देहरादून: दुनिया के सबसे बेहतरीन सैन्य अफसर तैयार करना कोई आसान काम नहीं है. भारतीय सेना के लिए इसका बीड़ा उठाया है भारतीय सैन्य अकादमी ने. जंग लड़ने और फतह हासिल करने के लिए जिस बात की सबसे ज्यादा जरूरत है उस साहस, हिम्मत और शौर्य को जगाती है इंडियन मिलिट्री एकेडमी. देहरादून में करीब 1,400 एकड़ में फैली ये विशाल धरोहर न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि ये पराक्रमी सैन्य अफसरों का प्रशिक्षण केंद्र भी है. इतिहास गवाह है कि यहां तैयार होने वाले वीरों ने पराक्रम की हर परकाष्ठा को पार किया है. दुश्मन कोई भी हो भारतीय शेरों की दहाड़ के सामने हर हथियार और तकनीक धरी की धरी रह गयी.
इस बार आईएमए में 11 जून को होने वाली पासिंग आउट परेड के बाद भारतीय सेना को 288 युवा अफसर मिलेंगे. इसके अलावा 8 मित्र देशों की सेना को भी 89 सैन्य अधिकारी मिलेंगे. अब तक आईएमए के नाम देश-विदेश की सेना को 63 हजार 768 युवा सैन्य अफसर देने का गौरव जुड़ा है. इनमें 34 मित्र देशों को मिले 2,724 सैन्य अधिकारी भी शामिल हैं.
IMA की स्थापना: एक अक्तूबर 1932 में स्थापित भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) का 90 वर्ष का गौरवशाली इतिहास है. अकादमी 40 कैडेट्स के साथ शुरू हुई थी. अब तक अकादमी देश-विदेश की सेनाओं को 63 हजार 768 युवा अफसर दे चुकी है. इनमें 34 मित्र देशों के 2,724 कैडेट्स भी शामिल हैं. 1932 में ब्रिगेडियर एलपी कोलिंस प्रथम कमांडेंट बने थे. इसी में फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और म्यांमार के सेनाध्यक्ष रहे स्मिथ डन के साथ पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष मोहम्मद मूसा भी पास आउट हुए थे. आईएमए ने ही पाकिस्तान को उनका पहला आर्मी चीफ भी दिया है.
10 दिसंबर 1932 में भारतीय सैन्य अकादमी का औपचारिक उद्घाटन फील्ड मार्शल सर फिलिप डब्लू चैटवुड ने किया था. उन्हीं के नाम पर आईएमए की प्रमुख बिल्डिंग को चैटवुड बिल्डिंग के नाम से जाना जाने लगा. आजादी के बाद पहली बार किसी भारतीय ने सैन्य अकादमी की कमान संभाली. 1947 में ब्रिगेडियर ठाकुर महादेव सिंह इसके पहले कमांडेंट बने. 1949 में इसे सुरक्षा बल अकादमी का नाम दिया गया और इसका एक विंग क्लेमेनटाउन में खोला गया. बाद में इसका नाम नेशनल डिफेंस अकादमी रखा गया.