उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

ब्लैक फंगस के मरीजों के लिए ऋषिकेश एम्स में 100 बेड का वॉर्ड तैयार - ब्लैक फंगस न्यूज

उत्तराखंड सरकार पहले ही ब्लैक फंगस को महामारी घोषित कर चुकी है. वहीं ऋषिकेश एम्स ने भी ब्लैक फंगस के मरीजों के लिए अलग से तैयारी कर करनी शुरू कर दी है. एम्स में विशेषज्ञ चिकित्सकों की 2 टीमें गठित की गई हैं. साथ ही 100 बेड का अलग से वॉर्ड बनाया गया है.

Rishikesh AIIMS
Rishikesh AIIMS

By

Published : May 24, 2021, 8:28 PM IST

ऋषिकेश:कोरोना का बाद अब उत्तराखंड में म्यूकोरमाइकोसिस (ब्लैक फंगस) के मामले सामने आ रहे है, जिससे लड़ने के लिए सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी है. उत्तराखंड सरकार तो ब्लैक फंगस को महामारी घोषित कर चुकी है. वहीं ऋषिकेश एम्स में ब्लैक फंगस के मरीजों के लिए 100 बेड तैयार किए गए है, जिसमें 10 बेड आईसीयू के हैं.

म्यूकोरमाइकोसिस के मरीजों के समुचित उपचार के लिए एम्स में विशेषज्ञ चिकित्सकों की 2 टीमें गठित की गई हैं. इन टीमों में ईएनटी, न्यूरो, नेत्र, डेंटल और माइक्रोबायोलॉजी के चिकित्सक शामिल हैं. इस बाबत डीन हॉस्पिटल अफेयर्स प्रोफेसर यूबी मिश्रा ने बताया कि वर्तमान में एम्स में म्यूकोरमाइकोसिस के 70 मरीज भर्ती हैं. कोविड पॉजिटिव और कोविड निगेटिव रोगियों को अलग-अलग वार्डों में रखा गया है. म्यूकोरमाइकोसिस के मरीजों की सर्जरी के लिए अलग-अलग ऑपरेशन थिएटर आरक्षित किए गए हैं.

पढ़ें-ऋषिकेश एम्स में अभीतक ब्लैक फंगस से पांच लोगों की मौत, 56 मरीजों का चल रहा इलाज

उन्होंने बताया कि संस्थान में म्यूकोरमाइकोसिस रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. इसे देखते हुए अस्पताल में 10 आईसीयू बेडों समेत कुल 100 बेडों की व्यवस्था की गई है. वर्तमान स्थिति को देखते हुए इनमें अधिकांश बेड कोविड पॉजिटिव मरीजों के लिए आरक्षित हैं.

म्यूकोरमाइकोसिस ट्रीटमेंट टीम के हेड और ईएनटी विभाग के सर्जन डॉ. अमित त्यागी ने बताया कि शुगर के मरीजों को इस बीमारी से विशेष सतर्क रहने की आवश्यकता है. बिना चिकित्सकीय सलाह के स्टेरॉयड का सेवन शुगर वाले कोविड मरीजों के लिए बेहद नुकसानदायक है.

क्या है म्यूकोरमाइकोसिस

  • म्यूकोरमाइकोसिस एक दुर्लभ तरह का फंगस है.
  • यह नाक के द्वारा चोट से आए घाव और खरोंच के जरिए शरीर में ज्यादा तेजी से फैलता है.
  • कमजोर इम्यूनिटी वालों में म्यूकर माइकोसिस के लक्षण ज्यादा देखने को मिलते है.

एम्स में म्यूकोरमाइकोसिस ट्रीटमेंट टीम के हेड व ईएनटी सर्जन डॉ. अमित त्यागी के मुताबिक कोरोना संक्रमित मरीज जिसका शुगर लेवल नियंत्रण में नहीं है, उन्हें इस बीमारी से ज्यादा खतरा है. रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर इस फंगस को तेजी से पनपने का मौका मिलता है और रोगी जल्दी ही गंभीर स्थिति में पहुंच जाता है.

कितनी खतरनाक है यह बीमारी?

म्यूकोरमाइकोसिस से दिमाग, आंख और नाक पर बुरा असर देखने को मिलता है. इस फंगस की सबसे खतरनाक बात यह है कि समय रहते इलाज नहीं होने पर इससे ग्रसित व्यक्ति अपनी आंखों की रोशनी भी गंवा सकता है. शरीर में संक्रमण की स्थिति होने पर रोगी के नाक और जबड़े की हड्डियां तक गल जाने का खतरा रहता है. विशेषज्ञ चिकित्सकों के मुताबिक, इस बीमारी का उपचार समय पर नहीं होने से मरीज की मौत भी हो सकती है.

पढ़ें-रविवार को एम्स ऋषिकेश में मिले ब्लैक फंगस के 10 नए मरीज, एक की मौत

म्यूकोरमाइकोसिस के प्रमुख लक्षण

बुखार, सिरदर्द, नाक बंद होना, नाक से गंदा पानी बहना, आंख में सूजन होना, आंखों में दर्द होना, आंख का मूवमेंट कम होना, आंख से कम दिखाई देना और रोगी की देखने की क्षमता का क्षीण होना इसके प्रमुख लक्षण हैं. यह बीमारी उन लोगों में अधिक देखी जा रही है, जिन्हें डायबिटीज की समस्या है.

डॉक्टर की सलाह

चिकित्सकों की सलाह है कि स्टेरॉयड के सेवन से इलाज करने वाले कोविड संक्रमित रोगी अपने शुगर की नियमित जांच करवाएं और शुगर लेवल पर नियंत्रण रखें. लक्षण नजर आने पर बिना देरी किए चि​कित्सक से परामर्श लें. बिना चिकित्सीय सलाह के स्टेरॉयड का सेवन बिल्कुल भी न करें.

डॉ. त्यागी ने बताया कि कोविड पेशेंट को अधिकतम 10 दिनों से ज्यादा स्टेरॉयड का सेवन नहीं करना चाहिए, दवा की ज्यादा डोज बेहद नुकसानदायक है. इसके अलावा कोविड संक्रमित होने पर रोगी को पहले 6 हफ्तों के दौरान अपने शुगर लेवल पर विशेष ध्यान देने की जरुरत है. एम्स में भर्ती म्यूकोरमाइकोसिस के अधिकांश रोगी शुगर की बीमारी से ग्रसित हैं.

म्यूकोरमाइकोसिस का इलाज

यह संक्रमण नाक व साइनस से शुरू होता है और शरीर के अन्य हिस्सों में फैलने लगता है. इसके उपचार में शरीर में बेजान और संक्रमित ऊतकों को निकाला जाता है, इसलिए कुछ मरीज अपनी ऊपरी दाड़ और आंखें खो बैठते हैं. इसके उपचार में 3 से 6 सप्ताह तक नसों का एंटी-फंगल उपचार भी शामिल है. घातक होने के कारण यह संक्रमण पूरे शरीर पर बुरा असर छोड़ता है. इसलिए इसके उपचार में सूक्ष्म जीवविज्ञानी, गहन न्यूरोलॉजिस्ट, कान-नाक-गला विशेषज्ञ, नेत्र रोग विशेषज्ञ, दंत चिकित्सक, सर्जन और अन्य विशेषज्ञ की सलाह ली जानी चाहिए.

ABOUT THE AUTHOR

...view details