय उस वक्त 12 से 13 घंटे का लगता था. अब वह घटकर लगभग 7 से 8 घंटे हो गया है. ऑल वेदर रोड का काम ऋषिकेश से बदरीनाथ ऋषिकेश से गंगोत्री टिहरी गढ़वाल जैसे जिलों में तेजी से पूरा हुआ है.
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पीएम का है ड्रीम प्रोजेक्ट:ये परियोजना पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार इस परियोजना की मॉनिटरिंग करते रहते हैं. तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत हों या मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट के बारे में अपडेट लेते रहते हैं. इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद अपने कार्यालय में बैठकर कई बार ड्रोन के माध्यम से इस सड़क का काम देखा है.
मगर मौजूदा हालात में पीएम मोदी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट को बनाने वाली कंपनियां और ठेकेदार शायद सड़क की गुणवत्ता से समझौता कर रहे हैं. यही कारण है कि साल 2021 में और 2022 में भी ऑलवेदर रोड के कई हिस्से हल्की सी बरसात में भी बह गये हैं. ये वो तमाम सड़कें हैं, जो न केवल बनकर तैयार हो गई थी. बल्कि एक साल से इन सड़कों पर वाहन भी दौड़ रहे थे, लेकिन ऑलवेदर रोड चार दिन की बरसात में ढह कर नदी में समा गई. चमोली के नंदप्रयाग के पास पुरसाड़ी में सड़क बने हुए लगभग साल भर का समय बीत गया है. जैसे ही 2 से 3 दिनों की बरसात हुई वैसे ही यहां लगभग 50 मीटर का हिस्सा सिर्फ आरसीसी की दीवार के ढहने से सड़क क्षतिग्रस्त हो गई.
अब सवाल यह खड़ा होता है कि एक दीवार के सहारे इन सड़कों को रोका जा रहा है तो आने वाले समय में उत्तराखंड के तमाम जगहों पर बन रही ऑलवेदर रोड का क्या हाल होगा? चमोली में जिस जगह यह सड़क का हिस्सा है. उसके बारे में कहा जा रहा है के लंबे समय से दीवार के आसपास से पानी का रिसाव हो रहा था. अचानक हुई बरसात में पूरी की पूरी दीवार ढह गई.
दीवार के ढह जाने की वजह से नेशनल हाईवे का हिस्सा किस तरह बर्बाद हो गया, ये सभी के सामने हैं. इस पूरे मामले को लेकर हमने कार्यदाई संस्था से बात करनी चाही. इसके लिए हमने सबसे पहले पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों को फोन लगाया. हमारी बात प्रमोद कुमार से हुई. हमने जब इस सड़क के बारे में उनसे बातचीत की तो उन्होंने बताया यह पूरा काम केंद्रीय एजेंसी देख रही है, लिहाजा इस बारे में वही जवाब दे सकते हैं.
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क्या कहते है NHIDCL के अधिकारी:हमें मालूम हुआ इस सड़क के निर्माण की जिम्मेदारी केंद्रीय एजेंसी एनएचआईडीसी की है. लिहाजा हमने कंपनी के एमडी संदीप कार्की को फोन मिलाया. चमोली में बही सड़के के बारे में जब उन्हें जानकारी दी गई तो उन्होंने इस बारे में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया, इसके बाद जब हमने दोबारा उनसे आग्रह किया तो उन्होंने हमारे सवालों की जवाब दिया.
सवाल: मौजूदा समय में उनके पास ऑल वेदल रोड को लेकर क्या जानकारी है. इन सड़कों के बहने का क्या कारण है
संदीप कार्की: अभी हमारे यह प्रोजेक्ट अंडर प्रोसेस हैं. अभी यह प्रोजेक्ट कंप्लीट नहीं हुआ है. ऐसे में अगर कहीं भी सड़कें डैमेज होती हैं तो दोबारा सेकॉन्ट्रैक्टरउन्हें बनाने का काम करता है. इतना ही नहीं अगर यह सड़क कंप्लीट भी हो जाएगी तो 4 सालों तककॉन्ट्रैक्टरइसको मेंटेन करेगा. सड़क पर कोई भी टूट-फूट होगी तो यह ठेकेदार की जिम्मेदारी होती है. ठेकेदार से इस पर दोबारा काम करवाया जाएगा.
सवाल: आखिरकार इस पूरे सड़क के बह जाने की वजह से कितने करोड़ का नुकसान हुआ है