उत्तराखंड

uttarakhand

By

Published : Jan 15, 2021, 6:41 AM IST

Updated : Feb 2, 2021, 3:25 PM IST

ETV Bharat / state

Army Day 2021: यूं ही नहीं कहते उत्तराखंड को सैन्य धाम, जान न्यौछावर करने की है परंपरा

प्रथम विश्वयुद्ध से लेकर अब तक देश की सीमाओं के सजग प्रहरियों का दायित्व अपने प्राणों की आहुति देकर भी प्रदेश के जांबाजों ने अपने सैन्य धर्म को निभाया है. उत्तराखंड के सैन्य इतिहास का ही सबब है कि यहां सेना एक करियर नहीं बल्कि परंपरा है.

Army Day 2021
Army Day 2021

देहरादून: उत्तराखंड वीर सैनिकों की भूमि है. प्रदेश के समृद्ध सैन्य इतिहास के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तराखंड को सैन्य धाम मानते हैं. प्रथम विश्वयुद्ध से लेकर अब तक देश की सीमाओं के सजग प्रहरियों का दायित्व अपने प्राणों की आहुति देकर भी प्रदेश के जांबाजों ने अपने सैन्य धर्म को निभाया है.

देश की सेना में हर 100वां सैनिक उत्तराखंड का है. किसी भी सेना का जिक्र होता है तो उसमें देवभूमि उत्तराखंड का नाम गौरव से लिया जाता है. आजादी से पहले हो या बाद उत्तराखंड का नाम हमेशा सेना के गौरव से जुड़ा रहा है. आलम यह है कि हर साल उत्तराखंड के करीब नौ हजार युवा सेना में शामिल होते हैं.

राज्य में 1,69,519 पूर्व सैनिकों के साथ ही करीब 72 हजार सेवारत सैनिक हैं. वर्ष 1948 के कबायली हमले से लेकर कारगिल युद्ध और इसके बाद आतंकवादियों के खिलाफ चले अभियान में उत्तराखंड के सैनिकों की अहम भूमिका रही है. खास बात यह है कि उत्तराखंड के युवा अंग्रेजी हुकूमत में भी पहली पसंद में रहते थे.

राज्य के जवान देश के लिए शहीद हुए हैं. 1962 के युद्ध से अब तक उत्तराखंड के करीब 2285 जवान देश के लिए शहीद हुए हैं. मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल, मेजर चित्रेश बिष्ट और सीआरपीएफ जवान मोहनलाल रतूड़ी, वीरेंद्र राणा की जम्मू कश्मीर में शहादत से पूरा प्रदेश हिल गया है.

एक बार फिर देश को यह याद आया है कि इस छोटे से पहाड़ी प्रदेश ने देश की रक्षा के लिए हमेशा बढ़-चढ़ कर कदम बढ़ाए हैं. आजादी से पहले की बात हो या आजादी के बाद की, देवभूमि के सपूतों ने देश की रक्षा के लिए अपनी जान की परवाह कभी नहीं की.

देवभूमि के सैनिकों को सम्मान

प्रथम विश्वयुद्ध हो या द्वितीय विश्व युद्ध इस राज्य के वीरों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया था. उत्तराखंड के सपूतों की वीरता से प्रभावित हो कर अंग्रेजों ने इस राज्य के वीरों को अनेक मेडल से नवाजा. आजादी से पहले उत्तराखंड के सपूतों को असामान्य सपूतों ने 3 विक्टोरिया क्रॉस, 53 इंडियन ऑडर ऑफ मेरिट, 25 मिलिट्री क्रॉस, 89 आईडी एसएम और 44 मिलिट्री मेडल हासिल किए थे.

1962 में हुए भारत-चीन युद्ध, 1965 में पाकिस्तान से युद्ध, 1971 में भारत-पाक युद्ध में उत्तराखंड के जवानों का बेहद महत्वपूर्ण योगदान रहा है. सिर्फ 1971 के युद्ध में उत्तराखंड के सबसे ज्यादा करीब 250 जवान शहीद हुए थे. देश के लिए इन युद्धों में अदम्य साहस का परिचय देने के लिए उत्तराखंड को अभी तक 6 परमवीर और अशोक चक्र, 29 महावीर चक्र, 3 अति विशिष्ट सेवा मेडल, 100 वीर चक्र, 169 शौर्य चक्र, 28 युद्ध सेवा मेडल, 745 सेनानायक, 168 मेंशन इन डिस्पैचिस जैसे मेडल हासिल हुए हैं.

पहले विश्वयुद्ध से लेकर अब तक देश की सीमा पर किसी भी तरह की तपिश को यहां के सैनिकों ने किसी न किसी रूप में अपने सीने पर सहकर यह साबित भी किया. ब्रिटिश शासनकाल में कुमाऊं और गढ़वाल रेजीमेंट स्थापित की गई थी। शायद ही कोई ऐसा पदक हो प्रदेश के वीर जांबाज सैनिकों और सैन्य अधिकारियों ने हासिल न किया हो.

15 जनवरी का दिन भारतीय सेना के लिए बेहद खास है. इस दिन भारतीय थल सेना आर्मी डे के रूप में मनाती है. भारतीय सेना आज अपना 73वां स्थापना दिवस मना रही है. इस मौके पर राजधानी दिल्ली में कैंट स्थित करियप्पा ग्राउंड में सेना दिवस परेड का आयोजन किया जाएगा. थलसेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे परेड की सलामी लेंगे और सैनिकों को संबोधित करेंगे.

क्यों मनाया जाता है 'आर्मी डे'

15 जनवरी को आर्मी डे मनाने के पीछे दो बड़े कारण हैं. पहला ये कि 15 जनवरी 1949 के दिन से ही भारतीय सेना पूरी तरह ब्रिटिश थल सेना से मुक्त हुई थी. दूसरी बात इसी दिन जनरल केएम करियप्पा को भारतीय थल सेना का कमांडर इन चीफ बनाया गया था. इस तरह लेफ्टिनेंट करियप्पा लोकतांत्रिक भारत के पहले सेना प्रमुख बने थे. केएम करियप्पा 'किप्पर' नाम से काफी मशहूर रहे.

Last Updated : Feb 2, 2021, 3:25 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details