देहरादून: राज्य गठन के 20 वर्ष से अधिक समय गुजर जाने के बावजूद भी अब तक आबकारी विभाग अपनी शराब लाइसेंस पॉलिसी को लेकर सटीक और प्रभावी नीति नहीं बना सका है. विगत कई वर्षों से शराब नीति में अलग-अलग फेरबदल के चलते, जहां एक तरफ करोड़ों के राजस्व का नुकसान हुआ है, वही शराब कारोबारी भी बदलते नियम कायदों से हर बार पशोपेश में फंसकर लाइसेंसी दुकानें को से दूरी बना रहे हैं.
छोटे व्यापारियों के लिए मुसबीत
नए वित्तीय वर्ष 2021-22 में ई टेंडरिंग शराब नीति में दुकानों के लाइसेंस लेने के लिए अलग-अलग बैंक ड्राफ्ट सिक्योरिटी जमा कराने वाले अनिवार्यता को लेकर अब छोटे व्यापारी शासन से लेकर आपकारी मुख्यालय तक अधिकारियों के समक्ष इस व्यवस्था को लागू न करने की मांग कर रहे हैं. ताकि नई ई-टेंडरिंग पॉलिसी प्रक्रिया में छोटे शराब व्यापारी भी शामिल हो सके. उधर पहली बार उत्तराखंड में 2 साल के लिए लाइसेंस शराब की दुकानों का आवंटन होने जा रहा है, ऐसे में इस नीति को लेकर जहां एक तरफ व्यापारी खुशी जाहिर कर रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ हर दुकान के आवेदन के लिए संबंधित दुकान का अधिभार ढ़ाई फीसदी बैंक ड्राफ्ट जमा कराने वाली अनिवार्यता उनके लिए समस्या का कारण बना हुआ है.
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बड़े कारोबारियों को मिलेगा फायदा
बता दे कि जहां एक तरफ नई शराब नीति के नियमों को लेकर आपकारी विभाग के आला अधिकारी अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर शराब के काम से जुड़े छोटे व्यापारी सरकार की इस नई ई-टेंडरिंग नीति का दबी जुबान में विरोध करते दिखाई दे रहे हैं. आलम यह है कि आबकारी अधिकारी इस बार आवेदन में एडवांस जॉब सिक्योरिटी जमा कराने वाली नीति को कठिन बनाकर बड़े शराब कारोबारियों को फायदा देने की मंशा रखते नजर आ रहे हैं.
राजस्व का होगा नुकसान
बीते 2 वर्षों में प्रदेश भर में अनुमानित 90 से अधिक लाइसेंसी दुकानों का आवंटन पूरी तरह से ना होने के चलते सरकार को पहले ही करोड़ों का राजस्व नुकसान हो चुका है. ऐसे में आबकारी विभाग अपने राजस्व नुकसान को पूरा करने के लिए नए नए नियम लागू कर रही है, लेकिन इसका कितना लाभ होगा यह कहना मुश्किल है. जानकारी के मुताबिक वर्ष 2020 में राज्य सरकार ने लॉटरी आवेदन के माध्यम से शराब की लाइसेंस दुकानों का आवंटन जारी किया था.
इस प्रक्रिया के तहत सरकार को सिर्फ आवंटन प्रक्रिया में ही 38 करोड़ का शुद्ध लाभ राजस्व के रूप में हुआ था. वहीं, इस बार ई-टेंडरिंग व्यवस्था लागू होने से जहां एक तरफ लाइसेंस प्रक्रिया में ज्यादा राजस्व प्राप्त ना होने की आशंका जताई जा रही है. वहीं, दूसरी तरफ नई नीति के तहत 2 साल का लाइसेंस आवंटन कराने वाले नियम के चलते सरकार को राजस्व का तकनीकी रूप से अलग नुकसान होने का अंदेशा भी जताया जा रहा है.