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फूलों की घाटी पर्यटकों के लिए हुई बंद, इस साल 20 हजार से ज्यादा सैलानी पहुंचे - चमोली फूलों की घाटी

उत्तराखंड स्थित फूलों की घाटी आज पर्यटकों के लिए बंद कर दी गई है. अब इस इलाके में बर्फबारी से सैर सपाटा मुश्किल हो जाता है. इसलिए शीतकाल में फूलों की घाटी को पर्यटकों के लिए बंद कर दिया जाता है. इस साल घाटी में 20,827 पर्यटक पहुंचे. यह अब तक घाटी में पहुंचने वाले सर्वाधिक पर्यटकों का रिकॉर्ड है. फूलों की घाटी में आए पर्यटकों से इस साल वन विभाग ने 31 लाख से अधिक की कमाई की है.

Valley of Flowers
फूलों की घाटी

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Published : Oct 31, 2022, 10:57 AM IST

Updated : Oct 31, 2022, 11:22 AM IST

चमोली: उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित विश्व धरोहर फूलों की घाटी आज शीतकाल में पर्यटकों के लिए बंद कर दी दी गई है. वन विभाग ने इसको लेकर पूरी तैयारी पहले ही कर ली थी. इस साल फूलों की घाटी में 20,827 पर्यटक पहुंचे. इनमें 280 विदेशी पर्यटक भी शामिल थे. पर्यटकों की ये संख्या फूलों की घाटी पहुंचने की अब तक की सबसे ज्यादा है.

वन विभाग की हुई बंपर कमाई: इस साल फूलों की घाटी में रिकॉर्ड पर्यटक आए. इन पर्यटकों से वन विभाग ने 31 लाख से अधिक की कमाई की है. 87.5 वर्ग किलोमीटर में फैली फूलों की घाटी रंग बिरंगे फूलों और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विश्व प्रसिद्ध है. फूलों की घाटी में दुनिया के सबसे ज्यादा प्रजातियों के फूल खिलते हैं. ये फूल और फूलों की घाटी का प्राकृतिक सौंदर्य सैलानियों को यहां खींच लाता है. इस साल फूलों की घाटी पर्यटकों के लिए एक जून को खोली गई थी.

फूलों की घाटी में खिलते हैं सैकड़ों प्रजाति के फूल: फूलों की घाटी में जुलाई से अक्तूबर तक 500 से अधिक प्रजाति के फूल खिलते हैं. यहां ब्रह्म कमल, फैन कमल, पोटोटिला, प्रिम्यूला, एनीमोन, एरिसीमा, एमोनाइटम, ब्लू पॉपी, मार्स मेरी गोल्ड जैसे अनेक फूल खिलते हैं.
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फूलों की घाटी में दुर्लभ प्रजाति के जीव जंतुओं, वनस्पति और जड़ी बूटियों का भंडार है. विभिन्न प्रकार के फूल होने के कारण यहां तितलियों की भी भरमार रहती है. फूलों की घाटी में गुलदार, हिम तेंदुए, कस्तूरी मृग, मोनाल और हिमालय के काले भालू भी दिखते हैं.

जैव विविधता का खजाना है फूलों की घाटी: फूलों की घाटी उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है. बता दें कि समुद्र तल से करीब 12,500 फीट की ऊंचाई पर 87.5 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैली फूलों की घाटी जैव विविधता का खजाना है. यहां पर दुनिया के दुर्लभ प्रजाति के फूल, वन्य जीव-जंतु, जड़ी-बूटियां व पक्षी पाए जाते हैं. फूलों की घाटी को साल 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया और साल 2005 में यूनेस्को ने इसे विश्व प्राकृतिक धरोहर का दर्जा दिया.

सितंबर में खिलते हैं ब्रह्मकमल: फूलों की घाटी में भ्रमण के लिए जुलाई, अगस्त व सितंबर के महीनों को सर्वोत्तम माना जाता है. सितंबर में यहां ब्रह्मकमल खिलते हैं. चमोली स्थित फूलों की घाटी को देखकर ऐसा लगता है, जैसे किसी ने खूबसूरत पेंटिंग बनाकर यहां रख दी हो. चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे पर्वत और उन पर्वतों के ठीक नीचे यह फूलों की घाटी प्रकृति का मनोरम दृश्य है. यहां घूमने के लिए विदेशियों और भारतीय पर्यटकों से अलग-अलग शुल्क लगता है.

घांघरिया से करीब एक किलोमीटर के दायरे में वन विभाग की चौकी मिलती है. यहीं से फूलों की घाटी शुरू होती है. यहीं पर शुल्क जमा होता है. यहां जाएं, तो परिचय पत्र अवश्य साथ रखें. घांघरिया तक खच्चर भी मिलते हैं. गोविंद घाट पर सस्ते प्लास्टिक रेनकोट भी उपलब्ध हो जाते हैं. यहां गाइड भी उपलब्ध हैं.

रामायण काल से मौजूदगी: वहीं, मान्यता है कि यहीं से भगवान हनुमान लक्ष्मण जी के लिए संजीवनी बूटी ले गए थे. क्योंकि इस जगह पर इतने पुष्प और जड़ी बूटी मौजूद हैं, जिसकी पहचान करना भी मुश्किल है. लिहाजा कई लोग इसे रामायण काल से भी जोड़ कर देखते हैं.

ब्रिटिश पर्वतारोहियों ने की थी खोज: इस घाटी की खोज ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और उनके साथी आरएल होल्ड्सवर्थ ने की थी. बताया जाता है कि वो अपने एक अभियान से लौट रहे थे. साल 1931 का वक्त था, जब वो यहां की खूबसूरती और फूलों को देख कर इतने अचंभित और प्रभावित हुए कि कुछ समय उन्होंने यहीं पर बिताया. इतना ही नहीं वह यहां से जाने के बाद एक बार फिर से 1937 में वापस लौटे और यहां से जाने के बाद एक किताब भी लिखी, जिसका नाम वैली ऑफ फ्लावर रखा.
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जुलाई-अगस्त में आना होगा बेहतर: फूलों की घाटी 3 किलोमीटर लंबी और लगभग आधा किलोमीटर चौड़ी है. यहां पर आने के लिए जुलाई, अगस्त और सितंबर के महीने सबसे बेहतर रहते हैं. चारधाम यात्रा पर अगर आप आ रहे हैं तो बदरीनाथ धाम जाने से पहले आप यहां पर आ सकते हैं. राज्य सरकार की तरफ से गोविंदघाट में रुकने की व्यवस्था है, लेकिन आप यहां पर रात नहीं बिता सकते हैं. लिहाजा आपको शाम ढलने से पहले पार्क से लौटना ही पड़ेगा.

Last Updated : Oct 31, 2022, 11:22 AM IST

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