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देवीधुरा में फलों से खेली गई बग्वाल, सीएम धामी बने साक्षी, जानिए मेले का इतिहास और मान्यता

Devidhura Bagwal Mela चंपावत के देवीधुरा के प्रसिद्ध मां वाराही मंदिर में रक्षाबंधन पर बग्वाल खेलने की परंपरा है. पुराने जमाने में यहां नर बलि देने की प्रथा थी, जो समय के साथ पत्थर युद्ध में तब्दील हो गई, लेकिन साल 2013 में न्यायालय के आदेश के बाद पत्थरों की जगह फूल और फलों से बग्वाल खेली जाने लगी है. बग्वालीवीरों का मानना है कि वो आसमान में फलों को फेंकते हैं, लेकिन वो पत्थरों में तब्दील हो जाते हैं. इस बग्वाल में एक व्यक्ति के शरीर के बराबर का खून बहाया जाता है.

Bagwal Mela Devidhura
देवीधुरा में बग्वाल मेला

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Aug 31, 2023, 8:33 PM IST

Updated : Sep 1, 2023, 6:01 PM IST

देवीधुरा में फलों से खेली गई बग्वाल

चंपावतः हर साल रक्षाबंधन पर देवीधुरा स्थित मां वाराही देवी मंदिर परिसर में बग्वाल मेले का आयोजन होता है. इस बार भी आषाढ़ी कौतिक के मौके पर 50 हजार से ज्यादा लोग बग्वाल मेले का गवाह बने. चारों खामों (बिरादरी) के रणबांकुरों ने 7 मिनट तक फूल, फल और पत्थरों से युद्ध किया. इस मौके पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी मां वाराही धाम पहुंचे और पूजा अर्चना की. इसके अलावा खुद सीएम धामी देवीधुरा बग्वाल मेले के साक्षी बने.

देवीधुरा में फलों से खेला गया बग्वाल मेला

बता दें कि साल 2022 में चंपावत के प्रसिद्ध देवीधुरा मां वाराही बग्वाल मेले को राजकीय मेला घोषित किया जा चुका है. गुरुवार को भी पाटी ब्लॉक के देवीधुरा स्थति मां वाराही धाम (बाराही) के खोलीखांड डुवाचौड़ मैदान में सुबह के समय प्रधान पुजारी ने पूजा अर्चना की. इसके बाद 12 बजकर 40 मिनट से एक-एक कर सभी चारों खामों और 7 थोक के बग्वालियों का आगमन हुआ. सबसे पहले सफेद पगड़ी में वालिक खाम ने मंदिर में प्रवेश किया. इसके बाद 1 बजकर 8 मिनट में गुलाबी पगड़ी पहने चम्याल खाम दाखिल हुए. वहीं, 1 बजकर 36 मिनट पर गहड़वाल खाम ने मंदिर में प्रवेश किया. आखिर में पीली पगड़ी पहनी लमगड़िया खाम पहुंची.

देवीधुरा में बग्वाल मेला

सभी खामों के प्रवेश के बाद प्रधान पुजारी ने मंदिर से शंखनाद किया. जिसके बाद 2 बजकर 14 मिनट पर बग्वाल शुरू हुई. बग्वाल शुरू होते ही मां के जयकारों से पूरा खोलीखाण दुवाचौड़ मैदान गुंजायमान हो गया. पीठाचार्य पंडित कीर्ति बल्लभ जोशी ने कहा कि यह मेला बग्वाल देखने वालों के लिए भी फलदायी है. इस बार करीब 10 क्विंटल फलों से युद्ध खेली गई. युद्ध में करीब 150 रणबांकुरे मामूली रूप से घायल हुए. जिनका इलाज कर घर भेज दिया गया.

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नर बलि देने की थी प्रथाःगौर हो कि चंपावत जिले में स्थित देवीधुरा का ऐतिहासिक बग्वाल मेला आषाढ़ी कौतिक के नाम से भी प्रसिद्ध है. हर साल रक्षाबंधन के मौके पर बग्वाल खेली जाती है. मान्यता है कि पौराणिक काल में चार खामों के लोगों की ओर से अपने आराध्य मां वाराही देवी को मनाने के लिए नर बलि देने की प्रथा थी. बताया जाता है कि एक साल चमियाल खाम की एक वृद्धा परिवार की नर बलि की बारी थी. परिवार में वृद्धा और उसका पौत्र ही जीवित थे.

प्रसिद्ध देवीधुरा मां वाराही बग्वाल मेले में सीएम धामी

बताया जाता है कि महिला ने अपने पौत्र की रक्षा के लिए मां वाराही की स्तुति की. मां वाराही ने वृद्धा को दर्शन दिए और चार खामों के बीच बग्वाल खेलने को कहा. तब से बग्वाल की प्रथा शुरू हुई. माना जाता है कि एक इंसान के शरीर में मौजूद खून के बराबर रक्त बहने तक खामों के बीचे पत्थरों से युद्ध यानी बग्वाल खेली जाती है. पुजारी के बग्वाल को रोकने के आदेश तक युद्ध जारी रहता है. मान्यता है कि इस खेल में कोई भी गंभीर रूप से घायल नहीं होता है.

बग्वाल मेले में जुटे खाम के रणबांकुरे

सीएम धामी ने कही ये बातःमुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि यह स्थान आध्यात्मिक रूप से जितना समृद्ध है, प्राकृतिक रूप से भी उतना ही ज्यादा मनोरम है. इस अलौकिक भूमि का न केवल ऐतिहासिक महत्व रहा है, बल्कि इस क्षेत्र का पौराणिक महत्व भी किसी से छिपा नहीं है. उन्होंने कहा कि संस्कृति की महानता के विषय में आम लोगों को जागृत करने का काम हमारे ऐतिहासिक मेले करते हैं. बगवाल का यह ऐतिहासिक मेला भी इसी का एक बेहतर उदाहरण है.

देवीधुरा में बग्वाल मेला
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इस तरह के मेले के आयोजनों से हमारी लोक संस्कृति और लोक परंपराओं को बढ़ावा देने के साथ लोक कलाकारों को भी बढ़ावा मिलता है. इस विरासत को संभाले रखना सभी का कर्तव्य है. उन्होंने कहा कि मेले हमारे समाज को जोड़ने, प्राचीन संस्कृति और परंपराओं के बारे में नई पीढ़ी को जागरूक करने में भी अपनी अहम भूमिका निभाते हैं.

सीएम धामी ने मां वाराही धाम में की पूजा अर्चना

सीएम धामी ने कहा कि सरकार केदारनाथ खंड की भांति कुमाऊं में मानस खंड कॉरिडोर बनाने की दिशा में आगे बढ़ रही है. जिसके अंतर्गत कुमाऊं क्षेत्र के सभी प्राचीन मंदिरों का विकास किया जा रहा है. मानसखंड मंदिर माला के अंतर्गत चंपावत के लगभग सभी मंदिर भी शामिल हैं.
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Last Updated : Sep 1, 2023, 6:01 PM IST

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