देहरादून: 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर 27वें राज्य के रूप में उत्तराखंड की स्थापना हुई. अलग राज्य के लिए लंबे वक्त से संघर्षरत आंदोलनकारियों का सपना पूरा हुआ. अलग राज्य को लेकर सैकड़ों आंदोलनकारियों ने अपनी शहादत दी, जिसके बाद उत्तराखंड भारत के मानचित्र पर उभरकर सामने आया. 20 साल के सफर में उत्तराखंड ने सफलता के कई मुकाम हासिल किए. कई चुनौतियों का सामना किया. इस दौरान प्रदेश को कुछ में सफलता हाथ लगी और कुछ में जूझने, संघर्ष करने, नई राह तलाश करने का दौर जारी है.
डबल इंजन सरकार के सामने मुख्य चुनौतियां
9 नवंबर को उत्तराखंड अपना 20वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन राज्य आदोलनकारियों का सपने आज भी अधूरे हैं. उत्तराखंड राज्य की स्थापना जल, जंगल और जमीन की मांग के साथ हुई थी. एक अलग राज्य बनने के बाद प्रदेश के लोगों ने सोचा था कि अब उनका समुचित विकास होगा. लेकिन क्या यह संभव हो पाया है इस विषय पर आज गंभीरता से सोचने की जरूरत है. क्योंकि वर्तमान सरकार को जनता ने विकास के ही मुख्य मुद्दे पर चुना है.
पहाड़ को विकास की आस
गांव में स्कूल हैं, लेकिन अध्यापक नहीं. अस्पताल हैं, मगर डॉक्टर नहीं. बिजली के खंभे हैं, लेकिन बिजली नहीं. पहाड़ से पलायन बढ़ा ही है, कम नहीं हुआ है. राज्य के लगभग पांच हजार गांव सड़कों से काफी दूर हैं. जंगल कटते जा रहे हैं, नदियां सूखती जा रही हैं और पहाड़ की जमीन को हर साल और बंजर होते जाने से बचाया नहीं जा रहा है. इन 20 सालों में नौ मुख्यमंत्रियों के हाथों में सत्ता रही और अनगिनत लुभावने नारे आए. लेकिन ये नारे सिर्फ छलावा साबित हुए और इन्हें अमल में लाने की इच्छाशक्ति नहीं बनी है.
ये प्रोजेक्ट नहीं उतरे धरातल पर
दून-मसूरी रोपवे
मसूरी आने वाले पर्यटकों को जाम से न जूझना पड़े, इसके लिए 450 करोड़ लागत के रोपवे को तैयार करने की प्लानिंग पिछले 15 सालों से चली आ रही है. लेकिन यह योजना अभी तक धरातल पर नहीं उतरी है.
अधर में जल विद्युत परियोजना
लखवाड़ जल विद्युत परियोजना के लिए पिछली सरकार में टेंडर तक हो गए थे. लेकिन केंद्र स्तर से वित्तीय स्वीकृति का मसला लटकने से टेंडर रद्द करना पड़ा. योजना को तमाम स्तर से मंजूरी मिल चुकी है. सिर्फ वित्तीय स्वीकृति जारी न होने से काम शुरू नहीं हो पा रहा है.