चमोली/उत्तरकाशी/श्रीनगर/अल्मोड़ा/सोमेश्वर/बेरीनाग/थरालीःउत्तराखंड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है, यहां पर विराजमान आस्था के केंद्र, संस्कृति, लोक पर्व, तीज-त्योहार और परंपराएं इस पावन धरा को अलग पहचान दिलाते हैं. इन्हीं में एक लोक पर्व है, फूलदेई. जिसे बसंत आगमन की खुशी में मनाया जाता है. बसंत के मौसम में फ्योंली, बुरांश, सरसों, आडू समेत बासिंग के पीले, लाल, सफेद फूलों को देखकर अनायास ही फूलदेई का पर्व जेहन में आ जाता है. नए साल, नए ऋतु और नए फूलों के खिलने का संदेश देने वाला ये त्योहार उत्तराखंड के गांवों, कस्बों में धूमधाम से मनाया जाता है.
चमोली
चमोली में मौसम खराब है. ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फबारी हो रही है, जबकि निचले क्षेत्रों में बारिश जारी है. ऐसे में यहां कड़ाके की ठंड पड़ रही है, लेकिन इसके बावजूद भी फूलदेई के मौके पर बच्चों का उत्साह कम नहीं हुआ. जोशीमठ में छोटे-छोटे बच्चे कड़ाके की ठंड की परवाह किए बिना ही बर्फबारी में फूलदेई का त्योहार मनाते हुए नजर आए. साथ ही दूसरों के घरों पर जाकर उनकी दहलिजों पर फूल डालकर उनकी सुख सम्रद्धि की कामना करते दिखे.
उत्तरकाशी
मां यमुना जी के शीतकालीन प्रवास खरसाली गांव में भारी बर्फबारी के बीच फूलदेई त्योहार को लेकर अलग ही उत्साह देखने को मिला. जहां करीब 1 से 2 फीट बर्फ के बीच ग्रामीण महिलाएं ढोल दमाऊं की थाप पर लोकनृत्य रासो, तांदी पर जमकर थिरके. साथ ही ग्रामीण महिलाओं और बच्चों ने सोमेश्वर देवता को बसंत ऋतु के फूल चढ़ाकर मनोकामनाएं मांगी.
उधर, जिला मुख्यालय में बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर में भक्त मंडली समेत बच्चों ने फूलदेई त्योहार मनाया. बच्चों ने फूल एकत्रित कर बाबा काशी विश्वनाथ को चढ़ाए तो वहीं, भक्त मंडली ने महंत अजय पुरी के नेतृत्व में फूलदेई त्योहार के गीत गाकर एक दूसरे को बसंत ऋतु की शुभकामनाएं दी.
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लोकपर्व फूलदेई
चैत महीने की संक्रांति में जब पहाड़ियों से बर्फ पिघलती है और पहाड़ पर बुरांश के लाल फूलों की चादर ओढ़ने लगते हैं, तब पूरे इलाके की खुशहाली के लिए फूलदेई का त्योहार मनाया जाता है. ये त्योहार आमतौर पर किशोरी लड़कियों और छोटे बच्चों का पर्व है. फूलदेई के दिन छोटे-छोटे बच्चे अपनी बड़ी उम्मीदों के साथ सुबह उठकर फ्यूंली, बुरांश, बासिंग और कचनार के जंगली फूलों इकट्ठा करते हैं. इन फूलों को रिंगाल (बांस जैसी दिखने वाली लकड़ी) की टोकरी में सजाया जाता है.
टोकरी में फूलों-पत्तों के साथ गुड़, चावल और नारियल रखकर बच्चे अपने गांव और मुहल्ले की ओर निकल जाते हैं. इन फूलों और चावलों को बच्चे सबसे पहले अपने देवी देवताओं को अर्पित करते हैं. फिर घरों की देहरी यानी मुख्यद्वार पर डालते हैं और उस घर की खुशहाली की दुआ मांगते हैं. इस दौरान एक लोक गीत भी गाया जाता है. 'फूल देई…छम्मा देई, देणी द्वार..भर भकार, फूल देई.. छम्मा देई...'
इस दौरान बच्चे गांव के हर दरवाजे का पूजन करते हैं और उपहार पाते हैं. यह पर्व प्रकृति और इंसानों के बीच मधुर संबंध को दर्शाता है. जहां प्रकृति बिना कुछ कहे इंसान को अनेक उपहारों से नवाज देती है और बदले में प्रकृति का धन्यवाद करते हुए रंग बिरंगी फूलों को देहरी में सजाकर किया जाता है.
श्रीनगर