देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में अब ज्यादा वक्त नहीं है. ऐसे में राजनीतिक पार्टियां भी जोर-शोर से चुनावी तैयारियों में जुटी हुई हैं. राजनीतिक दल उत्तराखंड के दो अहम हिस्से- गढ़वाल और कुमाऊं को साधने में लगे हैं. वहीं, बीजेपी इस बार गढ़वाल के मुकाबले कुमाऊं पर ज्यादा फोकस करती हुई दिख रही है. जानकर इसके कई मतलब निकाल रहे हैं. जानिए क्या है बीजेपी का कुमाऊं प्लान.
गढ़वाल और कुमाऊं कमिश्नरी अंग्रेजों के शासनकाल से ही अस्तिव में है. आजादी के बाद भी यहां की व्यवस्था इसी तरह चलती आ रही थी. उत्तराखंड राज्य गठन के बाद भी यहां के प्रशासनिक तंत्र में कोई फेरबदल नहीं किया गया. उत्तराखंड के सिसायी समीकरण भी गढ़वाल और कुमाऊं मंडल से ही होकर गुजरते है. यही कारण है कि फिर चाहे सत्ता में बैठे बीजेपी और या फिर विपक्ष दल कांग्रेस दोनों पार्टियों गढ़वाल और कुमाऊं में राजनीतिक संतुलन बनाकर चलती है.
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एक नजर कुमाऊं और गढ़वाल मंडल पर: गढ़वाल और कुमाऊं मंडल पर अगर नजर दौड़ाएं तो गढ़वाल मंडल में 7 और कुमाऊं मंडल में 6 जिले आते हैं. सियासी चश्मे से देखें तो 29 सीटें कुमाऊं मंडल में आती हैं और बाकी की 41 सीटें गढ़वाल मंडल में पड़ती हैं. इसके अलावा अगर गढ़वाल और कुमाऊं के राजनीतिक मायनों को देखा जाए तो गढ़वाल में चारों धाम आते हैं. पिछले 21 सालों से अस्थायी राजधानी के नाम पर गढ़वाल क्षेत्र के देहरादून में ही सत्ता की बयार बहती रही है. एक तरह से देखा जाए तो राज्य में गढ़वाल क्षेत्र में जहां विधानसभा सीटें ज्यादा हैं वहीं, प्रदेश में विकास की गाड़ी गढ़वाल से होकर ही कुमाऊं की ओर जाती है, ऐसे कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.
बीजेपी का गढ़वाल से ज्यादा कुमाऊं पर फोकस:भले ही उत्तराखंड में राजनीतिक लिहाज से गढ़वाल क्षेत्र का दबदबा है, इसके बावजूद भी इस बार बीजेपी की चुनावी रणनीति में एक आश्चर्यजनक बात देखने को मिल रही है और वो है पार्टी का कुमाऊं पर फोकस. उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी का पूरा फोकस कुमाऊं मंडल पर है.
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बीजेपी की रणनीति: इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी उधम सिंह नगर जिले से आते हैं, जो कुमाऊं में आता है. सीएम धामी मूल रूप से कुमाऊं के ही रहने वाले हैं. केंद्रीय राज्य रक्षा मंत्री अजय भट्ट भी कुमाऊं से ही हैं. इसके अलावा उत्तराखंड सरकार में मंत्रियों की बात करें तो 11 की कैबिनेट में से 5 कैबिनेट मंत्री- बंशीधर भगत, रेखा आर्य, बिशन सिंह चुफाल, अरविंद पांडे कुमाऊं और मुख्यमंत्री धामी कुमाऊं से ही हैं. इन सभी समीकरणों को देखकर कह सकते हैं कि बीजेपी की रणनीति में कुमाऊं केंद्र में है.
बीजेपी ने शुरू से ही कुमाऊं क्षेत्र में कई बड़े कार्यक्रम किए हैं. बीजेपी ने सबसे पहले एक बड़ा चिंतन शिविर कुमाऊं क्षेत्र में आयोजित किया. उसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कुमाऊं में दूसरा दौरा चल रहा है. बीजेपी ने कुमाऊं से ही अपनी सैनिक सम्मान यात्रा की शुरुआत की है और खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपने गृह जनपद उधम सिंह नगर में अपेक्षाकृत कई चुनावी दौरा कर चुके हैं.
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गढ़वाल में हुए बीजेपी के चुनावी कार्यक्रमों की बात करें तो गृहमंत्री अमित शाह का एक बड़ा कार्यक्रम हुआ है जो कि देहरादून में हुआ है, लेकिन इसे गढ़वाल से जोड़कर नहीं देख सकते हैं. प्रशासनिक तौर पर तो देहरादून गढ़वाल का ही हिस्सा है, लेकिन देहरादून और हरिद्वार को गढ़वाल का मैदानी इलाका कहा जाता है. जब हम गढ़वाल की बात करते हैं तो उसमें हम उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी और पौड़ी जिले पर फोकस करते हैं.
वहीं, पीएम मोदी के दो दौरों की भी बात करें तो उन्हें पहला दौरा ऋषिकेश एम्स में था, जो मैदानी सीट है. हालांकि, वो भी एक सरकार कार्यक्रम था. दूसरा दौरा केदारनाथ का था. हालांकि, इसे बीजेपी राजनीतिक कम और धार्मिका यात्रा ज्यादा बता रही थी, वो अलग बात है कि पीएम मोदी की केदारनाथ यात्रा को राजनीतिक रंग देने की पूरी कोशिश की गई.