थराली: मां भारती की आन-बान और शान के लिए अपने प्राणों की आहूति देने वाले शहीद सतीश के 82 वर्षीय बुजुर्ग पिता बेटे को सम्मान दिलाने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर हैं. 20 सालों बाद भी शासन-प्रशासन शहीद को उसका वाजिब सम्मान नहीं दे पाई है. जिससे सरकार और उसके नुमाइंदों की संजीदगी का अंदाजा लगाया जा सकता है.
सीमांत जनपद चमोली के विकासखंड नारायणबगड़ के दूरस्थ क्षेत्र सिमली गांव के रहने वाले महेशानंद सती सालों से बेटे के सम्मान के लिए दर-दर भटक रहे हैं. बता दें कारगिल युद्ध के दौरान 30 जून 1999 को 23 वर्ष की आयु में देश की रक्षा करते हुए उनका बेटा सतीश शहीद हो गया था. सतीश की शहादत के बाद सरकार ने शहीद के गांव को जोड़ने वाली नारायणबगड़-परखाल सड़क और प्राथमिक विद्यालय का नाम शहीद के नाम पर रखने की घोषणा की थी, साथ ही शहीद के नाम का स्मारक बनाने की भी घोषणा की गई थी.
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मगर बीतते समय के साथ शायद राज्य सरकारें शहीद के सम्मान को भूल चुकी हैं. यही कारण है कि सीएम की घोषण के बाद सड़क पर शहीद के नाम का बोर्ड तो लगाया गया, मगर सरकारी दस्तावेजों में अभी तक सड़क का नाम नहीं बदला जा सका है. वहीं शहीद के स्मारक निर्माण के लिये गांव के जखोली-सिमार में शिलान्यास के बाद अब तक कोई निर्माण नहीं हो सका है. शासन-प्रशासन के इस सुस्त रवैये के कारण सतीश के 82 वर्षीय पिता आज भी सरकारी घोषणाओं को जमीन पर उतराने के लिये दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं.
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क्या कहते हैं शहीद के पिता
सतीश के शहीद होने के बाद सरकार की ओर से सड़क और विद्यालय का नाम सतीश के नाम पर रखने और स्मारक निर्माण की बात कही गई थी. मगर शासन- प्रशासन से पत्राचार के बाद भी अभी तक इस मामले में कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है.