देहरादूनः उत्तराखंड में बच्चों के भविष्य के साथ कैसे खिलवाड़ हो रहा है, इस बात को समझने के लिए किसी दुर्गम या पहाड़ी जिले में जाने की जरूरत नहीं है. इसके लिए मुख्यमंत्री आवास से लेकर सचिवालय के नजदीक स्थित स्कूलों में बदहाल सिस्टम (Dehradun schools are in bad condition) को आसानी से समझा जा सकता है. ये उस शिक्षा विभाग के हालात हैं जो दुर्गम क्षेत्रों में तकनीक ना होने को राष्ट्रीय स्तर पर पिछड़ने की वजह बताता है. इतना ही नहीं, महकमे के अधिकारी खुद में सुधार के बजाय अभिभावकों को उनके कर्तव्य और जिम्मेदारी बताकर ठीकरा उनके सिर ही फोड़ देते हैं.
सरकारी स्कूलों को मॉडर्न स्कूल बनाने और शिक्षा के क्षेत्र में ऐतिहासिक बदलाव करने की बात सुनने में जितनी अच्छी लगती है, उतने ही अच्छे अफसरशाही के वो आंकड़े भी लगते हैं, जो धरती पर आसमान का अनुभव करवाते हैं. लेकिन वो पुरानी हो चुकी दीवारें, सालों से बुझे हुए वो बल्ब और पेटी में बंद कम्प्यूटर कुछ और ही गवाही देते हैं. राजधानी में होने के बावजूद ये अभी भी सपना ही लगता है कि डिजिटल भारत में ये बच्चे भी कभी तो बल्ब की रोशनी में पढ़ सकेंगे, कभी गर्मी लगे तो स्विच ऑन कर पंखे की ठंडी हवा ले सकेंगे, कभी तो वो दिन आएगा जब पेटी में बंद कम्प्यूटर बाहर निकलेंगे और ये नन्हें हाथ की-बोर्ड और माउस चलाकर अपने भविष्य के सपने को साकार कर पाएंगे.
बिना बिजली वाले विद्यालय को दिए कंप्यूटरः सबसे पहले राजधानी देहरादून में सचिवालय से करीब 1 किलोमीटर दूरी पर स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय मानसिंहवाला की स्थिति बताते हैं. यहां शिक्षा विभाग की लापरवाही सरकार की किरकिरी कराने और प्रदेश में शिक्षा की बदहाल व्यवस्था बताने के लिए काफी है. किराए के भवन पर चल रहे विद्यालय में 2016 से बिजली कटी है. बावजूद शिक्षा विभाग ने करीब 2 साल पहले ही विद्यालय को कम्प्यूटर दे दिए. शायद शिक्षा विभाग के अधिकारी जानते ही नहीं हैं कि कम्प्यूटर बिजली से चलता है. इसके अलावा यहां पंखे भी हैं और बल्ब भी, लेकिन लाइट नहीं तो सब बेकार पड़ा है. यहां की प्रिंसिपल रेखा अग्रवाल कहती हैं कि शिक्षा विभाग बेहतर काम कर रहा है. लेकिन बस बिजली का बिल जमा कर दें तो स्कूल का कुछ भला हो जाए.
बदहाल स्कूल में मीडिया की एंट्री बैनः इसके बाद हमारी टीम ने राजधानी में मुख्यमंत्री आवास से करीब 1 किलोमीटर दूर स्थित विद्यालय में ऑनलाइन व्यवस्था को जानने की कोशिश की. यहां राजकीय प्राथमिक विद्यालय इंदिरानगर की शिक्षिका ने मीडिया की एंट्री बैन होने की बात कह दी. यही नहीं, शिक्षिका द्वारा बताया गया कि उप शिक्षा अधिकारी पल्लवी ने मीडिया के विद्यालय में दाखिल होने पर बैन लगाया है. शिक्षिका ने ये बताया कि उनके विद्यालय में ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज नहीं होती है. शिक्षा विभाग ने एक टीवी विद्यालय को दिया है जिसके लिए इंटरनेट की कोई व्यवस्था नहीं है.
हालांकि, शिक्षिका बड़े अधिकारियों की परमिशन लाकर ही स्कूल में दाखिल होने की बात कहती रही लेकिन हमारी टीम ने मौके से ही फोन पर देहरादून के चीफ एजुकेशन ऑफिसर मुकुल सती से इस बाबत बात की तो उन्होंने मीडिया एंट्री को लेकर ऐसी कोई बंदिश नहीं होने की बात कही.
दो साल से खराब पड़ा प्रोजेक्टरः सचिवालय और मुख्यमंत्री आवास के करीब के स्कूलों की ऐसी हालत देखने के बाद हमारी शिक्षा निदेशालय के करीब के स्कूल को भी जानने की उत्सुकता बढ़ी. लिहाजा, शिक्षा निदेशालय के चंद कदम दूरी पर स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय ननूरखेड़ा में ईटीवी भारत पहुंचा. यहां ऑनलाइन व्यवस्था पर जानकारी ली तो पता चला यहां भी ना तो ऑनलाइन उपस्थिति की कोई व्यवस्था है, ना ही बच्चों को इस तरह पढ़ाने की कोई सुविधा. जानकारी लगी कि कोरोना काल से पहले शिक्षा विभाग ने प्रोजेक्टर विद्यालय को दिया था. लेकिन कोरोनाकाल के दौरान यह खराब हो गया. बस इसके बाद पिछले करीब दो साल से इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं.