देहरादून/चमोली: सन 1973 के शुरुआती दिन थे. चमोली जिले के दशोली इलाके में तत्कालीन उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद स्थित खेल का सामान बनाने वाली कंपनी साइमंड्स को ऐश के पेश काटने से रोका गया. ग्रामीणों ने गोपेश्वर से साठ किमी दूर फाटा रामपुर के जंगलों में साइमंड्स के एजेंटों को पेड़ काटने से रोक दिया.
बाढ़ से तबाह हुआ था इलाका: इससे पहले 1970 में जोशीमठ इलाका अलकनंदा की भीषण बाढ़ से तबाह होकर कराह रहा था. कई साल बाद तक इलाका बाढ़ की तबाही से उबर नहीं पाया था. तभी 1973 में वन विभाग ने जोशीमठ ब्लॉक के रैणी गांव के नजदीक पेंग मुरेंडा जंगल को पेड़ काटने के लिए चुना. ऋषिकेश निवासी ठेकेदार को 680 हेक्टेयर जंगल पौने पांच लाख रुपए में नीलामी में दिया गया.
गौरा देवी के नेतृत्व में हुआ चिपको आंदोलन: रैणी गांव और उसके आसपास के गांवों के लिए ये जंगल उनकी आजीविका का साधन था. यहीं से वो चूल्हे के लिए लकड़ी लाते तो अपने मवेशियों के लिए चारा भी इसी जंगल से लाते थे. जब वन कटने की खबर आग की तरह फैल गई, तो रैणी गांव की मातृ शक्ति ने महिला मंडल की प्रधान गौरा देवी के नेतृत्व में बैठक की. बैठक में फैसला हुआ कि कुछ भी हो जाए, ठेकेदार को जंगल नहीं काटने देंगे. गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं के समूह ने को ठेकेदार और उसके मजदूरों को जंगल से बाहर खदेड़ दिया.
महिलाओं के आगे हारा ठेकेदार: रैणी निवासी गौरा देवी और उनके साथ की महिलाओं ने पेड़ों को बचाने के लिए दुनिया का सबसे अनोखा आंदोलन किया. ये महिलाएं पेड़ों से चिपक गईं. अपने जंगल के पेड़ों को अपने आलिंगन में लेकर उन्होंने ठेकेदार के लोगों से कहा- इन पेड़ों को काटने से पहले तुम्हें हम पर अपने कुल्हाड़ी और आरे चलाने होंगे. महिलाओं के इस जबरदस्त प्रतिरोध से ठेकेदार और उसके आदमी डर गए और उल्टे पैर लौट गए.