देहरादून: आज विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के मौके पर ईटीवी भारत आपका ध्यान उन मासूम बच्चों की ओर ले जाना चाहता है, जिनका बचपन 'मजबूरी और मजदूरी' के चलते कहीं खो सा गया है. देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.
बाल मजदूरी के प्रति विरोध एवं जागरुकता फैलाने के मकसद से हर साल 12 जून को बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की ओर से बाल श्रम के विरोध में जागरुकता फैलाने के लिए साल 2002 में पहली बार 'अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस' मनाया गया था. तब से हर साल बाल श्रम के विरोध में 12 जून को यह दिवस मनाया जा रहा है.
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल बाल श्रमिकों की संख्या 1 करोड़ 26 लाख से भी ज्यादा है. वहीं, पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड भी बाल श्रम के अभिशाप से अछूता नहीं है. उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष ऊषा नेगी के मुताबिक, प्रदेश में आज भी 15 से 20 फीसदी बच्चे गरीबी के चलते बाल मजदूरी का शिकार है. स्थिति ये है कि प्रदेश में आज भी कई बच्चे गरीबी के चलते होटल, रेस्टोरेंट और फैक्ट्रियों में काम करते देखे जा सकते हैं. कई बच्चे गरीबी के चलते सड़क पर भीख मांगते या गुब्बारे, खिलौने इत्यादि भेजते देखे जा सकते हैं.
इन आंकड़ों पर एक नजर
- देश में बाल श्रमिकों की संख्या 1.26 करोड़ से ज्यादा.
- उत्तराखंड में भी 15 से 50 फीसदी बच्चे बाल श्रम के शिकार.
- आज भी कई बच्चे होटल, रेस्टोरेंट और फैक्ट्रियों में कर रहे काम.
बाल मजदूरों की संख्या प्रदेश में बहुत कम
विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के मौके पर ईटीवी भारत के साथ जानकारी साझा करते हुए उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष ऊषा नेगी बताती हैं कि देश के अन्य राज्यों की तुलना में प्रदेश में अभी भी बाल श्रमिकों की संख्या काफी कम है. लेकिन इसके बावजूद यदि आयोग को बाल श्रम से जुड़े किसी भी तरह की शिकायत मिलती है तो उस पर त्वरित कार्रवाई अमल में लाई जाती है.
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