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उत्तराखंड में साल दर साल घट रही कृषि भूमि, आंकड़े कर रहे तस्दीक

प्रदेश में साल दर साल कृषि भूमि कम होती जा रही है. उत्तराखंड राजस्व परिषद के आंकड़े इसकी तस्दीक कर रहे हैं.

Agricultural land is decreasing year after year in Uttarakhand
उत्तराखंड में साल दर साल घट रही कृषि भूमि

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Published : Jan 22, 2021, 6:42 PM IST

देहरादून:उत्तराखंड राज्य गठन को 20 साल पूरे हो चुके हैं. इन 20 सालों में जहां प्रदेश ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं तो वहीं वर्तमान स्थिति कुछ यह है कि विकास की तेज दौड़ के बीच साल दर साल प्रदेश में बेशकीमती कृषि भूमि को भी कम होती जा रही है. जिसकी तस्दीक खुद उत्तराखंड राजस्व परिषद के आंकड़े कर रहे हैं.

बता दें कि उत्तराखंड राजस्व परिषद से प्राप्त साल 2000-01 और साल 2018-19 के भूमि उपयोगिता के आंकड़ों पर गौर करें तो इसमें कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग में लाई जा रही भूमि लगातार बढ़ रही है. जिसका सीधे तौर पर यह अर्थ निकलता है कि प्रदेश में कृषि भूमि कम होती जा रही है. साल 2000 से लेकर साल 2019 के बीच प्रदेश में 33 हजार हेक्टेयर से ज्यादा कृषि भूमि कम हो चुकी है.

उत्तराखंड में साल दर साल घट रही कृषि भूमि

उत्तराखंड राजस्व परिषद से साल 2000-01 और साल 2018- 19 के भूमि उपयोगिता के आंकड़े

जिला जिला कृषि के अतिरिक्त 2018-19 अन्य उपयोग में लाई जा रही भूमि(हेक्टेयर)2000-01
चमोली 8046 16662
देहरादून 22510 23260
हरिद्वार 26340 31226
पौड़ी 16041 17313
रुद्रप्रयाग 2950 5641
टिहरी 4885 7155
उत्तरकाशी 5209 6007
अल्मोड़ा 13181 12668
बागेश्वर 4705 4886
चम्पावत 4592 4625
नैनीताल 9110 11148
पिथौरागढ़ 10060 11512
उधमसिंह नगर 24618 33604
कुल योग 152247 185707

इन आंकड़ों को देखकर आपके जहन में भी जरूर यह सवाल उठ रहे होंगे कि आखिर प्रदेश में कृषि भूमि क्यों और किन कारणों से कम होती जा रही है ? इन सवालों का जवाब जानने के लिए ईटीवी भारत ने प्रदेश के जाने-माने पर्यावरणविद् कल्याण सिंह रावत से बात की. पर्यावरणविद कल्याण सिंह रावत के मुताबिक प्रदेश में कृषि भूमि के घटने के या फिर कम होने के कई कारण हैं.

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इसमें सबसे प्रमुख कारण प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में किसानों की फसल पर जंगली जानवरों जैसे बंदर सूअर इत्यादि का हमला है. वहीं दूसरी तरफ एक प्रमुख कारण साल दर साल बढ़ती आबादी और सिंचाई की उचित व्यवस्था न होना भी है.

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पर्यावरणविद् कल्याण सिंह रावत बताते हैं कि प्रदेश में केवल 15% भूमि ही सिंचित है. इसके अलावा शेष बचे 85% भूमि असिंचित है. वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में प्राकृतिक जल स्रोत भी सूख रहे हैं. जिसकी वजह से सिंचाई का बेहतर विकल्प ना मिलने की वजह से लोग खेती किसानी त्याग रहे हैं. वहीं, दूसरी तरफ जो किसान खेती किसानी कर भी रहे हैं उनकी फसलों को जंगली जानवर नष्ट कर रहे हैं. जिसकी वजह से कोई और विकल्प न होने के कारण लोग खेती किसानी छोड़कर अपनी जमीनों को किसी अन्य उपयोग में ला रहे हैं.

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बहरहाल, इस तरफ सरकार खेती किसानी को बढ़ावा देने की बातें करती है तो वहीं दूसरी तरफ प्रदेश की यह स्थिति वाकई में चिंताजनक है. ऐसे में जरूरत है कि सरकार प्रदेश में खेती किसानी को बढ़ावा देने के लिए उचित व्यवस्था करें. यानी जिस तरह हमारे प्राकृतिक जल स्रोत सूख रहे हैं, उसे ध्यान में रखते हुए प्राकृतिक जल स्रोतों को दोबारा जीवित किया जाए. साथ ही खेती किसानी के लिए सिंचाई की उचित व्यवस्था की जाए. शायद जब लोगों को खेती किसानी के लिए बेहतर व्यवस्था मिलेगी तभी एक बार फिर लोग दोबारा खेती किसानी से जुड़ने पर विचार करेंगे.

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