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31 दिसंबर से पूर्णागिरि धाम में लगेगा दो दिवसीय मेला, एसडीएम ने ली तैयारी बैठक - पूर्णागिरि मेला

31 दिसंबर 2022 और 1 जनवरी 2023 को चंपावत के पूर्णागिरि धाम में बड़ा मेला लगता है. दो दिवसीय मेले की व्यवस्था को लेकर एसडीएम सुंदर सिंह ने टकनपुर तहसील में बैठक ली. एसडीएम ने सभी संबंधित विभागों और उनके अधिकारियों को श्रद्धालुओं की सुविधा के मद्देनजर समुचित व्यवस्थाएं बनाने का निर्देश दिया.

Purnagiri Mela
पूर्णागिरि मेला

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Published : Dec 24, 2022, 9:53 AM IST

खटीमा: उत्तर भारत के प्रसिद्ध माता पूर्णागिरि धाम में नव वर्ष पर 2 दिन लगने वाले मेले में श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ दर्शन को पहुंचती है. इसको देखते हुए टनकपुर में एसडीएम ने संबंधित विभागों और मेला प्रबंधक कमेटी के साथ बैठक आयोजित की. एसडीएम ने 2 दिन तक पूर्णागिरि धाम आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा और आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराने के निर्देश दिए.

नव वर्ष के मौके पर चंपावत के सुप्रसिद्ध शक्तिपीठ माता पूर्णागिरि धाम में लगने वाले 2 दिन के मेले को लेकर टनकपुर के नवनियुक्त उप जिलाधिकारी सुंदर सिंह ने टनकपुर तहसील सभागार में सभी संबंधित विभागों एवं मेला समिति के लोगों के साथ एक बैठक की. बैठक में थर्टी फर्स्ट दिसंबर एवं फर्स्ट जनवरी के दिन पूर्णागिरि धाम में दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं के लिए संबंधित व्यवस्थाएं करने एवं आवश्यक सुरक्षा व्यवस्था उपलब्ध कराने जैसे विषयों पर मंथन किया गया.
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उप जिलाधिकारी सुंदर सिंह ने सभी व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से व्यवस्थित करने के लिए संबंधित विभागों को आवश्यक दिशा निर्देश जारी किए. मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि पूर्णागिरि धाम में लगने वाले 2 दिन के नव वर्ष मेले को सुचारू रूप से संपन्न कराने हेतु सभी संबंधित विभागों को दिशा निर्देश जारी कर दिए गए हैं. जिससे कि मेले का व्यवस्थित रूप से संचालन हो सके.

कहां है पूर्णागिरि मंदिर:चंपावत जिले के टनकपुर कस्बे से 24 किमी दूर अन्नपूर्णा चोटी पर मां पूर्णागिरि का धाम स्थित है. मां के 52 शक्तिपीठों में एक पीठ यह भी एक है. माता सती की यहां पर नाभि गिरी थी. 1632 में श्रीचंद तिवारी ने यहां पर मंदिर की स्थापना की और माता की विधिवत पूजा अर्चना शुरू की. मान्यता है कि सच्चे मन से धाम में जो भी अपनी मन्नत मांगता है, उसकी मुराद पूरी होती है.

किवदंती है कि जब सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर स्वयं को जला डाला, तो भगवान शिव उनके पार्थिव शरीर को आकाश मार्ग से ले जा रहे थे. उसी दौरान अन्नपूर्णा चोटी पर माता सती की नाभि गिरी. उसी स्थल को पूर्णागिरि शक्तिपीठ के रूप में पहचान मिली. कहा जाता है कि संवत 1621 में गुजरात के श्री चंद तिवारी यमनों के अत्याचार के बाद जब चंपावत के चंद राजा ज्ञान चंद की शरण में आए, तो उन्हें एक रात सपने में मां पूर्णागिरि ने नाभि स्थल पर मंदिर बनाने का आदेश दिया. इसके बाद 1632 में धाम की स्थापना कर पूजा अर्चना शुरू हुई. तब से ही यह स्थान आस्था, भक्ति और श्रद्धा की त्रिवेणी बना हुआ है.

ऐसी मान्यता है कि यहां पहुंचने वाले हर भक्त की मुराद जरूर पूरी होती है. यहां वर्ष भर श्रद्धालु शीश नवाते हैं. चैत्र और शारदीय नवरात्र में तो इस धाम में भक्तों की बहुत भीड़ उमड़ती है. उत्तर भारत ही नहीं अपितु देश भर के लोग यहां मां के दर्शन करने के लिए आते हैं.

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