चंपावत: जिले के देवीधुरा मां बाराही धाम में लगने वाले उत्तर भारत के सुप्रसिद्ध बग्वाल मेले का भव्य आगाज हो गया है. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि 1008 महर्षि कल्याण दास महाराज ने फीता काटकर किया. इस दौरान पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल, जिला पंचायत अध्यक्ष खुशाल सिंह, संरक्षक लक्ष्मण सिंह लमगड़िया मौजूद रहें.
बता दें कि रविवार को बग्वाल मेले के उद्घाटन के अवसर पर स्कूली बच्चों व अन्य लोगों ने परंपरागत वेशभूषा में हनुमान मंदिर से मां बाराही मंदिर तक कलश यात्रा और झांकी निकाली. इस दौरान 1008 महर्षि कल्याण दास ने मां बाराही की मूल मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की. इस साल यह मेला 11 अगस्त से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी तक चलेगा. 15 अगस्त व रक्षाबंधन के दिन बग्वाल खेल मेले का मुख्य आकर्षण होगा.
यह भी पढ़ें:उत्तराखंडः भूस्खलन के कारण बदरीनाथ हाई-वे बंद, 600 यात्रियों को रोका गया
ये है मान्यता-
उत्तर भारत के सुप्रसिद्ध बग्वाल मेले की मान्यता है कि जिले के देवीधुरा क्षेत्र में नरवेद्यी यज्ञ किया जाता था, जिसमें नर बली दी जाती थी. बग्वाल चार खामों और सात तोक के लोगों के बीच में खेला जाता है. माना जाता है कि देवीधुरा में बग्वाल का यह खेल पौराणिक काल से खेला जा रहा है. यहां के लोग इस खेल को कत्यूर शासन से चला आ रहा पारंपरिक त्योहार मानते हैं, जबकि कुछ अन्य लोग इसे काली कुमाऊं से जुड़ा हुआ त्योहार मानते हैं. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार पौराणिक काल में आराध्या बाराही देवी को मनाने के लिए चार खामों के लोगों द्बारा नर बलि देने की प्रथा थी.
बताया जाता है कि एक साल चमियाल खाम के एक वृद्धा की नर बलि देने की बारी थी. परिवार में वृद्धा और उसका पौत्र ही जीवित थे. माना जाता है कि महिला ने अपने पौत्र की रक्षा के लिए मां बाराही की स्तुति करना शुरू की. मां बाराही ने वृद्धा को दर्शन दिए और देवी ने वृद्धा को मंदिर परिसर में चार खामों के बीच बग्वाल खेलने के निर्देश दिए. उसके बाद से ही बग्वाल की प्रथा शुरू हुई. बग्वाल बाराही मंदिर के प्रांगण खोलीखाण में खेली जाती है.
यह भी पढ़ें:सतपाल महाराज ने सीमांत गांवों को इनर लाइन से हटाने की मांग, अमित शाह को लिखा पत्र
प्राचीन काल से लेकर अब तक बग्वाल खेल चारों खामों के युवक और बुजुर्ग मिलकर खेलते हैं. हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद बग्वाल खेलने की परंपरा में परिवर्तन आया है. इसके चलते बग्वाल अब फल और फूलों से खेला जाने लगा है. परंपरा को निभाते हुए यहां के लोग खेल में अब भी कभी- कभी पत्थरों का प्रयोग करते हैं.