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अग्निशमन विभाग की पड़ताल: 19 सालों में आग की घटनाओं में 4,159 लोगों ने गंवाई जान - 19 सालों में 4159 लोगों की गई जान

प्रदेश में लगातार बढ़ती आग की घटनाओं ने वन विभाग से लेकर राज्य सरकार को हैरान कर रखा है. वहीं, इस पर नियंत्रण पाने के लिए अग्निशमन विभाग पर दबाव बढ़ता जा रहा है. 19 सालों में 4 हजार से ज्यादा मानव क्षति हुई है, और 3 हजार से ज्यादा मवेशियों का नुकसान राज्य ने उठाया है.

forest fire in last 19 years

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Published : May 10, 2019, 8:26 PM IST

देहरादून: प्रदेश में तपती गर्मी इन दिनों आग जैसी बड़ी आफत को दावत दे रही है, वहीं इस आफत से निपटने के लिए उत्तराखंड अग्निशमन विभाग अलर्ट पर है. उत्तराखंड का अग्निशमन विभाग सीमित संसाधनों के साथ राज्य के सभी 13 जिलों में अपने 970 अधिकारी कर्मचारी और लाव लश्कर के साथ सतर्क पर है, लेकिन साल दर साल बढ़ती आग की घटनाओं ने सबको चिंतित कर रखा है.

संसाधनों की कमी से जूझ रहा अग्निशमन विभाग.

19 सालों में 4159 लोगों की गई जान

लगातार बढ़ती आग की घटनाओं ने वन विभाग से लेकर राज्य सरकार को हैरान कर रखा है. वहीं, इस पर नियंत्रण पाने के लिए अग्निशमन विभाग पर दबाव बढ़ता जा रहा है. अग्निशमन विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार राज्य बनने से लेकर अब तक के 19 सालों में 4 हजार से ज्यादा मानव क्षति हुई है, और 3 हजार से ज्यादा मवेशियों का नुकसान राज्य ने उठाया है. केवल पिछले पांच सालों के आंकडों पर अगर नजर डालें तो आंकड़े हैरान करने वाले हैं.

पिछले 5 सालों का यह हाल है

वर्ष कुल कॉल मानव क्षति मवेशी क्षति बचाये गए लोग
2014 2087 129 222 519
2015 2215 279 50 580
2016 3187 277 207 958
2017 2570 218 290 530
2018 2994 327 270 1184


पिछले पांच साल के आंकड़े ही इस बात पर मुहर लगा रहें है कि राज्य में अग्मिशन विभाग के संज्ञान में आये मामलों में कितना नुकसान हुआ है. जो इस बात पर जोर देता है कि अग्निशमन विभाग को मजबूत होने की कितनी जरुरत है, लेकिन मौजूदा समय में अग्निशमन विभाग संसाधनों और सरंचानात्मक ढांचे की कमजोरी के चलते और कमजोर होता जा रहा है. हर साल अग्निशमन विभाग की चुनौती पिछले साल की तुलना में कई गुना बढ़ जाती है. अब अगर एक नजर अग्निशम विभाग के विभागीय ढांचे और संसाधन पर नजर डालें तो इन हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है.

यह है उत्तराखंड अग्निशमन विभाग का हाल

  • अग्निशमन विभाग में कुल 970 अधिकारी कर्मचारी कार्यरत है. जबकी 300 पद आज भी खाली है, इनमें से जिलों में मुख्य पद पर सीधी भर्ती के लिए चीफ फायर ऑफिसर के पद पिछले कई सालों से रिक्त चल रहें है.
  • पूरे प्रदेश में अग्निशमन विभाग के कुल 36 फायर स्टेशन मौजूद है.
  • राज्य के 13 जिलों में वाटर और फॉम टेंडर यानी फायर ब्रिगेड की बड़ी गाड़ियों की संख्या 94 है, जिनमें कई जिलों में इनकी संख्या दो या तीन है.
  • फायर ब्रिगेड की छोटी गाड़ियों की संख्या पूरे राज्य में 53 हैं.
  • घायलों को ले जाने के लिए अग्निशमन विभाग के पास एंबुलेस की सख्यां 23 है.
  • छोटी गलियों में आग लगने पर नियंत्रण पाने के लिए उपयोग की जाने वाली फायर बाइक की संख्या पूरे राज्य में 37 है.
  • बहुमंजिला इमारतों में ऊंचाईं पर लगी आग या फिर फंसे हुए लोगों को रेस्क्यू करने के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली हाइड्रोलिक एरियल लेडर मशीन केवल एक है.

अग्निशमन विभाग के उपनिदेशक सुरेंद्र शर्मा ने बताया कि फायर सर्विस में इसे बीटिंग फायर नाम से जाना जाता है और यह आग बुझाने की एक तकनीक है. उन्होंने कहा कि जहां फायर ब्रिगेड की गाड़ियां मौके पर नहीं पहुंच पाती हैं, वहां पर चमड़े के पट्टों से पीट आग बुझाने का प्रयास किया जाता है. ईटीवी भारत के सवाल पर अग्निश्मन अधिकारी ने माना कि निश्चित तौर से रोड साइड पर फायर उपकरणों का प्रयोग होना चाहिए और इसमें किसी भी तरह की लापरवाही नहीं बरती जाएगी.

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बहरहाल, आलम ये है कि हर साल सैकड़ों लोग आग की जद में आते हैं और आग की घटनाओं में सैकड़ों मवेशियों की मौत हो जाती है. बात यहीं खत्म नही होती है, आग पर नियंत्रण पाते हुए और लोगों को रेस्क्यू करते हुए अग्निशमन कर्मियों की जान पर भी खतरा बना रहता है. ऐसे में सरकार अग्निशमन विभाग को उतना तवज्जो नहीं देती जितना इसे देने की जरुरत है.

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