देहरादून: 27 साल पुराने यूपी के मुजफ्फरनगर रामपुर तिराहा कांड की सुनवाई अब फास्ट ट्रैक कोर्ट में होगी. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) मुजफ्फरनगर ने इससे जुड़े चार मुकदमों के ट्रायल के लिए सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक को अधिकृत किया है. पैरवी के लिए दो अधिवक्ताओं की कमेटी भी बनाई है.
रामपुर तिराहा कांड: यूपी से अलग राज्य की मांग को लेकर 27 साल पहले एक अक्टूबर 1994 को देहरादून से उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों का काफिला बसों में भरकर दिल्ली के लिए रवाना हुआ था. देर रात राज्य आंदोलनकारियों का ये काफिला मुजफ्फरनगर जिले के रामपुर तिराहे पर पहुंचा. जहां यूपी पुलिस ने उन्हें रोका था. हालांकि राज्य आंदोलनकारी दिल्ली जाने पर अड़े हुए थे. पुलिस ने आंदोलनकारियों को रोकने के लिए उन पर फायरिंग कर दी थी, जिसमें सात आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी.
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सीबीआई ने मामले की जांच की और मुकदमे दर्ज कराए थे. इनमें चार मुकदमों जिले में विचाराधीन हैं. पहले एसीजेएम द्वितीय की कोर्ट में मुकदमे की फाइल भेजी गई थी, लेकिन यहां लंबे समय से सुनवाई नहीं हो सकी थी. एसीजेएम द्वितीय के पत्र के बाद सीजेएम ने प्रकरण की सुनवाई के लिए सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक को अधिकृत किया है.
मुजफ्फरनगर कांड की दर्दभरी दास्तान:यह पूरा घटना क्रम 1 अक्टूबर, 1994 की रात से जुड़ा है, जब आंदोलनकारी उत्तर प्रदेश से अलग कर पहाड़ी प्रदेश की मांग कर रहे थे. राज्य आंदोलनकारी दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए इस पर्वतीय क्षेत्र की अलग-अलग जगहों से 24 बसों में सवार होकर 1 अक्टूबर को रवाना हो गए.
देहरादून से आंदोलनकारियों के रवाना होते ही इनको रोकने की कोशिश की जाने लगी. इस दौरान पुलिस ने रुड़की के गुरुकुल नारसन बॉर्डर पर नाकेबंदी की, लेकिन आंदोलनकारियों की जिद के आगे प्रशासन को झुकना पड़ा और फिर आंदोलनकारियों का हुजूम यहां से दिल्ली के लिए रवाना हो गया. लेकिन मुजफ्फरनगर पुलिस ने उन्हें रामपुर तिराहे पर रोकने की योजना बनाई और पूरे इलाके को सील कर आंदोलनकारियों को रोक दिया.
यूपी पुलिस ने पार की सारी हदें: आंदोलनकारियों को पुलिस ने मुजफ्फरनगर में रोक तो लिया. लेकिन आंदोलनकारी दिल्ली जाने की जिद पर अड़ गए. इस दौरान पुलिस से आंदोलनकारियों की नोकझोंक शुरू हो गई. इस बीच जब राज्य आंदोलनकारियों ने सड़क पर नारेबाजी शुरू कर दी तो अचानक यहां पथराव शुरू हो गया, जिसमें मुजफ्फरनगर के तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह घायल हो गए, जिसके बाद यूपी पुलिस ने बर्बरता की सभी हदें पार करते हुए राज्य आंदोलनकारियों को दौड़ा-दौड़ाकर लाठियों से पीटना शुरू कर दिया और लगभग ढाई सौ से ज्यादा राज्य आंदोलनकारियों को हिरासत में भी ले लिया गया.
यूपी पुलिस की बर्बरता: उस रात ऐसा कुछ भी हुआ जिसने तमाम महिलाओं की जिंदगियां बर्बाद कर दीं. आंदोलन करने गईं तमाम महिलाओं से बलात्कार जैसी घटनाएं भी हुईं. यह सब कुछ रात भर चलता रहा. यह बर्बरता जब आंदोलनकारियों पर हो रही थी, तो उस रात कुछ लोग महिलाओं को शरण देने के लिए आगे भी आए. उस दिन पुलिस की गोलियों से देहरादून नेहरू कॉलोनी निवासी रविंद्र रावत उर्फ गोलू, भालावाला निवासी सतेंद्र चौहान, बदरीपुर निवासी गिरीश भदरी, जबपुर निवासी राजेश लखेड़ा, ऋषिकेश निवासी सूर्यप्रकाश थपलियाल, ऊखीमठ निवासी अशोक कुमार और भानियावाला निवासी राजेश नेगी शहीद हुए थे.