मसूरी:राज्य आंदोलन का वो मंजर जिसे याद कर आज भी मन सिहर उठता है. हर साल आने वाली 2 सितंबर की तारीख उन परिवारों को राज्य आंदोलन में जान गंवाने वालों की याद दिला देती है. मसूरी गोलीकांड को आज 25 साल पूरे हो गए हैं. 2 सिंतबर 1994 की वो दर्दनाक सुबह, जब मौन जुलूस निकाल रहे राज्य आंदोलनकारियों पर पुलिस और पीएसी ने ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर 6 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. मसूरी के झूलाघर स्थित शहीद स्थल पर आज शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई.
मसूरी गोलीकांड को 25 साल पूरे पृथक राज्य की मांग पर चल रहे शांतिपूर्ण आंदोलन को कुचलने के इरादे से तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने पुलिस और पीएसी का सहारा लिया. माल रोड स्थित झूलाघर में क्रमिक अनशन पर बैठे 5 आंदोलनकारियों को एक सितंबर 1994 की रात पुलिस ने उठा लिया था. 2 सितंबर की सुबह राज्य आंदोलनकारी खटीमा गोलीकांड और अनशनकारियों को उठाने के विरोध में मौन जुलूस निकाल रहे थे. झूलाघर पहुंचते ही पुलिस और पीएसी ने निहत्थे और निरीह आंदोलनकारियों पर ताबड़तोड़ गोलियां दागीं. फायरिंग में सिर पर गोली लगने से दो महिलाएं हंसा धनाई और बेलमती चैहान मौके पर ढेर हो गईं. 4 अन्य आंदोलनकारी और पुलिस के सीओ उमाकांत त्रिपाठी भी पुलिस की गोलियों के शिकार हो गए. इनमें राय सिंह बंगारी, धनपत सिंह, मदनमोहन ममगाईं और युवा बलवीर नेगी शामिल थे.
पुलिस की गोली से घायल पुलिस उपाधीक्षक उमाकांत त्रिपाठी ने सेंट मेरी अस्पताल में दम तोड़ दिया. पुलिस और पीएसी का कहर यहीं नहीं थमा. इसके बाद कर्फ्यू के दौरान आंदोलनकारियों का उत्पीड़न किया गया. 2 सितंबर से करीब एक पखवाड़े तक चले कर्फ्यू के दौरान लोगों को जरूरी सामानों को तरसना पड़ा.
आंदोलन का मसूरी में नेतृत्व कर रहे वृद्ध नेता स्वर्गीय हुकुम सिंह पंवार को पुलिस 2 सितंबर को बरेली जेल ले गई. जुलूस में उनके युवा पुत्र एडवोकेट राजेंद्र सिंह पंवार को गोली लगी और वे बुरी तरह जख्मी हो गए. कुछ सालों तक उनकी आवाज ही गुम हो गई. उनका इलाज एम्स दिल्ली में हुआ, लेकिन अफसोस सक्रिय आंदोलनकारियों में आज तक उनका चिन्हीकरण नहीं हो पाया.
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महिला आंदोलनकारी और सीबीआई का मुकदमा झेलनी वाली सुभाषिनी बर्त्वाल ने मुख्यमंत्री से कहा कि मसूरी में राजेंद्र पंवार और उनके ही जैसे कई ऐसे आंदोलनकारी हैं, जिनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता. आंदोलनकारियों को उनका हक जरूर मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से आज भी उनको आंदेलनकारी का दर्जा नहीं मिल पाया. उनके जैसे कई आंदोलनकारी हैं, जिनको सरकार द्वारा आंदोलनकारी नहीं माना गया. वही कई ऐसे फर्जी लोग हैं, जिनका उत्तराखंड आंदोलन से कुछ लेना देना नहीं था, लेकिन वो राज्य आंदोलनकारी का दर्जा प्राप्त कर सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं.
उत्तराखंड अलग प्रदेश तो बन गया, लेकिन राजनैतिक संगठनों के साथ अफसरशाही की अनदेखी के कारण उत्तराखंड से पलायन बदस्तूर जारी है. गांव के गांव खाली हो चुके हैं. कई सरकारें आई और गईं, लेकिन ने भी पहाड़ के दर्द को नहीं समझा. सबने अपना ही फायदा देखा, जिस कारण आज प्रदेश के शहीद और आंदोलनकारी खुद को ठगा से महसूस कर रहे हैं.
मसूरी के झूलाघर स्थित शहीद स्थल पर आज शहीदों को श्रद्धांजलि दी जायेगी. जिसमें प्रदेश के कई बडे नेता और सत्ताधारी पहुंचेंगे और शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे. इस दौरान नेता उत्तराखंड को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करेंगे. एक दूसरे पर आरोप लगाएंगे और फिर सब अपने-अपने कामों में लग जाएंगे. एक बार फिर शहीदों के बलिदान को भुला दिया जाएगा.
डॉ. हरिमोहन गोयल बताते हैं कि मसूरी की मालरोड झुलाघर के पास राज्य आदोलनकारी 2 सितंबर 1994 को खटीमा गोलीकांड के विरोध में नारेबाजी कर रहे थे, लेकिन पुलिस ने आंदोलन को कुचलने के लिए पहले से ही तैयारी कर ली थी. लोग नारेबाजी कर रहे थे कि पुलिस ने लाठियां बरसाने के साथ ही गोली चलानी शुरु कर दी. जिसमें 6 राज्य आंदोलनकारी शहीद हो गए. साथ ही 48 लोगों को गिरफ्तार कर बरेली जेल भेजा गया. सैकड़ों लोग घायल हो गये थे.
राज्य आंदोलनकारी सुभाषिनी बर्त्वाल कहती हैं कि जल, जंगल, जमीन और पहड़ से पलायन के मुद्दे को लेकर राज्य की लड़ाई लड़ी गई थी. लेकिन आज सभी मुद्दे नेताओं की महत्वकांक्षा के सामने गुम हो गये हैं. उन्होने कहा कि आज भी उत्तराखंड मूलभूत सुविधाओं से वचिंत है और सपनों का उत्तराखंड बनाने के लिये अभी बहुत कुछ किया जाना है.
आंदोलनकारी देवी गोदियाल कहते है कि उत्तराखंड कि नींव उत्तराखंड क्रांति दल के द्वारा रखी गई थी. लेकिन दुर्भाग्यवश पार्टी सत्ता पर काबिज नहीं हो पाई. उन्होंने कहा कि कांग्रेस और बीजेपी ने प्रदेश को लूटने का काम किया है, जिससे प्रदेश कर्जे में डूब गया है. उन्होंने कहा कि राज्य आंदोलनकारियों के अनुरूप प्रदेश बनाने के लिए फिर से एक बड़ा आंदोलन करना पड़ेगा.
आंदोलनकारियों के जिस सपने को लेकर उत्तराखंड बनाने की कल्पना की थी. वह आज पूरा नहीं हो पाया है. पहाड़ से पलायान होने के कारण गांव-गांव खाली हो गये हैं. बेरोजगारी बढ़ गई है. युवा परेशान हैं. वहीं 1994 के आंदोलन में मौजूद लोगों का चिन्हीकरण नहीं हो पाया है. जिससे आंदोलनकारी मायूस हैं.
मसूरी गोलीकांड के शहीद
- शहीद बेलमती चैहान (48) पत्नी धर्म सिंह चैहान, ग्राम खलोन, पट्टी घाट, अकोदया, टिहरी.
- शहीद हंसा धनई (45) पत्नी भगवान सिंह धनई, ग्राम बंगधार, पट्टी धारमण्डल, टिहरी.
- शहीद बलबीर सिंह नेगी (22) पुत्र भगवान सिंह नेगी, लक्ष्मी मिष्ठान्न भण्डार, लाइब्रेरी, मसूरी.
- शहीद धनपत सिंह (50) ग्राम गंगवाड़ा, पट्टी गंगवाड़स्यूं, टिहरी.
- शहीद मदन मोहन ममगाईं (45) ग्राम नागजली, पट्टी कुलड़ी, मसूरी.
- शहीद राय सिंह बंगारी (54) ग्राम तोडेरा, पट्टी पूर्वी भरदार, टिहरी.