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ब्रह्मकपाल...पितरों की मुक्ति का अंतिम द्वार, इस जगह पिंडदान से मिलता है आठ गुना पुण्य

आज से पितृ पक्ष 2022 की शुरुआत हो चुकी है. जिसको लेकर बड़ी संख्या में श्रद्धालु बदरीनाथ धाम पहुंचे हैं. मान्यता है कि बदरीनाथ स्थित ब्रह्म कपाल में पिंडदान करने से मृत आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है. यहां पिंडदान का गया और काशी में होने वाले पिंडदान से भी ज्यादा महत्व है.

Shradh and Pind Daan of ancestors
पितृ पक्ष 2022 की शुरुआत

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Published : Sep 10, 2022, 5:32 PM IST

Updated : Sep 10, 2022, 5:43 PM IST

चमोली: आज से पितृ पक्ष की शुरुआत (beginning of Pitru paksha) हो गई है. देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग अपने पितरों का श्राद्ध और पिंडदान (Shradh and Pind Daan of ancestors) करने के लिए विश्व के सबसे बड़े मोक्ष धाम बदरीनाथ धाम (World largest Moksha Dham Badrinath Dham) पहुंच रहे हैं. हिंदू धार्मिक मान्यता अनुसार बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्म कपाल में पिंडदान करने से मृत आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है. शास्त्रों में बदरीनाथ धाम को भू-बैकुंठ भी कहा गया है. इसे पृथ्वी का सबसे बड़ा मोक्ष धाम माना जाता है.

मान्यता है कि एक बार यहां पितरों का पिंडदान कर दिया जाए तो कहीं भी दूसरे स्थान पर पिंडदान करने की आवश्यकता नहीं होती है. बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्म कपाल को गया और काशी से भी सर्वोच्च मोक्ष धाम का दर्जा प्राप्त है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब भगवान शिव पर ब्रह्म हत्या का पाप चढ़ा था, तो वह ब्रह्म कपाल स्थित इसी स्थान पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हुए थे.

जानकारी देते पुरोहित.

ब्रह्मकपाल को लेकर ये है मान्यता:इस ब्रह्म हत्या के पाप के मुक्ति के लिए भगवान शिव तीनों लोक घूमे. अंत में बदरीनाथ धाम के ब्रह्मकपाल में ज्यों ही पहुंचे, त्यों ही यह सिर त्रिशूल से छूट गया और यह तीर्थ ब्रह्मकपाल कहलाया. पितरों को मोक्ष के चलते बदरीनाथ धाम को मोक्ष धाम भी कहते हैं. यहां पर पिंडदान करने के पश्चात पितरों को मोक्ष मिलने के काऱण अन्य जगह पिंडदान और तर्पण करने की आवश्यकता नहीं होती. बदरी नाथ मंदिर से करीब 200 मीटर की दूरी पर अलकनंदा नदी के किनारे ब्रह्मकपाल तीर्थ स्थित है. इसे कपाल मोचन तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है. यहां पर पितृ तर्पण या पिंडदान करने का विशेष महत्व है.

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ब्रह्मकपाल में पिंडदान का विशेष महत्व:ब्रह्मकपाल तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि गया और काशी में भी पिंडदान किया जाता है लेकिन ब्रह्मकपाल में पिंडदान का विशेष महत्व है. श्राद्ध पक्ष में गाय, कौआ और कुत्ते को भोजन दिया जाता है. इसके साथ ही श्राद्ध में चावल की खीर बनाई जाती है. चावल को देवताओं का अन्न माना जाता है. इसलिए चावल की खीर बनाई जाती है. देवताओं और पितरों को चावल प्रिय है. इसलिए यह पहला भोग होता है. साथ ही चावल, जौ और काले तिल से पिंडदान बनाकर पितरों को अर्पित किए जाते हैं.

भुवन चंद्र उनियाल धर्माधिकारी बदरीनाथ धाम का कहना है कि वंश वृद्धि के लिए पित्रों का पूजन करना चाहिए, प्रथम पिंड गया से प्रारंभ होता है और अंतिम पिंड बदरीनाथ ब्रह्मकपाल से. ब्रह्मकपाल वो तीर्थ है जिस तीर्थ में ब्रह्मा की भी हत्या होने के बाद भगवान शंकर पर ब्रह्म हत्या लग गयी, ब्रह्मा का एक सिर कट गया और यही बदरीनाथ ब्रह्मकपाल में उनके त्रिशूल से छूट पड़ा. यानी कि ब्रह्म हत्या का पाप भी पूर्ण हो गया अर्थात, वो क्षेत्र भी विशेष रूप से पित्र प्रतिक्षा करते हैं. महाभारत में तो ये भी कहा गया है कि उस क्षेत्र के दर्शन से पितृ खुश हो जाते हैं, अगर कुछ नहीं कर सकते तो हाथ ऊपर खड़े करिए और पितृों को याद करिए.

आज श्राद्ध पक्ष शुरू होते ही देश-विदेश से लोग अपने पितरों का पिंडदान करने के लिए बदरीनाथ धाम पहुंच रहे हैं. अपने पितरों का पिंडदान करने के लिए बदरीनाथ धाम पहुंचे श्रद्धालुओं की भीड़ अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि ब्रह्म कपाल के अलावा बदरीनाथ पैदल पुल पर भी बिठाकर लोग को पितरों का पिंडदान कराया जा रहा हैं.

कोरोना काल में जो श्रद्धालु अपने पितरों का पिंडदान करने बदरीनाथ धाम नहीं पहुंच पाए थे. वह इस साल बदरीनाथ धाम पहुंच रहे हैं. जहां वह भगवान बदरी विशाल के दर्शनों के साथ-साथ अपने पितरों का पिंडदान भी ब्रह्म कपाल के तीर्थ पुरोहितों से करवा रहे हैं.

Last Updated : Sep 10, 2022, 5:43 PM IST

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