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चमोली: इस सीमांत गांव को नसीब नहीं एक अदद सड़क, पलायन को मजबूर ग्रामीण

भारत को आजाद हुए 73 साल बीत चुके हैं, लेकिन उत्तराखंड का सीमांत गांव भलगांव सूकी में आज तक सड़क नहीं पहुंची है. वहीं, विकास के अभाव में गांव के लोग पलायन करने को मजबूर हैं. आपको बता दे कि यह गांव उत्तराखंड के चमोली जिले के भारत चीन सीमा पर बसा हुआ है.

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सीमांत गांव भलगांव सूकी

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Published : Mar 14, 2020, 11:26 PM IST

चमोली: जिले के सीमान्त विकासखंड जोशीमठ स्थित ग्राम पंचायत भलगांव सूकी आज भी सड़क मार्ग से महरूम है. ग्रामीणों को अभी भी 5 किलोमीटर का पैदल सफर तय करने के बाद सड़क तक पहुंचना पड़ता है. ऐसे में यंहा के लोगों को अपनी रोजमर्रा की जरुरतों के सामान के लिए खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. सरकारी तंत्र से कई बार सड़क निर्माण की गुहार लगा चुके ग्रामीणों ने अब गांव से पलायन करने का मन बना चुके हैं.

सीमांत गांव भलगांव सूकी.

नीती मलारी घाटी में स्थित भलगांव सूकी में भोटिया जनजाति के लोग पूरे 12 माह गांव में निवास करते है. यहां के ग्रामीण गांव तक सड़क न होने के कारण पैदल चट्टानों और पथरीले रास्तो से आवाजाही करते है. बता दें कि भलगांव सूकी के लिए मोटर मार्ग की स्वीकृति वर्ष 1992 में हुई थी. उस दौरान बदरीकेदार सीट से केदार सिंह फोनिया विधायक थे. सड़क स्वीकृत होने के बाद लोक निर्माण विभाग गोपेश्वर द्वारा 4 बार मोटर मार्ग की सर्वे करवाई गई, लेकिन आज तक भी सड़क का निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया.

ग्रामीणों का कहना है कि बीते वर्ष 2015 से लगातार ज्ञापन देने के बाद भी आज तक ग्रामीण सड़क की मांग को लेकर दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं.कई बार शासन प्रशासन को लिखित व मौखिक रूप से ज्ञापन देने और मुख्यमंत्री को पत्र देने के बावजूद भी आज भी स्थिति जस की तस बनी हुई है. सड़क निर्माण सम्बंधित फाइल दफ्तरों की अलमारियों में धूल फांक रही है.

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बदहाली का आलम यह है कि सूकी भलगांव में अगर कोई ग्रामीण बीमार पड़ जाता है तो, उसे पालकी और खच्चर के सहारे या 5 किलोमीटर का पैदल सफर जोखिम भरे रास्ते से तय कर मोटरमार्ग तक ग्रामीणों द्वारा पहुंचाया जाता है. यही नहीं गांव में न तो स्वास्थ्य सुविधा है और न ही डिजिटल युग मे दूरसंचार की व्यवस्था है. जिस कारण गांव के कई लोग पलायन होने के लिए मजबूर हैं.

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