देहरादून:उत्तराखंड को हिमाचल और जम्मू-कश्मीर की तर्ज पर सेब उत्पादन में नई पहचान दिलाने को सरकार प्रयासरत है. इसके लिए राज्य सरकार ने 24 से 26 सितंबर तक अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव का आयोजन किया. सेब महोत्सव का आज आखिरी दिन था. उत्तराखंड में किसानों को फायदा पहुंचाने और सेब उत्पादन के क्षेत्र में बेहतर स्थिति में लाने के लिए देहरादून में पहली बार अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव का आयोजन किया गया. इस महोत्सव में किसानों को सेब उत्पादन और उनकी किस्मों के बारे में बारीकी से जानकारी भी दी गई.
महोत्सव में दिखीं सेब की 16 किस्में:अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव में न्यूजीलैंड, अमेरिका और चीन के सेब को प्रदर्शनी में रखा गया. वहीं, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की अलग-अलग किस्म को भी प्रदर्शनी में जगह दी गई. प्रदर्शनी में कुल 16 तरह के सेब की किस्म में मौजूद थी, जिसमें रेड डिलीशियस, रॉयल डिलीशियस, रेड गोल्ड, रिचए रेड, गोल्डन डिलीशियस, ऑर्गन स्पर, रेड चीफ, रेड फ्यूजी, गेल गाला, राइमर, ग्रैनी स्मिथ, सिल्वर स्पर, रेड वैलाक्सटार, क्रिम्सन सुपर, और चीफवांस डिलीशियस शामिल है.
देहरादून में कहने को तो अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव था लेकिन ये कुछ राज्यों तक ही सीमित रहा. जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश को छोड़ दे तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सेब उत्पादन को लेकर किसी भी प्रतिनिधि ने हिस्सा नहीं लिया. यह प्रदेश का पहला अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव था, तो कमियां भी दिखेंगी. लेकिन उत्तराखंड में सेब उत्पादन को लेकर अनुभव बेहद कड़वे हैं.
हिमाचल की पेटियों में सब बेचने को मजबूर काश्तकार:देश में सेब उत्पादन के लिए मुख्य तौर पर 2 राज्यों का नाम लिया जाता है, जिसमें पहला जम्मू-कश्मीर और दूसरा हिमाचल है, जबकि उत्तराखंड इस मामले में देश में तीसरा राज्य है, जहां सेब का उत्पादन सबसे ज्यादा होता है. इसके बावजूद गुणवत्ता युक्त सेब देने और इस क्षेत्र में अपना ब्रेंड तैयार करने में अब तक उत्तराखंड असफल ही दिखाई दिया है. हालत यह हैं कि कृषि मंत्री सुबोध उनियाल खुद कहते हैं कि प्रदेश का सेब हिमाचल की पेटियों में बेचा जाता है. यानी उत्तराखंड के सेब उत्पादकों को सरकार से इतनी भी मदद नहीं मिलती कि सेब की बेहतर मार्केटिंग की जा सके.
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सेब काश्तकारों को बढ़ावा देने का प्रयास नहीं:उत्तराखंड में करीब 57 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है. प्रदेश में सबसे ज्यादा सेब उत्पादन उत्तरकाशी जिले में होता है, यहां अकेले करीब 20 हजार मीट्रिक टन से ज्यादा उत्पादन किया जाता है. उत्तराखंड राज्य स्थापना को 20 साल हो चुके हैं. लेकिन सेब काश्तकारों को बढ़ावा देने के लिए आज तक कोई प्रयास नहीं हुआ. जिसका नजीता ये हुआ कि उत्तराखंड में ना तो सेब की बेहतर पौध को लेकर कुछ हुआ और ना ही गुणवत्ता पर कोई काम हुआ.
हरिद्वार और उधम सिंह नगर जिले को छोड़ दिया जाए तो बाकी सभी 11 जिलों में ज्यादा या कम मात्रा में सेब का उत्पादन किया जा रहा है. इतनी बड़ी मात्रा में उत्पादन होने के बावजूद भी उत्तराखंड सरकार में कभी सेब को लेकर ज्यादा गंभीरता नहीं दिखाई. यही कारण है कि मजबूरी में काश्तकारों को हिमाचल पेटियों में अपने सेब को बेचना पड़ता है. वैसे यह पहला मौका है जब राज्य सरकार ने उत्तराखंड के लिए 4 लाख पेटी की व्यवस्था की है, जिसमें प्रदेश का सेब प्रदेश के नाम से बाजारों तक पहुंच रहा है.
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