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EXCLUSIVE: दुर्गम छोड़िए, राजधानी का हाल देखिए, यहां बिना बिजली के DIGITAL होंगे स्कूल!

उत्तराखंड के दुर्गम क्षेत्रों के विद्यालय ही नहीं, बल्कि देहरादून में सीएम आवास और सचिवालय के पास के स्कूलों की स्थिति भी बुरी (bad condition of uttarakhand schools) है. हालात ये है कि स्कूलों में बिजली तक नहीं है. यही कारण है कि राष्ट्रीय स्तर पर हुए आकलन में उत्तराखंड देश के सबसे खराब परफॉर्मेंस वाले राज्यों में शुमार रहा है.

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Published : Nov 15, 2022, 2:22 PM IST

Updated : Nov 15, 2022, 8:12 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड में बच्चों के भविष्य के साथ कैसे खिलवाड़ हो रहा है, इस बात को समझने के लिए किसी दुर्गम या पहाड़ी जिले में जाने की जरूरत नहीं है. इसके लिए मुख्यमंत्री आवास से लेकर सचिवालय के नजदीक स्थित स्कूलों में बदहाल सिस्टम (Dehradun schools are in bad condition) को आसानी से समझा जा सकता है. ये उस शिक्षा विभाग के हालात हैं जो दुर्गम क्षेत्रों में तकनीक ना होने को राष्ट्रीय स्तर पर पिछड़ने की वजह बताता है. इतना ही नहीं, महकमे के अधिकारी खुद में सुधार के बजाय अभिभावकों को उनके कर्तव्य और जिम्मेदारी बताकर ठीकरा उनके सिर ही फोड़ देते हैं.

सरकारी स्कूलों को मॉडर्न स्कूल बनाने और शिक्षा के क्षेत्र में ऐतिहासिक बदलाव करने की बात सुनने में जितनी अच्छी लगती है, उतने ही अच्छे अफसरशाही के वो आंकड़े भी लगते हैं, जो धरती पर आसमान का अनुभव करवाते हैं. लेकिन वो पुरानी हो चुकी दीवारें, सालों से बुझे हुए वो बल्ब और पेटी में बंद कम्प्यूटर कुछ और ही गवाही देते हैं. राजधानी में होने के बावजूद ये अभी भी सपना ही लगता है कि डिजिटल भारत में ये बच्चे भी कभी तो बल्ब की रोशनी में पढ़ सकेंगे, कभी गर्मी लगे तो स्विच ऑन कर पंखे की ठंडी हवा ले सकेंगे, कभी तो वो दिन आएगा जब पेटी में बंद कम्प्यूटर बाहर निकलेंगे और ये नन्हें हाथ की-बोर्ड और माउस चलाकर अपने भविष्य के सपने को साकार कर पाएंगे.

बिना बिजली वाले विद्यालय को दिए कंप्यूटरः सबसे पहले राजधानी देहरादून में सचिवालय से करीब 1 किलोमीटर दूरी पर स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय मानसिंहवाला की स्थिति बताते हैं. यहां शिक्षा विभाग की लापरवाही सरकार की किरकिरी कराने और प्रदेश में शिक्षा की बदहाल व्यवस्था बताने के लिए काफी है. किराए के भवन पर चल रहे विद्यालय में 2016 से बिजली कटी है. बावजूद शिक्षा विभाग ने करीब 2 साल पहले ही विद्यालय को कम्प्यूटर दे दिए. शायद शिक्षा विभाग के अधिकारी जानते ही नहीं हैं कि कम्प्यूटर बिजली से चलता है. इसके अलावा यहां पंखे भी हैं और बल्ब भी, लेकिन लाइट नहीं तो सब बेकार पड़ा है. यहां की प्रिंसिपल रेखा अग्रवाल कहती हैं कि शिक्षा विभाग बेहतर काम कर रहा है. लेकिन बस बिजली का बिल जमा कर दें तो स्कूल का कुछ भला हो जाए.

राजधानी के स्कूलों का REALITY CHECK.

बदहाल स्कूल में मीडिया की एंट्री बैनः इसके बाद हमारी टीम ने राजधानी में मुख्यमंत्री आवास से करीब 1 किलोमीटर दूर स्थित विद्यालय में ऑनलाइन व्यवस्था को जानने की कोशिश की. यहां राजकीय प्राथमिक विद्यालय इंदिरानगर की शिक्षिका ने मीडिया की एंट्री बैन होने की बात कह दी. यही नहीं, शिक्षिका द्वारा बताया गया कि उप शिक्षा अधिकारी पल्लवी ने मीडिया के विद्यालय में दाखिल होने पर बैन लगाया है. शिक्षिका ने ये बताया कि उनके विद्यालय में ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज नहीं होती है. शिक्षा विभाग ने एक टीवी विद्यालय को दिया है जिसके लिए इंटरनेट की कोई व्यवस्था नहीं है.

हालांकि, शिक्षिका बड़े अधिकारियों की परमिशन लाकर ही स्कूल में दाखिल होने की बात कहती रही लेकिन हमारी टीम ने मौके से ही फोन पर देहरादून के चीफ एजुकेशन ऑफिसर मुकुल सती से इस बाबत बात की तो उन्होंने मीडिया एंट्री को लेकर ऐसी कोई बंदिश नहीं होने की बात कही.

दो साल से खराब पड़ा प्रोजेक्टरः सचिवालय और मुख्यमंत्री आवास के करीब के स्कूलों की ऐसी हालत देखने के बाद हमारी शिक्षा निदेशालय के करीब के स्कूल को भी जानने की उत्सुकता बढ़ी. लिहाजा, शिक्षा निदेशालय के चंद कदम दूरी पर स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय ननूरखेड़ा में ईटीवी भारत पहुंचा. यहां ऑनलाइन व्यवस्था पर जानकारी ली तो पता चला यहां भी ना तो ऑनलाइन उपस्थिति की कोई व्यवस्था है, ना ही बच्चों को इस तरह पढ़ाने की कोई सुविधा. जानकारी लगी कि कोरोना काल से पहले शिक्षा विभाग ने प्रोजेक्टर विद्यालय को दिया था. लेकिन कोरोनाकाल के दौरान यह खराब हो गया. बस इसके बाद पिछले करीब दो साल से इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं.

ऐसा नहीं कि उत्तराखंड सरकार का शिक्षा विभाग को लेकर बजट कम हो. इसके बावजूद राजधानी देहरादून के मुख्यमंत्री आवास, सचिवालय और शिक्षा निदेशालय के करीब के विद्यालयों पर ही कोई निगरानी और सुध लेने की व्यवस्था नहीं हो तो दुर्गम क्षेत्र के हालात को समझना तो आसान ही है. अब जानिए प्रदेश में विद्यालयों, शिक्षकों और इन पर खर्च होने वाले बजट की स्थिति. उत्तराखंड सरकार की अर्थ एवं संख्या निदेशालय की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021-22 के अनुसार,

  1. उत्तराखंड में प्राथमिक शिक्षा पर 2022 में 3291 करोड़ खर्च करने का प्रस्ताव है.
  2. प्राथमिक शिक्षा के लिए 2020 में 2708 और 2021 में 3091 करोड़ रुपए का बजट रखा गया था.
  3. माध्यमिक विद्यालयों के लिए 2022 में 4698 करोड़ के बजट का प्रस्ताव है.
  4. 2020 में 3902 और 2021 में 4448 करोड़ रुपए का बजट रखा गया था.
  5. राज्य में 14,183 राजकीय विद्यालय हैं जिसमें 441,454 बच्चे और 31,054 शिक्षक मौजूद हैं.
  6. उधर राजकीय इंटर कॉलेज की संख्या 1406, सहायता प्राप्त इंटर कॉलेज की संख्या 339, हाई स्कूल 912 और सहायता प्राप्त हाई स्कूलों की संख्या 61 है.
  7. इंटर कॉलेज और हाई स्कूल विद्यालयों में 551,977 छात्र पढ़ते हैं जिसमें 30,119 शिक्षक तैनात हैं.

राष्ट्रीय स्तर पर आए इंडेक्स से शिक्षा विभाग इन दिनों ना केवल विपक्षी दलों के निशाने पर है बल्कि आम लोगों में भी शिक्षा विभाग के इन हालातों पर भारी नाराजगी है. जाहिर है कि बच्चों के भविष्य के साथ शिक्षा विभाग के इस खिलवाड़ की नाराजगी जनता में है. लेकिन इन स्थितियों पर सुधार के बजाय शिक्षा मंत्री से लेकर शिक्षा विभाग के अधिकारी बस इन हालातों पर खुद का बचाव करते हुए नजर आए.

भौगोलिक स्थिति जिम्मेदार?: हाल ही में राष्ट्रीय स्तर पर हुए आकलन में उत्तराखंड देश के सबसे खराब परफॉर्मेंस वाले राज्यों में शुमार रहा है. शिक्षा के लिहाज से सबसे पिछले पायदान वाले उत्तराखंड के शिक्षा विभाग के अफसर इस खराब परफॉर्मेंस के लिए भौगोलिक स्थिति के कारण इंटरनेट की पहुंच नहीं होने को बताते हैं. ऑनलाइन अटेंडेंस से लेकर ऑनलाइन असेसमेंट नहीं होने को भी वजह बताया जाता है.

बयान ने चौंकायाःवहीं,शिक्षा विभाग के अपर सचिव का ऐसा बयान आया है जो सबको चौंका रहा है. अपर सचिव योगेंद्र यादव मौजूदा स्थितियों को लेकर शिक्षा विभाग में सुधार के कोई आगामी कार्यक्रमों को बताने के बजाय इन हालातों के लिए अभिभावकों को भी जिम्मेदार बताने से नहीं चूक रहे. अपर सचिव उदाहरण देते हुए कहते हैं कि लोग स्कूल की दीवार ठीक करने के लिए पैसा इकट्ठा करने के बजाय किसी तंबू को लगवाने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं.

वहीं, जब हमारी टीम ने शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने बात करने की कोशिश की तो शायद उनके पास इस गंभीर मामले पर बात करने का समय नहीं था. इसलिए उनके स्टॉफ ने हमारी टीम को बात करने के लिए आगे का समय देने की बात कही.

पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में हम दुर्गम क्षेत्रों में सुविधाएं न होने की बात कहते रहे हैं और इसके लिए सरकार के पास कई वजहें भी रही हैं लेकिन राजधानी देहरादून जैसा वो स्थान जहां से पूरा सरकारी सिस्टम चलता हो वहां ऐसे हालात कैसे स्वीकार्य हो सकते हैं?

Last Updated : Nov 15, 2022, 8:12 PM IST

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