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आजादी के दशकों बाद इन गांवों में बजी मोबाइल की घंटी, ग्रामीणों के खिले चेहरे - first time after independence many villages in Chamoli district have ring Mobile bell

आजादी के बाद उत्तराखंड के सीमांत जिले चमोली के कई गांवों में पहली बार मोबाइल की घंटी बजी तो ग्रामीणों के चेहरे पर खुशी तैर गई. जिला मुख्यालय गोपेश्वर से करीब 50 किलोमीटर दूरी पर बसे जेलम, लांग, तमक, कागा, गरपक, लाता जैसे दर्जनों गांवों में नेटवर्क का सुविधा होने से अब मुख्यधारा से जुड़ गए हैं.

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आजादी के दशकों बाद चमोली के इन गावों में बजी मोबाइल की घंटी

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Published : Nov 29, 2020, 8:12 PM IST

Updated : Nov 29, 2020, 11:13 PM IST

देहरादून:आज मोबाइल फोन हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है. ये हमें दोस्तों, रिश्तेदारों के साथ ही देश-दुनिया से जोड़े रखता है. संचार सुविधाओं और मोबाइल फोन ने दैनिक जीवन की गतिविधियों के लिए हमारे जीवन को बहुत आसान बना दिया है. मगर जरा उन गांवों और उन क्षेत्रों के बारे में सोचिए जहां आजादी के 72 सालों बाद फोन की घंटी बजी हो. आज ईटीवी भारत आपको एक ऐसे ही गांवों के बारे में बताने जा रहा है जहां के लोग आजतक मोबाइल और नेटवर्क से महरूम थे. चमोली जिले के तमाम ऐसे गांव हैं जो जिला मुख्यालय से 80 से 90 किलोमीटर दूर हैं. इसी महीने चमोली जिले के लगभग आधा दर्जन से ज्यादा गांवों में फोन की घंटी सुनाई दी है. जिससे यहां के रहवासी काफी खुश हैं.

आजादी के दशकों बाद इन गांवों में बजी मोबाइल की घंटी.

नेटवर्क के बाद मुख्यधारा से जुड़े दर्जनों गांव

आजादी के बाद उत्तराखंड के सीमांत जिले चमोली के इन गांवों में जब पहली बार मोबाइल की घंटी बजी तो ग्रामीणों के चेहरे पर खुशी तैर सी गई. जिला मुख्यालय गोपेश्वर से करीब 50 किलोमीटर दूरी पर बसे जेलम, लांग, तमक, कागा, गरपक, लाता जैसे दर्जनों गांव अब मुख्यधारा से जुड़ गए हैं. गांव में नेटवर्क की सुविधा मिलने पर एक मां ने व्हाट्सएप के जरिए सरहद पर तैनात अपने बेटे से घर के आंगन से ही बात की. एक छात्र ने अपने गांव में बैठकर ही ऑनलाइन क्लास अटेंड की. आजादी के दशकों के बाद गांव को दी गई इस सुविधा से यहीं नहीं आस-पास के गावों में उत्सव का माहौल है.

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सालों से झेल रहे थे उपेक्षा का दंश

इससे पहले संचार और सड़क सेवा न होने चलते भारत-चीन सीमा से लगे ये गांव सदियों से उपेक्षा का दंश झेल रहे थे. आलम ये था कि इन गांवों के बाशिंदों छोटी-मोटी जरूरतों के लिए भी 50 से 60 किलोमीटर पैदल जिला मुख्यालय के लिए दौड़ लगानी पड़ती थी.

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टावर लगने पर की गई विधिवत पूजा-अर्चना

ऐसे में डिजिटल इंडिया का नारा इन सीमांत गांवों के लिए बेमानी ही था. लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. उद्यमी मुकेश अंबानी की जियो मोबाइल कंपनी ने इन गांवों को संचार सुविधा से जोड़ दिया है. हाल ही में कंपनी ने यहां मोबाइल टावर स्थापित किया है. ग्रामीणों की खुशी का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उन्होंने टावर लगने पर इसकी विधिवत पूजा अर्चना की. चमोली जिले के जेलम, लांग, तमक, कागा, गरपक, लाता, रेणी, सुराइथोटा, भल्लागांव, फाक्ति गांव संचार सेवा से जुड़ने के बाद यहां के लोगों को आधार कार्ड के लिए शहर की दौड़ नहीं लगानी होगी.

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बच्चों को मिलेगा ऑनलाइन क्लासेस का फायदा

मोबाइल नेटवर्क की वजह से अब बच्चे ऑनलाइन क्लासेस ले सकेंगे. साथ ही नेटवर्क के कारण देश-दुनिया से यहां के लोग आसानी से जुड़ सकेंगे. प्रदेश में बच्चों की पढ़ाई में कोई खलल न पड़े इसके लिए उत्तराखंड सरकार 10वीं और 12वीं के छात्रों के लिए ऑनलाइन क्लासेस शुरू करने जा रही है. ऐसे में इन गांवों में नेटवर्क सुविधा होने के बाद इससे छात्रों को खासा लाभ मिलेगा.

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इसी महीन गांवों को दी गई टावर की सौगात

गांव के प्रधान लक्ष्मण बुटोला कहते हैं कि लंबे समय से वे प्रयास कर रहे थे कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत या स्थानीय विधायक गांव में मोबाइल नेटवर्क की सुविधा दें. मगर किन्हीं कारणों से यह संभव नहीं हो पा रहा था. जिसके बाद उन्होंने देहरादून जाकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और विधायक को एक पत्र सौंपा. जिसके बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भारत-चीन सीमा पर बसे इन गांवों के लिए मोबाइल नेटवर्क लगाने के लिए मुकेश अंबानी से बात की. जिसके बाद इसी महीन इन गांवों को टावर की सौगात मिली है.

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बहरहाल, गांव में नेटवर्क सुविधा उपलब्ध होने के बाद ग्रामीण बेहद खुश हैं. वहीं, ग्राम प्रधान लक्ष्मण बुटोला इसके लिए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और जिओ मोबाइल के मालिक मुकेश अंबानी का आभार व्यक्त कर रहे हैं. जिन्होंने इन सीमांत गांवों की पीड़ा को जाना, जिससे आजादी के सात दशक बाद इन गांवों में संचार सुविधा उपलब्ध हो पाई. बहरहाल, उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां आपदा के लिहाज से बेहद संवेदनशील है. ऐसे में संचार सेवा उपलब्ध न होने के चलते अगर इन गांवों में कोई घटना घटित होती थी तो उसका पता काफी समय बाद चलता था. इस लिहाज से इन गांवों में नेटवर्क सुविधा उपलब्ध होने से राहत और बचाव के कार्यों में भी काफी तेजी आएगी.

Last Updated : Nov 29, 2020, 11:13 PM IST

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