थराली:गढ़वाल और कुमाऊं के बीच बसे नंद केसरी गांव में मां नंदा का पौराणिक मंदिर हैं. यहां की बोली एवं रीति-रिवाज भी कुमाऊं से मिलती हैं. मां नंदा देवी के जागरों में वर्णित है कि मां पार्वती ने अपने पलकों से केसरी देवी काे उत्पन्न किया था. जिस कारण उनका नाम नंद केसरी पड़ा. इसी स्थान पर नंदा देवी की ऐतिहासिक राजजात यात्रा के समय गढ़वाल और कुमाऊं की देव डोलियों का मिलन होता है.
मां नंदा देवी के पौराणिक मंदिर की प्रमुख विशेषता है कि इस मंदिर के पुजारी ठाकुर होते हैं. मान्यता है कि पिंडारी ग्लेशियर से निकलने वाली पिंडर नदी के किनारे एक दैत्य से छिपकर मां नंदा यानी मां पार्वती नदी किनारे गुफा में छिप गई थी, उस गुफा के मुंह पर रखा गया पत्थर दैत्य ने अपने सींग से फाड़ दिया था, यह पत्थर आज भी वहीं मौजूद है.
इस मंदिर में कई पौराणिक मूर्तियां हैं, जिनमें भगवती नंदा की मूर्ति, शंकराचार्य काल, पांडवों के समय की मां काली की मूर्ति विराजमान है. लाटू देवता लिंग रूप में स्थित हैं. बासुदेव जी की आधी मूर्ति है, अष्टभैरव लिंग स्वरूप में हैं. यहां एक विचित्र संयोग है कि मंदिर परिसर में एक विशाल वृक्ष है, जिसकी उम्र का सही अनुमान आज तक नहीं लग पाया है. लेकिन पांच प्रकार के वृक्ष जिसमें सुरई, पैयां, पिलुखा, आकाश बेल और आम हैं. ये पांचों वृक्ष एकसाथ उगे हैं यानी इनकी एक ही जड़ दिखाई देती है. हालांकि, साल 1972 में बज्रपात की वजह के वृक्ष के कुछ हिस्से को नुकसान पहुंचा था. पेड़ के चारों और चबूतरा बना है. माना जाता है कि यह मां नंदा का निवास स्थल है.