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उत्तराखंड में लंपी वायरस का खतरा बरकरार, मृत्यु दर 2% से ज्यादा - लंपी पर सौरभ बहुगुणा का बयान

उत्तराखंड में लंपी वायरस का कहर गोवंश पर लगातार बना हुआ है. पिछले कई महीनों से पशुपालन विभाग के लिए परेशानी बने इस वायरस पर अब तक काबू नहीं पाया जा सका है. स्थिति ये है कि इसके चलते जहां कई पशुओं की मौत हो चुकी है तो वहीं इसका दूध उत्पादन पर भी सीधा असर हो रहा है.

Lumpy Virus in Uttarakhand
उत्तराखंड में लंपी वायरस

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Published : Oct 31, 2022, 7:35 PM IST

Updated : Nov 1, 2022, 9:28 AM IST

देहरादूनःउत्तराखंड में गोवंश पर खतरा बने लंपी वायरस को अब तक पशुपालन विभाग काबू नहीं कर पाया है, हालांकि पशुपालन विभाग की तरफ से मवेशियों के वैक्सीनेशन का काम जारी है, लेकिन इसके बावजूद आंकड़े तस्दीक कर रहे हैं कि अब भी वायरस पर परेशानियां जस की तस बनी हुई है.

उत्तराखंड में लंपी वायरस की स्थितिःमौजूदा आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य में अब तक 35,581 पशुओं को यह वायरस (Lumpy Virus in Uttarakhand) अपनी चपेट में ले चुका है. हालांकि, 35,406 पशुओं का इलाज किया जा रहा है. जिसमें से 30,870 पशु अब पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं. उधर, राज्य में वायरस से ग्रसित पशुओं की संख्या के रूप में 3,869 अभी एक्टिव केस में दर्ज है.

उत्तराखंड में लंपी वायरस का खतरा बरकरार

क्या बोले पशुपालन मंत्रीःचिंता की बात ये है कि राज्य में अभी पशुओं की मृत्यु दर 2.3% बना हुआ है. जबकि, रिकवरी रेट अभी 90% से कम है. फिलहाल, रिकवरी रेट 86.75% है. राज्य में अब तक 5,80,822 पशुओं को वैक्सीन दी जा चुकी है. इस सब के बावजूद पशुपालन मंत्री सौरभ बहुगुणा (Animal Husbandry Minister Saurabh Bahuguna) कहते हैं कि इस वायरस पर पूरी तरह से काबू पाया जा चुका है. इसके लिए पशुपालन विभाग ने बेहतर रणनीति के साथ काम भी किया. इसी का नतीजा है कि वायरस के प्रभाव को धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है.

क्या है लंपी वायरस: लंपी स्किन डिजीज को गांठदार त्वचा रोग वायरस भी कहा जाता है. पशु चिकित्साधिकारी डॉ शैलेंद्र वशिष्ठ (Veterinary Officer Dr Shailendra Vashisht) के मुताबिक, यह एक संक्रामक बीमारी है, जोकि एक पशु से दूसरे में होती है. संक्रमित पशु के संपर्क में आने से इससे दूसरा पशु भी ग्रसित हो सकता है. इस वायरस का संबंध गोट फॉक्स और शीप पॉक्स से है. इससे मवेशियों में बुखार समेत कई तरह की दिक्कतें पैदा हो जाती हैं.

ज्यादातर शरीर पर गांठे बन जाती हैं. बाहरी शरीर के साथ नाक के भीतर के साथ जननांग पर गांठें हो जाती है. गांठों का साइज दो से सात सेंटीमीटर तक हो सकता है. इससे पशु परेशान होता है. पैरों में है तो चलने और उठने बैठने में दिक्कत होती है. दस्त और थनेला आदि भी हो सकता है. संक्रमण के चलते दुग्ध उत्पादन पर भी असर पड़ता है. खासकर मक्खी-मच्छर वाहक के रूप में संक्रमण को फैला सकते हैं. ऐसे में साफ-सफाई बेहद जरूरी है. संक्रमण लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सक की सलाह जरूर लें.
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Last Updated : Nov 1, 2022, 9:28 AM IST

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