चमोली: चारों धामों में सबसे श्रेष्ठ धाम बदरीनाथ के कपाट इन दिनों शीतकाल के लिए बंद हैं. परम्पराओं के अनुसार टिहरी राजदरबार में निर्धारित तिथि 18 मई को भगवान बदरीविशाल के कपाट खोले जाने हैं. कपाट बंदी के दौरान भगवान बदरीविशाल के मंदिर की सुरक्षा का जिम्मा देवताओं और इंसानों के ऊपर होता है. ऐसा इसलिये कह रहे हैं क्योंकि धाम के कपाट बंद होने के बाद यहां मंदिर की सुरक्षा में तैनात पुलिस के जवानों के अलावा किसी भी इन्सान को रुकने की अनुमति नहीं होती है.
अब आपको बताते हैं कि वह कौन से देवता हैं, जब शीतकाल के दौरान मंदिर की सुरक्षा में तैनात जवान रात को सो जाते हैं और वह देवता मंदिर की रखवाली करते हैं. आप सभी ने भगवान बदरीनाथ मंदिर के मंडप में कई मंदिरों के समूह देखे होंगे. जिसमें लक्ष्मी जी, कुबेर जी के साथ साथ घंटाकर्ण महाराज का भी एक मंदिर है. घंटाकर्ण महाराज को बदरीनाथ धाम का क्षेत्रपाल के साथ-साथ कोतवाल भी कहा जाता है. शीतकाल के दौरान देवताओं की तरफ से धाम की सुरक्षा का जिम्मा घंटाकर्ण महाराज के पास होता है.
नाम गुप्त रखने की शर्त पर पिछले वर्षों शीतकाल के दौरान बदरीनाथ मंदिर की ड्यूटी में तैनात पुलिस के जवान ने बताया कि जब वह धाम में गार्ड ड्यूटी पर तैनात थे, तो उस दौरान बदरीनाथ धाम और मंदिर परिसर के आसपास 5 से 6 फिट तक बर्फ जमी हुई थी. रात्रि 2 बजे का समय था. मैं और मेरे साथी मंदिर के पास स्थित गार्ड रूम में सोने की तैयारी कर रहे थे. इतने में गार्ड रूम की छत पर घोड़े की टाप की आवाज सुनाई दी. जिसके बाद हम लोग सहम गए, क्योंकि पहली बार हमारे साथ ऐसा हुआ. ऐसा लगा कि गार्ड रूम वाले भवन की छत पर कोई घुड़सवार चल रहा हो.
कुछ देर बाद वह घुड़सवार मंदिर परिसर के आसपास ही घूमता रहा. क्योंकि घोड़े की टाप की आवाज निरंतर सुनाई दे रही थी. करीब 5 मिनट के बाद मंदिर में दर्शनों के लिए लगने वाली लाइन में बारिश से बचने के लिए ऊपर से बनाई गई रेन शेल्टर के ऊपर से भी तेजी से घोड़े के दौड़ने की आवाज आई और वह आवाज धीरे-धीरे दूर नाग-नागिन जोड़े की तरफ चली गई.
ये भी पढ़िए: बिना श्रद्धालुओं के 18 मई को खुलेंगे बदरीनाथ धाम के कपाट