चमोली:जनपद में विकासखंड घाट स्थित राजबगठी ग्रामसभा के गंगतोली गांव निवासी पुष्कर सिंह दिल्ली में फैशन डिजाइनर की नौकरी करते थे. इस नौकरी को छोड़ पुष्कर अपने गांव के पास ही नंदप्रयाग-घाट रोड़ के पास ही अपनी छोटी सी कपड़े सिलने की फैक्ट्री चलाते हैं. जहां पर इन दिनों वह कंडाली (बिच्छू घास) और भांग के रेशे से बने जैकेट और मफलर बना रहे है. कंडाली और भांग के रेशों से बने कपड़ों की इन दिनों चमोली के स्थानीय बाजार में खासा मांग है. साथ ही प्रदेश के बाजारों में कंडाली और भांग से बने कपड़ों की मांग बढ़ रही है.
गौर हो कि कुछ दिनों पहले सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने कैबिनेट मंत्रियों के साथ कंडाली के रेशे से बनी हुई जैकटों को पहन कर कंडाली से बने कपड़ों की ब्रांडिंग किया था. साथ ही सीएम त्रिवेंद्र सिंह गौचर मेले में भी कंडाली के रेशो से बनी हाफ जैकेट पहन कर मेले का सुभारंभ करने पहुंचे थे. इस दौरान सीएम ने जनता को संबोधित करते हुए कंडाली के रेशो से बनी हुई वस्तुओं की उपयोगिता लोगों को बताई थी.
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बता दें कि कंडाली का पौधा एक तरह की जंगली घास है. कंडाली के पौधे को बिच्छू घास के नाम से भी जाना जाता है. किसी व्यक्ति के कंडाली के पौधे या पत्तियों को छू लेने से वह फौरन हाथ वापस हटा लेता है, क्योंकि कंडाली को छूने से ही खुजली और जलन शुरू हो जाती है. जिसकी वजह से लोग कंडाली को अधिक उपयोग में नहीं ला पाए, लेकिन अभी भी पहाड़ के कई गांवों में कंडाली के पत्तों की सब्जी भी लोग बड़े चाव से खाते हैं. बताया जाता है कि कंडाली की सब्जी का सेवन करने से मधुमेह जैसै रोग पास नहीं आते हैं.
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वहीं, पुष्कर सिंह ने बताया कि वह कंडाली के रेशों से बने कई जैकेट और मफलर, शॉल की बिक्री कर लाखों कमा चुके हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि अब कंडाली का पौधा धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर है. कंडाली के रेशे कम मात्रा में उपलब्ध होने के कारण समय पर कंडाली के कपड़े मिलने में दिक्कतें हो रही है. कंडाली के बने हुए एक हाफ जैकेट की कीमत 3 से 4 हजार रुपये की बीच होती है. वाबजूद उसके कुछ संस्थाओं द्वारा डिमांड पर कपड़ा उपलब्ध करवाया जाता है.