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उत्तराखंड में सभी फसलों का मिलेगा न्यूनतम समर्थन मूल्य, परंपरागत फसलों से मिलेगा फायदा

उत्तराखंड के किसानों को फायदा देने के मकसद से न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की दिशा में त्रिवेंद्र सरकार ने तैयारी शुरू कर दी है. इसके तहत राज्य की सभी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाएगा. इससे परंपरागत खेती को बल मिलेगा. पारंपरिक अनाजों का उत्पादन हो सकेगा.

उत्तराखंड में सभी फसलों का मिलेगा न्यूनतम समर्थन मूल्य

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Published : Jun 24, 2019, 12:08 AM IST

देहरादूनःप्रदेश में सभी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को तय करने की दिशा में त्रिवेंद्र सरकार ने तैयारी शुरू कर दी है. इसके तहत राज्य सरकार का मकसद किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के जरिए उनके फसलों का बेहतर मूल्य दिलवाना है. साथ ही किसानों को बिचौलियों से होने वाले नुकसान से भी राहत देना है. आकंड़ों की मानें तो इससे राज्य के करीब 10 लाख किसानों को फायदा पहुंचेगा.

जानकारी देते मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत.


इससे पहले केंद्र सरकार फसलों के न्यूनतम मूल्य को तय करती थी. जिसमें सभी फसलें नहीं आ पाती थी. खासतौर पर उत्तराखंड की परंपरागत फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य में जगह नहीं मिल पाती थी. जबकि उत्तराखंड के किसान परंपरागत फसलों की भारी मात्रा में उत्पादन करते हैं. इसे देखते हुए सरकार ने परंपरागत फसलों का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य तय कर किसानों को फायदा देने की कोशिश की है.

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अब उत्तराखंड के किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य की दिशा में राज्य की सभी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाएगा. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जानकारी देते हुए बताया कि सरकार ने केंद्र में नीति आयोग के साथ बैठक के दौरान मिड-डे मील में उत्तराखंड के उत्पादित स्थानीय उत्पादन को भी जगह दिए जाने की बात रखी थी. इसके अलावा किसानों की आय को बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य को डेढ़ गुना किया था. जिसमें पाया गया कि किसानों के फसल उत्पादन में भी बढ़ोतरी हुई है. ऐसे में अब राज्य सरकार भी इस दिशा में कदम उठाने जा रही है.


उधर, एक आंकलन के मुताबिक उत्तराखंड के करीब 10 लाख किसानों को राज्य सरकार की इस पहल से फायदा हो सकता है. जिसमें स्थानीय उत्पाद के न्यूनतम समर्थन मूल्य तय होने के बाद किसानों को इसका उचित मूल्य मिल भी सकेगा. जिससे किसान लुप्त होती परंपरागत खेती को फिर से उगा सकेंगे.

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