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दरक रहा जोशीमठ, धंस रहे घर, खतरे में ऐतिहासिक शहर का अस्तित्व

उत्तराखंड का खूबसूरत और ऐतिहासिक शहर जोशीमठ खतरे की जद (Historical city Joshimath in danger) में है. पहाड़ी पर बसा जोशीमठ शहर धीरे धीरे करके नीचे जमीन में धंसता (joshimath city collapsing) जा रहा है. यहां बने ज्यादातर मकानों में दरारें (Cracks in houses due to landslide in Joshimath) पड़ने लगी हैं. कई घरों के आंगन जमीन के अंदर धंसने शुरू हो गए हैं. शहर की सड़कें जगह जगह पर धंस गई हैं. लोग टूटे मकानों में जान खतरे में डालकर रहने को मजबूर हैं.

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खतरे में ऐतिहासिक शहर का असतित्व

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Published : Dec 10, 2022, 1:51 PM IST

Updated : Dec 10, 2022, 6:52 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में भारत-चीन सीमा से लगता चमोली जिला सामरिक, व्यापारिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. यहां पर भारत-चीन सीमा पर तैनात सैनिकों के धार्मिक और आर्थिक गतिविधियों का सबसे बड़ा केंद्र बदरीनाथ धाम भी है. 2011 की गणना के अनुसार यहां की जनसंख्या लगभग उस 4 लाख 55 हजार थी, जो अब बढ़कर दोगुनी हो गई है. बढ़ती जनसंख्या, बेतरतीब निर्माणकार्य, पर्यावरणीय असंतुलन और बिना प्लानिंग काम के कारण अब चमोली जिले के जोशीमठ शहर पर खतरा मंडरा रहा है. ये खतरा इतना बड़ा है कि अब तक इसके कारण कई परिवार अपने घर छोड़कर यहां से सुरक्षित स्थानों पर निकल गये हैं. क्या है ये खतरा, क्यों इस खतरे को लेकर लोग इतने डरे हुए हैं. इसे लेकर जानकारों का क्या मानना है, आइये आपको बताते हैं.

खतरे में ऐतिहासिक शहर का अस्तित्व

उत्तराखंड के चमोली जिले के इसी इलाके में बीते साल फरवरी में आई बाढ़ और ग्लेशियर टूटने की घटना के बाद घरों में दरार आने की संख्या में इजाफा हुआ है. ग्लेशियर टूटने से उस वक्त यहां 180 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. इसी ग्लेशियर के टूटने के बाद जोशीमठ के नैनी गांव से लेकर सुनील गांव तक कई गांवों में यह दरार अचानक से दिखने लगी थी. जानकार मानते हैं कि उत्तराखंड के जोशीमठ में हो रहे अत्यधिक निर्माण और बन रहे बांधों की वजह से भी गांव में यह दरारें दिख रही हैं.
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रुड़की आईआईटी और देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक और इंजीनियर भी जोशीमठ के गांवों में जाकर कई बार रिसर्च कर चुके हैं. लगातार वैज्ञानिक इस पूरी बेल्ट पर अध्ययन कर रहे हैं. भूकंप के लिहाज से भी जोशीमठ जोन 5 में आता है. साल 2011 के आंकड़े के मुताबिक 4000 घरों में लगभग 17,000 लोग यहां निवास करते थे, जबकि इस क्षेत्र में मकानों के साथ-साथ बांध, ट्रैफिक और दूसरी परियोजनाओं का विस्तार हुआ है. इतना ही नहीं उत्तराखंड के पहाड़ अभी नए हैं, लिहाजा अत्यधिक बारिश होने की वजह से भी लगातार मिट्टी और भूस्खलन हो रहा है. जिसके कारण ये क्षेत्र संवेदनशील बना हुआ है. साल 2013 में आई आपदा के दौरान भी जोशीमठ में 17 और 19 अक्टूबर के बीच 190 मिलीमीटर बरसात रिकॉर्ड की गई थी, जो सामान्य से बहुत ज्यादा थी. उसके बाद उत्तराखंड में लगातार बारिश का सिलसिला हर मानसून में जारी रहा. जिसके कारण भूस्खलन की घटनाएं बढ़ी.
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क्या कहते हैं जिम्मेदार अधिकारी:उत्तराखंड शासन में तैनात आपदा सचिव रंजीत कुमार सिन्हा कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में ही इस तरह के हालात बन रहे हैं. हिमालय के जितने भी राज्य हैं, उनके कई क्षेत्र इस तरह की समस्या से जूझ रहे हैं. हमारे यहां यह घटनाएं बीते कुछ सालों से ही रिकॉर्ड की गई हैं. सिक्कम, हिमाचल के कई गांवों को भी इस तरह की समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है. हमारी राज्य सरकार और केंद्र सरकार इसे लेकर बेहद गंभीर हैं. हम लगातार वैज्ञानिकों से इसे लेकर बातचीत कर क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने में जुटे हुए हैं. यहां से जो लोग पलायन कर रहे हैं या फिर उनके घरों में दरारें आ रही हैं, उन्हें सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट करने की कोशिशें जारी हैं. इसके लिए शासन ने जिला स्तर पर अधिकारियों को जमीन तलाशने के लिए भी कहा है. जिससे समय रहते इन सभी लोगों को वहां से हटा लिया जाए.
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क्या कहती है मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट: बता दें साल 1976 में जब इस पूरे इलाके में भूस्खलन की पहली घटना रिकॉर्ड हुई थी, तब उत्तर प्रदेश सरकार ने मिश्रा कमेटी का गठन किया था. इस कमेटी ने भी उस वक्त इस शहर में पहाड़ों में दरारें आने की बात को माना था. 1976 की रिपोर्ट के मुताबिक जोशीमठ और आसपास के कई जिलों में प्राकृतिक जंगल लगातार काटे जा रहे थे. सड़कों का निर्माण हो रहा था. अब भी पेड़ कटने की वजह से भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं. एक समय था जब जोशीमठ के आसपास के पहाड़ों पर हरे भरे पेड़ दिखाई देते थे. अब यह पहाड़ पूरी तरह से पथरीले दिखाई देते हैं. इतना ही नहीं आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए विभागों ने इस पूरे क्षेत्र में कई तरह के निर्माण किए हैं. बड़े-बड़े वाहनों के पहाड़ों पर जाने से भी समस्याएं पैदा हुई हैं. इतना ही नहीं प्रोजेक्ट के लिए पहाड़ों पर विस्फोट करना और अच्छा ड्रेनेज सिस्टम न होना भूस्खलन की मुख्य वजह है.

क्या कहती है मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट

क्या कहते हैं स्थानीय अधिकारी:मामले में जोशीमठ की उप जिलाधिकारी कुमकुम जोशी (SDM Joshimath Kumkum Joshi) ने बताया कि भूस्खलन से जोशीमठ के कई मकानों में दरारें पड़ी हुई हैं. कई मकानों का उप जिलाधिकारी ने खुद निरीक्षण किया है. नगर पालिका को भी जोशीमठ के सभी घरों में जाकर परिवार के सदस्यों के नाम तथा मकान संख्या की रिपोर्ट तहसील को उपलब्ध कराने के निर्देश दिये गये हैं. स्थानीय निवासी उत्तरा पांडे, चंद्र बल्लभ पांडे का कहना है कि कुछ दिन पहले ही उन्होंने 3 लाख खर्च कर मकान की मरमत करवाई थी. अचानक भवनों पर बड़ी बड़ी दरारें आ गईं हैं. जिसके कारण इन मकानों में रहना खतरे से खाली नहीं है.
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जोशीमठ शहर के भू-धंसाव की 3 बड़ी वजह: शोधकर्ताओं की जांच में जोशीमठ शहर में लगातार हो रहे भू धंसाव के पीछे 3 बड़े कारण नजर आ रहे हैं. पहला सबसे बड़ा कारण है, अलकनंदा द्वारा जोशीमठ शहर के नीचे पहाड़ की तलहटी पर लगातार हो रहा भू कटाव, जिसकी वजह से धीरे-धीरे पहाड़ नीचे की ओर खिसक रहा है. दूसरी वजह शहर में एक व्यवस्थित ड्रेनेज सिस्टम ना होना भू-धंसाव का बड़ा कारण माना जा रहा है. आपदा सचिव रंजीत कुमार सिन्हा के मुताबिक एक व्यवस्थित ड्रेनेज सिस्टम ना होने की वजह से सीवरेज के साथ-साथ बरसात का पूरा पानी जमीन में समा रहा है. इसकी वजह से लगातार जमीन के अंदर सिंक होल बन रहे हैं. भू-धंसाव का तीसरा कारण शहर में लगातार हो रहा अंधाधुंध अव्यवस्थित निर्माण भी जोशीमठ शहर में आपदा का बड़ा पहलू है.

जोशीमठ में पिछले एक साल से बढ़ी परेशानी: जोशीमठ चमोली जिले का ऐतिहासिक (Joshimath historical city of Uttarakhand) शहर है. जोशीमठ में पिछले एक साल से भू धंसाव (Landslide in Joshimath) हो रहा है. जिसके चलते जोशीमठ नगर पर खतरा मंडरा रहा है. जोशीमठ में भू धंसाव के कारण जगह जगह मकानों में बड़ी बड़ी दरारें पड़ने लगी हैं. जिसके कारण लोगों की मुश्किलें बढ़ गई हैं. कई घर रहने लायक ही नहीं बचे हैं. कई नए घरों को लोगों ने ताला लगाने के बाद छोड़ दिया है. यहां के रहवासी जोशीमठ छोड़कर सुरक्षित स्थानों के लिए निकल गये हैं. वहीं, अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जो दरार से क्षतिग्रस्त घरों के अंदर खौफ के साए में जीने को मजबूर हैं.

खास है जोशीमठ रोड
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क्यों खास है जोशीमठ:जोशीमठ का उत्तराखंड के पर्यटन और तीर्थाटन में महत्वपूर्ण स्थान है. यह अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए व प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भी जाना जाता है. इतिहासकारों ने जोशीमठ को 7वीं से 10वीं सदी तक कत्यूरी राजवंश की राजधानी के बतौर स्वीकार किया है. आठवीं सदी में शंकराचार्य के यहां आगमन ने इसे सांस्कृतिक-धार्मिक तौर पर विशिष्टता प्रदान की. हिंदुओं की चार पीठों में से एक ज्योतिष्पीठ और चार प्रमुख धामों में प्रसिद्ध धाम बदरीनाथ धाम का भी ये पड़ाव है. सिखों का पवित्र धाम हेमकुंड इसके निकट है, और उसी के निकट प्रसिद्ध फूलों की घाटी ने इस नगर को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन क्षेत्र के तौर पर स्थापित किया है. औली, गोरसों, नंदा देवी, क्वारीपास और बहुत से अन्य बेहतरीन ट्रैक रूट्स ने जोशीमठ को पर्यटन तीर्थाटन के अनुपम केंद्र के बतौर पहचान दी है.


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सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है जोशीमठ:चीन सीमा से लगे बॉर्डर को जाने वाला रास्ता जोशीमठ से होकर जाता है. जोशीमठ में भारतीय सेना की एक ब्रिगेड रहती है. यहां सेना की बड़ी टुकड़ी रहती है. यहां आईटीबीपी (ITBP) का भी एक कैम्प है. जोशीमठ बदरीनाथ धाम जाने का पहला पड़ाव भी है. बदरीनाथ जाने से पहले जोशीमठ ही बीच में आता है. बदरीनाथ धाम के कपाट जब बंद होते हैं तो शीतकालीन पूजा जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में होती है.

सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है जोशीमठ

बता दें इस पूरे इलाके का अध्ययन रुड़की आईआईटी और वाडिआ इंस्टीट्यूट कर रहे हैं. वैज्ञानिकों की टीम लगातार इस इलाके का निरीक्षण कर रही है. अध्ययन पूरा होने के बाद जल्द राज्य और केंद्र सरकार को इस क्षेत्र की रिपोर्ट सौंपी जाएगी. फिलहाल इस पूरे क्षेत्र में जिस तरह के हालात हैं वो भयानक हैं. राज्य सरकार को चाहिए कि जल्द से जल्द इस ऐतिहासिक शहर को बचाने के लिए प्रभावी कदम उठाये जायें.

Last Updated : Dec 10, 2022, 6:52 PM IST

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