देहरादून:उत्तराखंड के जोशीमठ में लगातार जमीन खिसक रही है. लोगों के घर खाली करा दिए गए हैं. वहीं, इसरो ने जो ताजा रिपोर्ट जारी की है, उसने भी जोशीमठ की टेंशन और बढ़ा दी है. इसरो ने जो तस्वीरें जारी की है, उससे यह पता लगता है कि 12 दिसंबर से लेकर 8 जनवरी तक जोशीमठ का यह हिस्सा तेजी से नीचे की तरफ खिसका है और इसकी तीव्रता इतनी है कि बीते करीब 20 दिनों में 4.5 सेंटीमीटर जमीन नीचे धंस गई है.
जोशीमठ भू-धंसाव के पीछे अलकनंदा: जोशीमठ में प्रकृति ने जो क्रूरता दिखाई है, उसमें अगर मानवीय छेड़छाड़ वजह मानी जा रही है तो, वही अलकनंदा नदी भी इसमें बराबरी का काम कर रही है. लगातार हो रहे काम की वजह से नदी का प्रवाह छोटा होता जा रहा है. यही कारण है कि अलकनंदा नदी जोशीमठ के पर्वतों को लगातार काटकर बहने की कोशिश सालों से कर रही है. अब तक जितने भी अध्ययन या एक्सपर्ट की टीम जोशीमठ में गई है. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में यही बताया है कि जोशीमठ की जड़ को अलकनंदा नदी लगातार काट रही है और यही भूस्खलन की मुख्य वजह मानी जा रही है.
पहाड़ों पर दबाव से जोशीमठ को खतरा: जोशीमठ शहर में लगातार दबाव के चलते पर्वत नीचे खिसक रहे हैं. नदी का मुहाना छोटा होने की वजह से नदी अब अपना रास्ता तय करने के लिए सालों से इस पर्वत को काट रही है. ऐसे में सरकार के लिए बड़ी चुनौती है कि जोशीमठ शहर को कैसे बचाया जाए ? कहीं ऐसा तो नहीं कि अभी तो सिर्फ 20% शहर के ऊपर ही आफत आई है. ऐसा ही नदी का प्रवाह पर्वत की जड़ों को काटता रहा तो, बाकी शहर के लिए भी आने वाले सालों में मुसीबत हो सकती है. ऐसे में राज्य सरकार को एक्सपर्ट्स ने यह सलाह दी है कि इससे बचने के लिए नदी किनारे एक सुरक्षा दीवार बनानी होगी.
ऐसे बचेगा जोशीमठ: सरकार द्वारा कराए गए 4 अध्ययनों में पता चला है कि अलकनंदा नदी का वेग ही जोशीमठ आपदा का कारण बन रही है. अध्ययनों में भू-धंसाव के अलग-अलग कारण माने गए है, जिसमे अलकनंदा का वेग भी एक कारण माना गया है. दरअसल, जोशीमठ शहर अलकनंदा शहर के किनारे बसा है. हालांकि, उत्तराखंड के ज्यादात्तर शहर नदियों के किनारे बसे हैं, लेकिन जोशीमठ में जिस तरह से लगातार निर्माण कार्य और परियोजना चल रही है. उससे लगातार पहाड़ का मलबा अलकनंदा के वेग को प्रभावित कर रहा है. वहीं, पहाड़ खिसकने की वजह से अलकनंदा जिस रास्ते से सालों से बहती आई है, उसका रास्ता भी बीते कुछ सालों में छोटा हुआ है. जिसकी वजह से अलकनंदा का प्रवाह लगातार पहाड़ को काट रहा है.
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