चमोली:यूं तो उत्तराखंड अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिये विश्वभर में प्रसिद्ध है. यहां पर्यटन स्थलों के साथ-साथ कई ऐसे स्थान हैं, जहां पहुंचकर मनुष्य अपने दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर हो जाए. 'नर कंकालों का संसार'सुनने में अजीब लगे, लेकिन यही सच है. उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित झील जिसको रूपकुंड के नाम से जाना जाता है.
झील के किनारे पांच सौ से अधिक मानव कंकाल बिखरे पड़े हैं, जिसके कारण यह झील विश्वभर में प्रसिद्ध है. यह स्थान पूरी तरह वीरान है और साल के पूरे आठ माह तक पूरी तरह बर्फ से ढका रहता है. समुद्र तल से लगभग हिमालयी भाग में स्थित नरकंकालों से पटी यह झील 5029 मीटर यानी (16,499 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है.
कहा जाता है कि यहां बिखरे इन नरकंकालों को साल 1942 में पहली बार रेंजर एचके माधवल ने खोजा था. साल 1960 के दशक में इन हड्डियों के नमूनों से लिए गये कार्बन डेटिंग द्वारा अस्पष्ट रूप से यह पता चला था कि रूपकुंड में मानव कंकाल 12वीं सदी से 15वीं सदी के बीच के हैं.
वैज्ञानिकों के अलग-अलग मत
साल 2004 में भारतीय और यूरोपीय वैज्ञानिकों के एक दल ने रूपकुंड का दौरा किया था ताकि रूपकुंड में बिखरे नरकंकालों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त की जा सके. यहां पहुंचकर टीम को नरकंकालों से जुड़े अहम सुराग हाथ लगे. जिनमें गहने, खोपड़ी, हड्डियां और शरीर के संरक्षित ऊतक शामिल थे.
लाशों के डीएनए परीक्षण से यह पता चला कि वहां लोगों के कई समूह थे, जिसमें छोटे कद और लंबे कद के लोगों का एक समूह था. हालांकि, इनकी संख्या तो सुनिश्चित नहीं हो पाई लेकिन, 500 से अधिक अवशेष यहां मिले. वैज्ञानिकों का मानना है कि यहां करीब 600 से अधिक लोग मारे गए होंगे.
वहीं, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी रेडियो कार्बन प्रवर्धक यूनिट में हड्डियों की रेडियो कार्बन डेटिंग के अनुसार, इनकी अवधि 850 ई. में निर्धारित की गयी है.