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श्रीसिद्ध नरसिंह मंदिर का हुआ भव्य उद्घाटन

चंपावत जिला मुख्यालय से 25 किमी दूर श्रीसिद्ध नरसिंह बाबा के मंदिर का पुनर्निर्माण का कार्य कुछ समय पहले ही शुरू किया गया था. यह मंदिर उत्तराखंड के सबसे ऊंचे मंदिरों में से एक है. मंदिर का शुभारंभ मकर संक्रांति पर्व के दिन मंदिर में पूजा अर्चना के बाद विधिवत उद्घाटन हो गया है.

sri siddha narasimha temple
श्री सिद्ध नरसिंह मंदिर.

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Published : Jan 15, 2021, 9:18 AM IST

चंपावत: जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर श्रीसिद्ध नरसिंह बाबा के मंदिर का पुनर्निर्माण का कार्य कुछ समय पहले ही शुरू किया गया था. भक्तों ने एकजुटता और मेहनत के बाद बाबा का भव्य मंदिर बनकर तैयार हो गया है.

बताया जा रहा है कि यह मंदिर उत्तराखंड के सबसे ऊंचे मंदिरों में से एक है. मंदिर का शुभारंभ मकर संक्रांति पर्व के दिन मंदिर में पूजा अर्चना के बाद विधिवत उद्घाटन हो गया है. मंदिर परिसर से हिमालय का विहंगम दृष्य दिखता है. समुद्र सतह से 2050 मीटर ऊंचाई पर, बांज के घने पेड़ों से घिरा और प्राकृतिक सुदंरता के बीच स्थित सिद्ध नरसिंह मंदिर की जहां दर्शन करने क लिये पूरे वर्ष भर श्रद्धालु आते हैं.

बांज, बुरांश, ऊतीश, खरसू सहित कई प्रजातियों के पेड़ों के बीच इस मंदिर में आने से एक असीम शांति और सुकून का अनुभव होता है. नवरात्रि के मौके पर दर्शन के लिये यहां भक्तों का तांता लगा रहता है. इस मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहां पर आने वाले भक्तों की मनोकामना जरूर पूरी होती है. खेतीखान क्षेत्र के तपनीपाल गांव के पास है सिद्ध नरसिंह मंदिर, यहां पर वैसे तो हर समय भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन नवरात्रि के समय पर यहां भक्तों की भारी भीड़ देखी जा सकती है.

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विजयादशमी के मौके पर यहां मेले का भी आयोजन किया जाता है. मेले में दूर दूर से भक्त लोग आकर पूजा पाठ करते हैं. इस मंदिर में किसी भी प्रकार की बलि नहीं दी जाती है. यहां पर घंटियों और कपड़े से बने लिसान (देवता का ध्वज का प्रतीक) का चढ़ावा होता है. पहले इस मंदिर तक आने के लिए खड़ी चढ़ाई-चढ़नी होती थी, लेकिन अब मुख्य मार्ग से सड़क के माध्यम से जुड़ने पर यहां पर लोगों की आवाजाही और बढ़ गई है.

उद्घाटन के मौके पर लोहाघाट के विधायक पूरन सिंह फर्त्याल के साथ हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने मंदिर में भगवान भोलेनाथ के दर्शन किए. खासियत यह है कि यह 14वीं सदी में चंद शासकों के समय बना था, जिसका पास के गांव में ही एक ताम्रपत्र भी मिला है. स्थानीय 22 गांव के लोगों ने बिना किसी सरकारी मदद के यह भव्य मंदिर बनाया है अब जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंच रहे हैं.

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