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Published : Jul 8, 2021, 2:18 PM IST

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धामी-भट्ट का चुनाव: चुनावी वर्ष में कुमाऊं को साधने की एक कोशिश

उत्तराखंड में बीजेपी कुमाऊं मंडल को साधने की कोशिश में है. पहले कुमाऊं से क्षत्रिय मुख्यमंत्री धामी और अब ब्राह्मण अजय भट्ट को केंद्र में राज्य मंत्री का जिम्मा दिया गया है. वर्तमान में बीजेपी कुमाऊं की 23 और गढ़वाल की 33 सीटों पर काबिज है.

धामी-भट्ट का चुनाव
धामी-भट्ट का चुनाव

देहरादून:आखिरकार काफी सालों के इंतजार के बाद सांसद अजय भट्ट को उनकी मुराद मिल गई है. मोदी मंत्रिमंडल विस्तार में नैनीताल-उधम सिंह नगर सीट से सांसद अजय भट्ट को केंद्र में रक्षा मंत्रालय और पर्यटन में राज्य मंत्री की जिम्मेदारी दी गई है. उत्तराखंड से भट्ट इकलौता चेहरा हैं जो केंद्र में प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. उनसे पहले रमेश पोखरियाल निशंक को केंद्रीय शिक्षा मंत्री की जिम्मेदारी दी गई थी लेकिन स्वास्थ्य कारणों से वो पद पर नहीं रह सके.

हाल ही के घटनाक्रमों पर नजर डालें तो साफ देखा जा रहा है कि बीजेपी कुमाऊं मंडल को साधने की कोशिश में है. पहले कुमाऊं से क्षत्रिय मुख्यमंत्री धामी और अब ब्राह्मण अजय भट्ट को केंद्र में राज्य मंत्री का जिम्मा दिया गया है. वर्तमान में बीजेपी कुमाऊं की 23 और गढ़वाल की 33 सीटों पर काबिज है. आगामी 2022 के चुनाव में बीजेपी की कोशिश है कि 60 प्लस सीटें जीती जाएं और इसलिए भी बीजेपी चुनावी साल में ऐसे फैसले ले रही है.

हालांकि, भट्ट के चुनाव के पीछे उनकी सक्रियता भी रही है. सांसद बनने के बाद से ही अजय भट्ट समय-समय पर प्रदेश से जुड़े मुद्दे संसद में उठाते रहे हैं. इनमें पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन, नेटवर्किंग, गुरुद्वारा क्षेत्र को विकसित करने, जमरानी बांध, काशीपुर फ्लाईओवर निर्माण में देरी सहित कई मुद्दे शामिल हैं. सांसद कोरोना काल में भी बेहद सक्रियता से काम करते रहे, जिससे उनको रिपोर्ट कार्ड में अच्छे नंबर मिले हैं.

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने तत्कालीन सांसद भगत सिंह कोश्यारी की जगह तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट को नैनीताल-उधम सिंह नगर सीट से मैदान में उतारा था. जब भट्ट को पार्टी ने प्रत्याशी चुना एक सवाल जो सबके जेहन में उठा कि क्या अजय भट्ट इस बार खुद से जुड़ा मिथक तोड़ पाएंगे.

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इस बात में कोई शक नहीं था कि तब उत्तराखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रहे अजय भट्ट संगठन के लिए पूरी तरह से समर्पित रहे, लेकिन उनके साथ जुड़ा एक मिथक लगातार उनकी परेशानी बढ़ाता जा रहा था. दरअसल, राज्य बनने के बाद सभी चुनाव परिणामों में देखा गया कि जिस भी चुनाव को अजय भट्ट जीते हैं, उस चुनाव में बीजेपी की सरकार नहीं बन पाती है. इसके उलट जब-जब अजय भट्ट चुनाव हारे हैं तो बीजेपी की सरकार बनी है. बार-बार हुए इस घटनाक्रम के चलते अजय भट्ट के साथ यह मिथक जुड़ गया था.

राज्य बनने के बाद पहली बार साल 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में अजय भट्ट रानीखेत विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और जीते भी लेकिन राज्य में सरकार कांग्रेस की बनी और नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने. इसके बाद हुए 2007 के विधानसभा चुनाव में रानीखेत विधानसभा से अजय भट्ट चुनाव हार गए लेकिन प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी और पहले बीजेपी के भुवनचंद्र खंडूड़ी और बाद में रमेश पोखरियाल निशंक मुख्यमंत्री बने. इसी तरह से 2012 में भी रानीखेत से अजय भट्ट ने विधानसभा चुनाव तो जीता लेकिन प्रदेश में सरकार इस बार कांग्रेस की बनी और पहले विजय बहुगुणा और बाद में हरीश रावत मुख्यमंत्री बने.

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इतनी घटनाओं के बाद 2017 में सबको उम्मीद थी कि मोदी लहर के के कारण तो ये मिथक टूटेगा, लेकिन मिथक कायम रहा और इस बार बीजेपी की प्रदेश में प्रचण्ड बहुमत से सरकार बनी लेकिन मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार माने जाने वाले अजय भट्ट एक बार फिर अपनी ही रानीखेत सीट से चुनाव हार गए.

हालांकि, साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में कोश्यारी के स्थान पर चुनाव लड़े भट्ट ने न केवल जीत दर्ज की बल्कि खुद से जुड़े मिथक को भी तोड़ दिया. इस जीत के बाद भट्ट को उम्मीद थी कि सियासी कद ऊंचा होने पर उन्हें केंद्र में उत्तराखंड कोटे से मंत्री पद मिलेगा लेकिन रमेश पोखरियाल निशंक ने बाजी मार ली.

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लेकिन इधर, राज्य की सियासत में बहुत बड़ा उलटफेर हो गया और पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाते हुए तीरथ सिंह रावत को जिम्मा दिया गया और तीन महीने के अंदर ही युवा चेहरे पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बना दिया गया, जो कुमाऊं क्षेत्र से आते हैं और फिर केंद्र से निशंक को हटाते हुए भट्ट की एंट्री हो गई. भट्ट को नई जिम्मेदारी मिलने से कुमाऊं में विकास कार्यों की रफ्तार में तेजी आने के साथ ही बड़ी परियोजनाएं कुमाऊं के खाते में आ सकती हैं.

क्षत्रिय चेहरे धामी को प्रदेश की सत्ता सौंपने के बाद बीजेपी ने अब अजय भट्ट को केंद्र में राज्य मंत्री बनाकर कुमाऊं को आगे बढ़ाया है. भट्ट के साथ ही कुमाऊं के ब्राह्मण वोटरों को लुभाने की कोशिश भी की गई है.

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ये कहना गलत नहीं होगा कि ये सीधे-सीधे पूर्व सीएम और कांग्रेस के चेहरे हरीश रावत को चुनौती है. गढ़वाल की अपेक्षा हरीश रावत का कुमाऊं में ज्यादा प्रभाव है. उनके सामने अब धामी और भट्टे जैसे चेहरे खड़े कर दिए गये हैं.

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