देहरादून/ऋषिकेश: उत्तराखंड में ब्लैक फंगस के रोज नए मामले सामने आ रहे है. शनिवार को भी ऋषिकेश एम्स में ब्लैक फंगस के सात नए मरीज सामने आए हैं. ब्लैक फंगस के अभीतक कुल 67 मामले सामने आ चुके हैं. जिसमें से 9 मरीजों की मौत भी हो चुकी है.
एम्स के जनसंपर्क अधिकारी हरीश मोहन थपलियाल ने बताया कि आज (शनिवार) शाम 7 बजे तक एम्स ऋषिकेश में म्यूकोर माइकोसिस के कुल 64 मरीज आ चुके हैं, जिनमें से इलाज के दौरान अब तक 5 लोगों की मृत्यु हुई है और एक मरीज को इलाज के बाद डिस्चार्ज किया जा चुका है. अब एम्स में म्यूकोरमाइकोसिस के 58 रोगी भर्ती हैं.
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एम्स ऋषिकेश में ब्लैक फंगस के मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए डॉक्टर लगातार मरीजों की निगरानी कर रहे हैं. एम्स ऋषिकेश में बकायदा एक वॉर्ड भी ब्लैक फंगस के लिए बनाया गया है, जहां पर 15 डॉक्टर ब्लैक फंगस से ग्रसित मरीजों का उपचार कर रहे हैं.
जॉलीग्रांट हिमालयन अस्पताल में मिले ब्लैक फंगस के 9 मरीज
ब्लैक फंगस से ग्रसित मरीजों की संख्या अब एम्स के अलावा अन्य अस्पतालों में भी बढ़ने लगी है. हिमालयन अस्पताल के नोडल अधिकारी संजय दास ने बताया कि जॉलीग्रांट के हिमालयन अस्पताल में अभी तक 9 ब्लैक फंगस के मरीज पाए गए हैं. जबकि, अभी तक हिमालयन अस्पताल में दो लोगों की मौत हो चुकी है.
नैनीताल और उधम सिंह नगर में ब्लैक फंगस से 1-1 मरीजों की मौत
नैनीताल जिले में ब्लैक फंगस का एक मरीज मिला है. जबकि, एक की मौत हो चुकी है. उधर, उधम सिंह नगर में भी एक मरीज संक्रमित मिला है, जबकि, एक मरीज की मौत हो गई है.
क्या है ब्लैक फंगस?
ब्लैक फंगस (Black Fungus) का साइंटिफिक (Scientific) नाम म्यूकर माइकोसिस (Mucormycosis) या ब्लैक फंगस है. यह एक फफूंद की तरह होता है. ब्लैक फंगस वातावरण में पाए जाने वाले फफूंद की वजह से होता है. खासकर मिट्टी में इसकी मौजूदगी ज्यादा होती है.
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किन्हें होता है ब्लैक फंगस ?
अधिकतम यह कोरोना वायरस से संक्रमित हुए मरीजों में होता है. ज्यादातर यह उन मरीजों में होता है, जिन्हें शुगर (Diabetes) की बीमारी हो या फिर उनकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो. दरअसल ब्लैक फंगस उन्हीं लोगों पर अटैक करता है, जिनकी इम्यूनिटी कमजोर होती है. क्योंकि शुगर के मरीज लंबे समय से स्टेरॉइड्स का इस्तेमाल करते हैं. जिसके चलते उनकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. ऐसे में ब्लैक फंगस को शुगर के मरीजों को अपना शिकार बनाना आसान हो जाता है.
आंख से शुरू होकर मस्तिष्क तक कैसे पहुंचता है ब्लैक फंगस ?
ब्लैक फंगस शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है. शुरुआती चरण में ब्लैक फंगस से न्यूरॉन (Neuron) और ओरोन (Oron) प्रभावित होने लगते हैं. इसके बाद न्यूरॉन और ओरोन में काले रंग का धब्बा आना शुरू हो जाता है. इसके बाद यह इंफेक्शन सांस के द्वारा न्यूरो साइनसिस (Neuro Synesis) में चला जाता है और फिर आंख के चारों तरफ इसके लक्षण पाये जाने लगते हैं. जिससे आंख के चारों ओर काला दाग पड़ने लगता है. इसे सायना आर्बिटल इंफेक्शन (Infection) कहते हैं. यहां से यह इंफेक्शन मस्तिष्क तक पहुंच जाता है. इस अवस्था में यह घातक हो जाता है. ऐसे में मरीज की मृत्यु तक हो जाती है.
क्या है ब्लैक फंगस का इलाज ?
ब्लैक फंगस बहुत खतरनाक है. इसके इलाज में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए. साथ ही सही समय पर सही उपचार करना चाहिए. इस तरह के लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. इसका इलाज दवाइयों से भी हो सकता है. हालांकि कुछ मौकों पर सर्जरी भी करनी पड़ती है.
अगर आपको शुगर है और कोरोना से संक्रमित हो गए हैं, तो अपना ब्लड शुगर नियमित तौर पर चेक करते रहें और शुगर की दवाई बिल्कुल संभल कर लें. ब्लैक फंगस के लिए चार से छह हफ्ते तक दवाइयां लेनी पड़ती हैं. हालांकि गंभीर मामलों में तीन-तीन महीने तक इलाज चलता है. ब्लैक फंगस के लिए इंजेक्शन लाइपोसोमल एम्फोटेरेसिन-बी काफी लाभकारी है.