उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

रामपुर तिराहा कांड: 27 साल बाद फास्ट ट्रैक कोर्ट में होगी सुनवाई, 4 फाइलें अभी भी पेंडिंग - यूपी ताजा समाचार

मुजफ्फरनगर रामपुर तिराहा कांड (muzaffarnagar rampur tiraha firing case) को 27 साल बीत चुके हैं, लेकिन आज तक रामपुर तिराहा कांड के दोषियों को सजा नहीं मिली है. इस मामले से जुड़े कई गवाहों की तो मौत भी चुकी है. हालांकि 27 साल बाद अब इस मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में होगी.

Muzaffarnagar Rampur Tiraha firing case,
मुजफ्फरनगर रामपुर तिराहा कांड

By

Published : Nov 27, 2021, 6:09 PM IST

Updated : Nov 27, 2021, 8:05 PM IST

देहरादून: 27 साल पुराने यूपी के मुजफ्फरनगर रामपुर तिराहा कांड की सुनवाई अब फास्ट ट्रैक कोर्ट में होगी. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) मुजफ्फरनगर ने इससे जुड़े चार मुकदमों के ट्रायल के लिए सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक को अधिकृत किया है. पैरवी के लिए दो अधिवक्ताओं की कमेटी भी बनाई है.

रामपुर तिराहा कांड: यूपी से अलग राज्य की मांग को लेकर 27 साल पहले एक अक्टूबर 1994 को देहरादून से उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों का काफिला बसों में भरकर दिल्ली के लिए रवाना हुआ था. देर रात राज्य आंदोलनकारियों का ये काफिला मुजफ्फरनगर जिले के रामपुर तिराहे पर पहुंचा. जहां यूपी पुलिस ने उन्हें रोका था. हालांकि राज्य आंदोलनकारी दिल्ली जाने पर अड़े हुए थे. पुलिस ने आंदोलनकारियों को रोकने के लिए उन पर फायरिंग कर दी थी, जिसमें सात आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी.

पढ़ें- 1994 का मुजफ्फनगर कांड: दोषियों को 27 साल बाद भी नहीं मिल पाई सजा, जानिए पूरा घटनाक्रम

सीबीआई ने मामले की जांच की और मुकदमे दर्ज कराए थे. इनमें चार मुकदमों जिले में विचाराधीन हैं. पहले एसीजेएम द्वितीय की कोर्ट में मुकदमे की फाइल भेजी गई थी, लेकिन यहां लंबे समय से सुनवाई नहीं हो सकी थी. एसीजेएम द्वितीय के पत्र के बाद सीजेएम ने प्रकरण की सुनवाई के लिए सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक को अधिकृत किया है.

मुजफ्फरनगर कांड की दर्दभरी दास्तान:यह पूरा घटना क्रम 1 अक्टूबर, 1994 की रात से जुड़ा है, जब आंदोलनकारी उत्तर प्रदेश से अलग कर पहाड़ी प्रदेश की मांग कर रहे थे. राज्य आंदोलनकारी दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए इस पर्वतीय क्षेत्र की अलग-अलग जगहों से 24 बसों में सवार होकर 1 अक्टूबर को रवाना हो गए.

देहरादून से आंदोलनकारियों के रवाना होते ही इनको रोकने की कोशिश की जाने लगी. इस दौरान पुलिस ने रुड़की के गुरुकुल नारसन बॉर्डर पर नाकेबंदी की, लेकिन आंदोलनकारियों की जिद के आगे प्रशासन को झुकना पड़ा और फिर आंदोलनकारियों का हुजूम यहां से दिल्ली के लिए रवाना हो गया. लेकिन मुजफ्फरनगर पुलिस ने उन्हें रामपुर तिराहे पर रोकने की योजना बनाई और पूरे इलाके को सील कर आंदोलनकारियों को रोक दिया.

यूपी पुलिस ने पार की सारी हदें: आंदोलनकारियों को पुलिस ने मुजफ्फरनगर में रोक तो लिया. लेकिन आंदोलनकारी दिल्ली जाने की जिद पर अड़ गए. इस दौरान पुलिस से आंदोलनकारियों की नोकझोंक शुरू हो गई. इस बीच जब राज्य आंदोलनकारियों ने सड़क पर नारेबाजी शुरू कर दी तो अचानक यहां पथराव शुरू हो गया, जिसमें मुजफ्फरनगर के तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह घायल हो गए, जिसके बाद यूपी पुलिस ने बर्बरता की सभी हदें पार करते हुए राज्य आंदोलनकारियों को दौड़ा-दौड़ाकर लाठियों से पीटना शुरू कर दिया और लगभग ढाई सौ से ज्यादा राज्य आंदोलनकारियों को हिरासत में भी ले लिया गया.

यूपी पुलिस की बर्बरता: उस रात ऐसा कुछ भी हुआ जिसने तमाम महिलाओं की जिंदगियां बर्बाद कर दीं. आंदोलन करने गईं तमाम महिलाओं से बलात्कार जैसी घटनाएं भी हुईं. यह सब कुछ रात भर चलता रहा. यह बर्बरता जब आंदोलनकारियों पर हो रही थी, तो उस रात कुछ लोग महिलाओं को शरण देने के लिए आगे भी आए. उस दिन पुलिस की गोलियों से देहरादून नेहरू कॉलोनी निवासी रविंद्र रावत उर्फ गोलू, भालावाला निवासी सतेंद्र चौहान, बदरीपुर निवासी गिरीश भदरी, जबपुर निवासी राजेश लखेड़ा, ऋषिकेश निवासी सूर्यप्रकाश थपलियाल, ऊखीमठ निवासी अशोक कुमार और भानियावाला निवासी राजेश नेगी शहीद हुए थे.

मुजफ्फरनगर कांड के बाद अलग राज्य की मांग ने पकड़ा जोर: मुजफ्फरनगर कांड के बाद उत्तर प्रदेश से अलग राज्य की मांग ने और जोर पकड़ लिया, क्योंकि मुजफ्फरनगर में हुई बर्बरता के बाद राज्य आंदोलनकारियों और प्रदेश के लोगों में गुस्सा भड़क गया था. राज्य की मांग को लेकर प्रदेश भर में धरना और विरोध प्रदर्शनों का दौर चलने लगा.

आंदोलन की आग इस कदर भड़की कि युवाओं, बुजुर्गों के साथ-साथ स्कूली बच्चे भी आंदोलन की आग में कूद पड़े थे. रामपुर में हुए तिराहा कांड के बाद करीब 6 साल तक आंदोलनकारियों के संघर्ष का ही नतीजा रहा कि सरकारों को इस मामले में गंभीरता से विचार करना पड़ा और 9 नवंबर, 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग राज्य बनने के बाद ही आंदोलन पर विराम लगा गया.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया पीड़ितों को मुआवजे का फरमान:रामपुर तिराहा कांड की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या, दुष्कर्म समेत संगीन अपराधों को मानवाधिकार उल्लंघन मानते हुए मृतकों के परिजनों व दुष्कर्म पीड़ित महिलाओं को 10-10 लाख रुपये मुआवजा और छेड़छाड़ की शिकार हुई महिलाओं के साथ ही पुलिस हिरासत में उत्पीड़न के शिकार आंदोलनकारियों को 50-50 हजार रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया था. साथ ही इस मामले की जांच को सीबीआई को सौंपने के भी आदेश दिए थे.

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला: हाईकोर्ट के आदेश के बाद तमाम लोगों को मुआवजा भी दिया गया लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस निर्णय के खिलाफ अभियुक्तों और यूपी सरकार द्वारा चार विशेष अनुमति याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की गईं. फिर 13 मई 1999 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश निरस्त कर दिया. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि जिन लोगों को मुआवजा दिया जा चुका है, उनसे मुआवजा वापस नहीं लिया जाएगा, जिसके बाद से ही मामले की गुत्थी अभी तक सुलझ नहीं पाई है.

सीबीआई को मिली 660 शिकायतें: मुजफ्फरनगर कांड को 27 साल बीत चुके हैं लेकिन अभी तक उसके दोषियों को सजा नहीं मिल पाई है. 2 अक्टूबर को रामपुर तिराहा में हुए कांड के बाद इस मामले को लेकर 7 अक्टूबर 1994 को संघर्ष समिति ने आधा दर्जन याचिकाएं इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल की थी. इसके बाद 6 दिसंबर, 1994 को कोर्ट ने सीबीआई से खटीमा, मसूरी और रामपुर तिराहा कांड पर रिपोर्ट मांगी, जिस पर सीबीआई ने कोर्ट में अपनी रिपोर्ट सौंपी.

सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि रामपुर तिराहा कांड समेत अन्य जगहों पर 7 सामूहिक दुष्कर्म, 17 महिलाओं से छेड़छाड़ और 26 हत्याएं की गईं. सीबीआई के पास कुल 660 शिकायतें की गई. 12 मामलों में पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई.

आराम की जिंदगी जी रहे दोषी:वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत कहते हैं कि रामपुर तिराहा कांड को 27 साल हो गए हैं और उत्तराखंड को बने 21 साल का वक्त बीत गया है. लेकिन आज भी रामपुर तिराहा कांड के दोषी अपनी जिंदगी आराम से जी रहे हैं. उत्तराखंड को एक अलग राज्य बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले राज्य आंदोलनकारियों को उत्तराखंड के राजनेता भूल गए हैं.

वो सत्ता की लड़ाई में जुटे हुए हैं. जय सिंह रावत ने कहा कि रामपुर तिराहा कांड से जुड़े तमाम ऐसे रहस्य हैं, जो अभी तक रहस्य ही बने हुए हैं. जिसमें एक सबसे बड़ा रहस्य यही है कि आखिर राज्य आंदोलनकारियों को दिल्ली जाने से रोकने के लिए बंदूक का सहारा क्यों लेना पड़ा? महिलाओं के साथ बर्बरता क्यों की गई?

Last Updated : Nov 27, 2021, 8:05 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details