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उत्तराखंड चुनाव के लिए बीजेपी की व्यूह रचना, नई टीम से साधेगी कई समीकरण - उत्तराखंड चुनाव न्यूज

भाजपा उत्तराखंड की सत्ता में दोबारा प्रचंड बहुमत के साथ वापसी करना चाहती है. इस बार पार्टी ने 70​ विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में 51 प्रतिशत वोट और 60 सीटें हासिल करने का लक्ष्य रखा है. जिसकी जिम्मेदारी उन्हें तीन बड़े चेहरों को दी है. जिनका उत्तराखंड से कोई नाता नहीं है, लेकिन इसके पीछे बड़ी रणनीति छिपी है.

चुनावी प्रभारी
चुनावी प्रभारी

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Published : Sep 8, 2021, 10:41 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं. बीजेपी ने मिशन 2022 के उत्तराखंड का चुनाव प्रभारी भी नियुक्त कर दिया है. इसके अलावा दो सह प्रभारियों की नियुक्ति की है. बीजेपी जिन नेताओं को चुनाव की जिम्मेदारी है, उनका उत्तराखंड के कोई नाता नहीं है. लेकिन भी हाईकमान ने उन पर विश्वास जताया है. आखिर क्यों इसी पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट...

आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी तैयारियों में जुट गई है. बुधवार को भारतीय जनता पार्टी ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए उत्तराखंड में अपने प्रभारी और सह प्रभारी तैनात कर दिए हैं. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी को उत्तराखंड का चुनाव प्रभारी बनाया है. प्रह्लाद जोशी राजस्थान से आते है. वहीं लोकसभा सांसद लॉकेट चटर्जी और राष्ट्रीय प्रवक्ता सरदार आरपी सिंह को उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए सह प्रभारी नियुक्त किया है. लॉकेट चटर्जी पश्चिम बंगाल से आती हैं.

जिन तीन नेताओं को बीजेपी ने उत्तराखंड विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी दी है, उनका उत्तराखंड से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है. फिर भी बीजेपी ने इन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी है, लेकिन इसके पीछे कई बड़ी वजह से छिपी है.

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प्रह्लाद जोशी:उत्तराखंड के चुनाव प्रभारी बनाए गए प्रह्लाद जोशी कर्नाटक से सांसद हैं और वह मूल रूप से राजस्थान के हैं. लेकिन बुधवार को जब उत्तराखंड के लिए चुनाव प्रभारी के रूप में उनकी घोषणा हुई तो उत्तराखंड के ज्यादातर लोगों को उनका नाम सुनकर ही ऐसा लगा कि यह चेहरा उत्तराखंड से ही है. क्योंकि उनके नाम से उत्तराखंडियत झलकती है. दरअसल ऐसा इसलिए है क्योंकि उत्तराखंड में एक बड़ा तबका जोशी ब्राह्मणों का है. जोशी ब्राह्मणों का पंत ब्राह्मणों से गहरा संबंध माना जाता है.

वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा बताते हैं कि जोशी और पंत खुद को बड़ी धोती का पंडित मानते हैं. लिहाजा ब्राह्मण समाज पर प्रह्लाद जोशी नाम का असर साधने का प्रयास बीजेपी करेगी. यहीं नहीं कुमाऊं क्षेत्र में इसका सबसे ज्यादा असर देखने को मिलेगा. क्योंकि कुमाऊं में पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा में पंत और जोशी समाज का सबसे बड़ा दबदबा है. हालांकि यहां पर बीजेपी के लिए कुछ चुनौतियां भी हैं. क्योंकि अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ में हरीश रावत की पकड़ मजबूत है.

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उत्तराखंड का बंगाली कनेक्शन: लॉकेट चटर्जी पश्चिम बंगाल से आती हैं, लेकिन उत्तराखंड का बंगाल से बड़ा कनेक्शन है. दरअसल, उधमसिंह नगर जिले की 9 विधानसभा सीटों पर अगर नजर दौड़ाए तो किच्छा, काशीपुर और खटीमा ऐसी विधानसभा में हैं, जहां पर बंगाली समाज बड़ी संख्या में रहता है. ये वो लोग हैं जो तत्कालीन पूर्व पाकिस्तान से आए थे.

उधमसिंह नगर में बीजेपी पहाड़ी वोटरों पर तो पकड़ बना लेती है, लेकिन जनजातीय और बंगाली समाज के वोटर उनकी पहुंच से बाहर है. इसीलिए बंगाली समाज के वोटरों को साधने के लिए लॉकेट चटर्जी को भी उत्तराखंड में चुनाव सह प्रभारी बनाया गया है. बंगाली समाज का वोट पाने के लिए हाल ही में कैबिनेट बैठक में फैसला लिया गया था कि जाति प्रमाण पत्र पर लिखे जाने वाला पूर्वी पाकिस्तान शब्द को हटाया जाएगा. वहीं मुख्यमंत्री की विधानसभा सीट खटीमा में बड़ी संख्या में बंगाली हैं.

किसानों और सिखों को साधने की कोशिश: उधम सिंह नगर जिले में बड़ी संख्या में किसान और सिख समुदाय के लोग भी रहते है. सिखों का उधम सिंह नगर जिले के साथ नैनीताल की कुछ विधानसभा सीटों पर अच्छी पकड़ है. यही कारण है कि बीजेपी ने राष्ट्रीय प्रवक्ता सरदार आरपी सिंह को सह प्रभारी बनाया है. ताकि सिख समुदाय के बीच जाकर बीजेपी के लिए वोट ला सकें.

बीजेपी की रणनीति में हरीश रावत केंद्र बिंदु:वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत का कहना है कि कांग्रेस ने अपना पूरा ठीकरा हरीश रावत के सिर डाल दिया है. सरकार आए तो हरीश रावत और न आए तो भी हरीश रावत. लिहाजा बीजेपी के लिए चुनौती केवल हरीश रावत है. यहीं वजह है कि बीजेपी अपनी पूरी चुनाव रणनीति हरीश रावत को लेकर ही बना रही है.

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जय सिंह रावत की माने तो बीजेपी में हमेशा से ही चुनाव प्रबंधन समिति के लोग बाहर के ही होते है. ताकि उनका दखल प्रदेश में गलत तरीके से न हो. लेकिन इसके साथ-साथ जातीय समीकरण और समाज के अलग-अलग वर्गों को ध्यान में रखकर भी चुनाव प्रबंधन समिति का गठन किया जाता है.

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