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पौष माह के लिए बंद हुए भगवान आदिबदरी नाथ के कपाट, मकर संक्रांति पर खुलेगा धाम

पंच बदरियों में से एक भगवान आदिबदरी मंदिर के कपाट पौष माह के लिए विधि विधान के साथ बंद कर दिए गए हैं. मंदिर के पुजारी चक्रधर थपलियाल ने बताया कि 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर्व पर आदिबदरी धाम के कपाट श्रदालुओं के लिए खोल दिये जाएंगे.

Lord Adibadri temple
आदि बदरी मंदिर

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Published : Dec 16, 2021, 9:24 PM IST

चमोली: पंच बदरियों में से एक भगवान आदिबदरी मंदिर के कपाट पौष माह के लिए विधि विधान के साथ बंद कर दिए गए हैं. मंदिर के पुजारी चक्रधर थपलियाल ने बताया कि 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर्व पर आदिबदरी धाम के कपाट श्रदालुओं के लिए खोल दिये जाएंगे.

कपाट बंद होने के मौके पर प्रतिवर्ष ग्रामीणों के द्वारा यहां मेले का आयोजन किया जाता है. यहां आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बच्चों ने अपनी प्रस्तुति दी. आदिबदरी धाम के कपाट बंद होने के अवसर पर भाजपा के केंद्रीय मीडिया के सदस्य सतीश लखेड़ा ने कार्यक्रम में शिरकत कर भगवान बदरी विशाल का आशीर्वाद लिया. इस मौके पर सतीश लखेड़ा के माध्यम से राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने फोन पर आदि बदरी पर्यटन मेला समिति को दो लाख रुपये देने की घोषणा की.

आदी बदरी मंदिर का इतिहास:भगवान आदि बदरी का मंदिर हल्द्वानी मार्ग पर कर्णप्रयाग से 17 किलोमीटर दूर और चांदपुर गढ़ी से 3 किलोमीटर दूर है. इसका निकटवर्ती तीर्थ है कर्णप्रयाग. चांदपुर गढ़ी से 3 किलोमीटर आगे जाने पर आपके सम्मुख अचानक प्राचीन मंदिर का एक समूह आता है, जो सड़क की दाएं है.

स्थानीय लोगों के मुताबिक इन मंदिरों का निर्माण स्वर्गारोहिणी पथ पर उत्तराखंड आये पांडवों ने किया था. यह भी कहा जाता है कि इसका निर्माण 8वीं सदी में शंकराचार्य ने किया था. भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षणानुसार के अनुसार इनका निर्माण 8वीं से 11वीं सदी के बीच कत्यूरी राजाओं द्वारा किया गया. कुछ वर्षों से इन मंदिरों की देखभाल भारतीय पुरातात्विक के सर्वेक्षणाधीन है.

मूलरूप से इस समूह में 16 मंदिर थे, जिनमें 14 अभी बचे हैं. प्रमुख मंदिर भगवान विष्णु का है, जिसकी पहचान इसका बड़ा आकार और एक ऊंचे मंच पर निर्मित होना है. एक सुंदर एक मीटर ऊंचे काली शालीग्राम की प्रतिमा भगवान की है, जो अपने चतुर्भुज रूप में खड़े हैं और गर्भगृह के अंदर स्थित हैं. विष्णु मंदिर की देखभाल चक्रदत्त थपलियाल करते हैं, जो पास ही थापली गांव के रहने वाले हैं. थापली गांव के ब्राह्मण पिछले करीब सात सौ वर्षों से इस मंदिर के पुजारी हैं.

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