देहरादून: उत्तराखंड में भारत-चीन सीमा से लगता चमोली जिला सामरिक, व्यापारिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. यहां पर भारत-चीन सीमा पर तैनात सैनिकों के धार्मिक और आर्थिक गतिविधियों का सबसे बड़ा केंद्र बदरीनाथ धाम भी है. 2011 की गणना के अनुसार यहां की जनसंख्या लगभग उस 4 लाख 55 हजार थी, जो अब बढ़कर दोगुनी हो गई है. बढ़ती जनसंख्या, बेतरतीब निर्माणकार्य, पर्यावरणीय असंतुलन और बिना प्लानिंग काम के कारण अब चमोली जिले के जोशीमठ शहर पर खतरा मंडरा रहा है. ये खतरा इतना बड़ा है कि अब तक इसके कारण कई परिवार अपने घर छोड़कर यहां से सुरक्षित स्थानों पर निकल गये हैं. क्या है ये खतरा, क्यों इस खतरे को लेकर लोग इतने डरे हुए हैं. इसे लेकर जानकारों का क्या मानना है, आइये आपको बताते हैं.
उत्तराखंड के चमोली जिले के इसी इलाके में बीते साल फरवरी में आई बाढ़ और ग्लेशियर टूटने की घटना के बाद घरों में दरार आने की संख्या में इजाफा हुआ है. ग्लेशियर टूटने से उस वक्त यहां 180 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. इसी ग्लेशियर के टूटने के बाद जोशीमठ के नैनी गांव से लेकर सुनील गांव तक कई गांवों में यह दरार अचानक से दिखने लगी थी. जानकार मानते हैं कि उत्तराखंड के जोशीमठ में हो रहे अत्यधिक निर्माण और बन रहे बांधों की वजह से भी गांव में यह दरारें दिख रही हैं.
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रुड़की आईआईटी और देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक और इंजीनियर भी जोशीमठ के गांवों में जाकर कई बार रिसर्च कर चुके हैं. लगातार वैज्ञानिक इस पूरी बेल्ट पर अध्ययन कर रहे हैं. भूकंप के लिहाज से भी जोशीमठ जोन 5 में आता है. साल 2011 के आंकड़े के मुताबिक 4000 घरों में लगभग 17,000 लोग यहां निवास करते थे, जबकि इस क्षेत्र में मकानों के साथ-साथ बांध, ट्रैफिक और दूसरी परियोजनाओं का विस्तार हुआ है. इतना ही नहीं उत्तराखंड के पहाड़ अभी नए हैं, लिहाजा अत्यधिक बारिश होने की वजह से भी लगातार मिट्टी और भूस्खलन हो रहा है. जिसके कारण ये क्षेत्र संवेदनशील बना हुआ है. साल 2013 में आई आपदा के दौरान भी जोशीमठ में 17 और 19 अक्टूबर के बीच 190 मिलीमीटर बरसात रिकॉर्ड की गई थी, जो सामान्य से बहुत ज्यादा थी. उसके बाद उत्तराखंड में लगातार बारिश का सिलसिला हर मानसून में जारी रहा. जिसके कारण भूस्खलन की घटनाएं बढ़ी.
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क्या कहते हैं जिम्मेदार अधिकारी:उत्तराखंड शासन में तैनात आपदा सचिव रंजीत कुमार सिन्हा कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में ही इस तरह के हालात बन रहे हैं. हिमालय के जितने भी राज्य हैं, उनके कई क्षेत्र इस तरह की समस्या से जूझ रहे हैं. हमारे यहां यह घटनाएं बीते कुछ सालों से ही रिकॉर्ड की गई हैं. सिक्कम, हिमाचल के कई गांवों को भी इस तरह की समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है. हमारी राज्य सरकार और केंद्र सरकार इसे लेकर बेहद गंभीर हैं. हम लगातार वैज्ञानिकों से इसे लेकर बातचीत कर क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने में जुटे हुए हैं. यहां से जो लोग पलायन कर रहे हैं या फिर उनके घरों में दरारें आ रही हैं, उन्हें सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट करने की कोशिशें जारी हैं. इसके लिए शासन ने जिला स्तर पर अधिकारियों को जमीन तलाशने के लिए भी कहा है. जिससे समय रहते इन सभी लोगों को वहां से हटा लिया जाए.
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क्या कहती है मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट: बता दें साल 1976 में जब इस पूरे इलाके में भूस्खलन की पहली घटना रिकॉर्ड हुई थी, तब उत्तर प्रदेश सरकार ने मिश्रा कमेटी का गठन किया था. इस कमेटी ने भी उस वक्त इस शहर में पहाड़ों में दरारें आने की बात को माना था. 1976 की रिपोर्ट के मुताबिक जोशीमठ और आसपास के कई जिलों में प्राकृतिक जंगल लगातार काटे जा रहे थे. सड़कों का निर्माण हो रहा था. अब भी पेड़ कटने की वजह से भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं. एक समय था जब जोशीमठ के आसपास के पहाड़ों पर हरे भरे पेड़ दिखाई देते थे. अब यह पहाड़ पूरी तरह से पथरीले दिखाई देते हैं. इतना ही नहीं आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए विभागों ने इस पूरे क्षेत्र में कई तरह के निर्माण किए हैं. बड़े-बड़े वाहनों के पहाड़ों पर जाने से भी समस्याएं पैदा हुई हैं. इतना ही नहीं प्रोजेक्ट के लिए पहाड़ों पर विस्फोट करना और अच्छा ड्रेनेज सिस्टम न होना भूस्खलन की मुख्य वजह है.
क्या कहते हैं स्थानीय अधिकारी:मामले में जोशीमठ की उप जिलाधिकारी कुमकुम जोशी (SDM Joshimath Kumkum Joshi) ने बताया कि भूस्खलन से जोशीमठ के कई मकानों में दरारें पड़ी हुई हैं. कई मकानों का उप जिलाधिकारी ने खुद निरीक्षण किया है. नगर पालिका को भी जोशीमठ के सभी घरों में जाकर परिवार के सदस्यों के नाम तथा मकान संख्या की रिपोर्ट तहसील को उपलब्ध कराने के निर्देश दिये गये हैं. स्थानीय निवासी उत्तरा पांडे, चंद्र बल्लभ पांडे का कहना है कि कुछ दिन पहले ही उन्होंने 3 लाख खर्च कर मकान की मरमत करवाई थी. अचानक भवनों पर बड़ी बड़ी दरारें आ गईं हैं. जिसके कारण इन मकानों में रहना खतरे से खाली नहीं है.
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