चमोली: भू बैकुंठ श्री बदरीनाथ धाम के कपाट तो 30 अप्रैल को विधि-विधान से साथ खोल दिए गए थे लेकिन लॉकडाउन के कारण यहां अभी भी श्रद्धालुओं को आने की अनुमति नहीं है. इस बार बदरीनाथ के तीर्थ पुरोहितों ने ब्रह्म कपाल में पहला पिंडदान कोरोना से मरने वाले मरीजों और इससे जंग लड़ते हुए शहीद हुए कोरोना वॉरियर्स का किया है. इसके साथ ही देश की सीमा पर शहीद हुए जवानों का भी ब्रह्म कपाल में पिंडदान और तर्पण कर मोक्ष की कामना की गई.
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ब्रह्म कपाल का पौराणिक इतिहास
पौराणिक इतिहास के अनुसार बदरीनाथ धाम में स्थित ब्रह्म कपाल में भगवान शिव को खुद ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी. बदरीनाथ धाम में तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसलिए भगवान कृष्ण की आज्ञा लेकर पांडव भी पितरों के उद्धार के लिए बदरीनाथ पहुंचे थे. इसलिए बदरीनाथ धाम को मोक्ष का धाम कहा जाता है.
पौराणिक मान्यता के अनुसार ब्रह्म कपाल में पिंडदान करने से मृत आत्मा का अन्य जगहों में पिंडदान करने से आठ गुना अधिक फल प्राप्त होता है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान ब्रह्म का पांचवा सिर इसी स्थान पर आकर भोलेनाथ के त्रिशूल से छटका था. तब जाकर भगवान शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी. इसीलिए इस स्थान को ब्रह्म कपाल नाम से जाना जाता है और यहां पर पिंडदान का विशेष महत्व होता है.