देहरादून: आगामी 2022 विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी दल अभी से चुनावी रणनीति बनाने में जुट गये हैं. प्रदेश में हाल ही में हुआ नेतृत्व परिवर्तन इसका ताजा उदाहरण है. जहां 2022 के समीकरणों को ध्यान में रखकर बीजेपी ने पहला दांव खेला है. आगामी 2022 विस. चुनाव के दृष्टिकोण से देखें तो भाजपा ने अपना पूरा फोकस कुमाऊं पर केंद्रित कर दिया है. जिसके पीछे हरीश रावत एक बड़ी वजह बताए जा रहे हैं.
प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही सियासी दलों ने सियासी बिसात बिछाने की तैयारी शुरुआत कर दी है. भाजपा के मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम को देखें तो उत्तराखंड में भाजपा पूरी तरह से कुमाऊं पर केंद्रित दिखती है. मुख्यमंत्री का कुमाऊं से होना, कैबिनेट में मंत्रियों की संख्या और केंद्रीय कैबिनेट में भी गढ़वाल के बड़े चेहरे को हटाकर कुमाऊं से आने वाले अजय भट्ट को शामिल करना इस तरफ साफ इशारा करता है.
भाजपा में गढ़वाल के नजरिये से देखा जाये तो उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग पूरी तरह से नजरअंदाज किये गये हैं. वहीं, टिहरी से केवल सुबोध उनियाल, देहरादून से गणेश जोशी, जो कि मूल रूप से कुमाऊंनी ही माने जाते हैं, हरिद्वार से यतीश्वरानंद मंत्रिमंडल में शामिल हैं. भले ही प्रदेश भाजपा की कमान गढ़वाल मंडल से आने वाले मदन कौशिक संभाल रहे हैं. फिर भी इस समय पावर कुमाऊं की ओर शिफ्ट होती दिख रही है.
पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने तराई से लेकर पहाड़ तक के मतदाताओं को साधने की कोशिश की है. इसके साथ ही कुमाऊं और गढ़वाल के बीच बैलेंस बनाने में भी पार्टी कामयाब रही. पिछले साढ़े तीन माह से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री दोनों गढ़वाल से ही थे. कुमाऊं के भाजपा कार्यकर्ता दोनों पदों में से किसी एक पर कुमाऊं के व्यक्ति को मौका देने की मांग कर रहे थे. हालांकि विधानसभा चुनाव से महज कुछ महीने पहले यह दायित्व पुष्कर सिंह धामी को दिया गया है. धामी को सीएम बनाकर बीजेपी ने कुमाऊं की 29 सीटों को साधने की कोशिश भी की है.