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जन्नत से कम नहीं देवभूमि, यहां आप कर सकेंगे खुद से बातें - उत्तराखंड टूरिज्म

चमोली जनपद का जिला मुख्यालय गोपेश्वर में स्थित है. चमोली की प्राकृतिक सुंदरता हमेशा ही लोगों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती रहती है.

Uttarakhand favorite tourist destinations in Chamoli
जन्नत से कम नहीं देवभूमि

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Published : Dec 27, 2020, 8:40 AM IST

चमोली: देवभूमि उत्तराखंड अपनी खूबसूरती के लिए देश ही नहीं विदेशों में भी विख्यात है. यहां की शांत और हिमच्छादित पर्वत श्रृंखलाएं बरबस ही सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करती रहती हैं. सूरज की किरणें जब बर्फ से ढके इन पहाड़ों पर पड़ती है तो मानों ऐसा लगता है कि सुबह पहाड़ सूरज की रोशनी में नहा कर आये हो. जहां हर साल देश-विदेश से लाखों सैलानी खिंचे चले आते हैं. यहां से लौटते वक्त सैलानी अपने साथ खूबसूरत यादों को ले जाते हैं.

अगर आप घूमने का शौक रखते हैं तो यहां सैर-सपाटे के लिए दर्जनों जगहें हैं, जहां आप खूबसूरती के अलावा यहां की एडवेंचर एक्टिविटी का भी लुत्फ भी उठा सकते हैं. चमोली जिला प्राकृतिक नैसर्गिक सौन्दर्य के साथ ही धार्मिक महत्व के लिये भी जाना जाता है. जो उत्तराखंड का सीमांत जिला भी है. भारत-चीन और तिब्बत सीमा पर स्थित सीमान्त इस जनपद की स्थापना 1960 में हुई थी. चमोली अलकनंदा नदी के समीप बदरीनाथ मार्ग पर बसा एक सुंदर पर्वतीय जिला है.

जन्नत से कम नहीं देवभूमि.

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बात अगर पर्यटन और धार्मिक महत्व की जाएं तो यहां बदरीनाथ, हेमकुंड साहेब और फूलों की घाटी मौजूद हैं जो इस जनपद को अन्य जिलों से खास बनाती है. इतिहासकारों के अनुसार चमोली जिले का नाम चमोलानाथ मंदिर ने नाम पर पड़ा. वहीं हिन्दुओं और सिखों के पवित्र धार्मिक स्थल बदरीनाथ धाम और हेमकुंड साहेब चमोली जनपद में ही स्थित है. जहां देश-विदेश से लोग शीष नवाने आते हैं.

चमोली जनपद का जिला मुख्यालय गोपेश्वर में स्थित है. चमोली की प्राकृतिक सुंदरता हमेशा ही लोगों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती रहती है. वहीं चमोली के वेदनी बुग्याल और रूपकुंड में देश विदेशों के पर्यटक ट्रैकिंग के लिए पहुंचते हैं. साथ ही औली पर्यटन स्थल पर साल भर सैलानियों का तांता लगा रहता है. इसलिये ये जिला मुख्यालय पर्यटन के लिहाज से भी काफी खास है. शिक्षा के लिहाज से भी चमोली अग्रणीय रहा है. उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड का पहला और सबसे पुराना स्वतंत्र लॉ कालेज भी चमोली के गोपेश्वर में ही है. जहां दूर-दूर से छात्र-छात्राएं पढ़ने आते हैं.

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प्रमुख पर्यटन और धार्मिक स्थल

बदरीनाथ धाम

बदरीनाथ देश के प्रमुख धार्मिक स्थानों में से एक है. यह चार धामों में से एक धाम है. बदरीनाथ मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है. इसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी. इसके बाद इसका निर्माण दो शताब्दी पूर्व गढ़वाल राजाओं ने करवाया था. बदरीनाथ तीन भागों में विभाजित है- गर्भ गृह, दर्शन मंडप और सभा मंडप.

हेमकुंड साहिब

हेमकुंड को स्न्रो लेक के नाम से भी जाना जाता है. यह समुद्र तल से 4329 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यहां बर्फ से ढके सात पर्वत हैं, जिसे हेमकुंड पर्वत के नाम से जाना जाता है. इसके अतिरिक्त तार के आकार में बना गुरूद्वारा जो इस झील के समीप ही है. सिख धर्म के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है. यहां विश्‍व के सभी स्थानों से हिन्दू और सिख भक्त काफी संख्या में दर्शन के लिए आते हैं. ऐसा माना जाता है कि गुरू गोविन्द सिंह जी, जो सिखों के दसवें गुरू थे, यहां पर तपस्या की थी. यहां घूमने के लिए सबसे अच्छा समय जुलाई से अक्टूबर है.

प्रसिद्ध फूलों की घाटी

प्रकृति प्रेमियों के लिए यह जगह स्वर्ग के समान है. इस स्थान की खोज फ्रेंक स्मिथ और आर.एल. होल्डवर्थ ने 1930 में की थी. इस घाटी में सबसे अधिक संख्या में जंगली फूलों की किस्में देखी जा सकती हैं. पौराणिक कथा के अनुसार हनुमान जी लक्ष्मण जी के प्राणों की रक्षा के लिए यहां से संजीवनी बूटी लेने के लिए आए थे. इस घाटी में पौधों की 521 किस्में हैं. 1982 में इस जगह को राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित कर दिया गया था. इसके अलावा यहां कई दुर्लभ जंगली जानवर जैसे, काला भालू, हिरण, भूरा भालू, तेंदुए, चीता आदि देखने को मिलते हैं.

औली

औली बहुत ही खूबसूरत जगह है, यहां बर्फ से ढके पर्वतों और स्नो स्कीइंग का मजा लिया जा सकता है. जोशीमठ के रास्ते औली पहुंचा जाता है, जोकि लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां सर्दियों में कई प्रतियोगिताएं आयोजन की जाती हैं. यह आयोजन गढ़वाल मंडल विकास सदन द्वारा करवाया जाता है.

इसके अलावा यहां से नंदा देवी, कामत और और दूनागिरी पर्वतों का नजारा भी देखा जा सकता है. जनवरी से मार्च के समय में औली पूरी तरह बर्फ की चादर से ढका हुआ रहता है. यहां पर बर्फ करीबन तीन फीट तक गहरी होती है. औली में होने वाले साहसिक पर्यटन कार्यक्रम सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं.

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